बिहार के सासाराम से 17 अगस्त को 'वोटर अधिकार यात्रा' शुरू हुई। इसके चार दिन पहले तेजस्वी यादव ने मतदाता सूची की एक ऐसी विसंगति का खुलासा किया जिससे पता चलता है कि इस तरह की यात्रा क्यों जरूरी थी। तेजस्वी यादव ने बताया कि गुजरात के एक वरिष्ठ बीजेपी पदाधिकारी भीखू भाई दलसानिया का नाम बिहार की मतदाता सूची में दर्ज है। उनका नाम गुजराती में छपा था और उसमें पता या घर नंबर वगैरह कुछ भी नहीं था। मुद्दे की बात यह है कि भीखू भाई का नाम गुजरात की मतदाता सूची में भी है और उन्होंने पिछले लोकसभा चुनाव में केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के लोकसभा क्षेत्र में वोट भी डाला था।
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बिहार में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं और उससे ऐन पहले दलसानिया को राज्य में एक संगठनात्मक पद दिया गया और उन्हें यहां मतदाता के रूप में पंजीकृत किया गया। तेजस्वी ने कहा, अगले साल वह असम में भी पंजीकृत मतदाता बन सकते हैं। कौन जानता है कि पिछले पांच सालों में वह कहां-कहां वोटर रहे? तेजस्वी के इस खुलासे से खफा बीजेपी समर्थक दलसानिया के बचाव में फौरन कूद पड़े। उन्होंने कहा कि एक भारतीय नागरिक कहीं भी बस सकता है और कहीं भी मतदाता के रूप में पंजीकरण करा सकता है। जहां तक मकान नंबर गायब होने या 'एक व्यक्ति, एक वोट' के सिद्धांत के खिलाफ होने जैसी छोटी-छोटी बातों का सवाल है, तो इसका रोना सिर्फ वही रोते हैं जिनके पास करने को और कुछ नहीं होता।
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यह यात्रा राज्य के 23 जिलों में 16 दिनों तक चलेगी और यह लगभग 1,300 किलोमीटर की दूरी कवर करेगी। इस यात्रा को लोग अपने आप हाथोंहाथ ले रहे हैं। आम लोगों की भीड़ गर्मी या भारी बारिश की परवाह नहीं कर रही और संकरे, कादो-कीचड़ भरे रास्तों पर चल या दौड़ रहे हैं। प्रमुख विपक्षी दलों- कांग्रेस, आरजेडी और सीपीआई-एमएल (लिबरेशन) के झंडे लहराते लोग 'वोट चोर, गद्दी छोड़' के नारे जोर-शोर से लगा रहे हैं। यह नारा सीपीआई-एमएल महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने गढ़ा है। आयोजन टीम के एक सदस्य ने इन पंक्तियों के लेखक से तंज के साथ कहा- 'जैसा कि आप देख सकते हैं, इन लोगों को बस से नहीं लाया गया है!'
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बिहार में बुवाई का सीजन खत्म ही हुआ है और राज्य के ज्यादातर हिस्से बाढ़ की जद में हैं, जिससे किसानों और खेतिहर मजदूरों के पास भाषण सुनने के लिए वक्त भी है और वजह भी। गया में संजय कुमार ने मीडिया से कहा, 'यह राहुल गांधी की लड़ाई नहीं, हमारी जंग है'।
चुनाव आयोग ने जल्दबाजी में और बेहद घटिया तरीके से मतदाता सूचियों का विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) कराया और इसमें कथित तौर पर ज्यादातर दलितों और अल्पसंख्यकों के नाम सूची से हटा दिए गए। लिहाजा, उनमें डर का माहौल है। संजय ने कहा, 'नाम हट गया, तो कोई भी नहीं पूछेगा'। आज मतदान का अधिकार जाएगा; कल राशन, स्वास्थ्य सेवा, नौकरी, और जनहित वाली योजनाओं के लाभ- सब छीन लिए जाएंगे।
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इस यात्रा का समय और मार्ग सोच-समझकर चुना गया है। यह मुख्यतः शहरी इलाकों की बजाय गांवों और बस्तियों से होकर गुजर रही है। सासाराम को शुरुआती बिंदु के रूप में चुनना प्रतीकात्मक था और व्यावहारिक भी। सासाराम पूर्व केन्द्रीय मंत्री, पूर्व उप-प्रधानमंत्री और दिग्गज दलित नेता जगजीवन राम का गृह क्षेत्र था। यहीं पर शेरशाह सूरी का मकबरा भी है, जो उनके द्वारा बनवाई गई ग्रैंड ट्रंक रोड से कुछ ही किलोमीटर दूर है।
यूट्यूबर भारत सूरज इस यात्रा में उमड़ रही भीड़ को बड़ा संकेत मानते हैं। वह कहते हैंः हालांकि यह कहना अभी जल्दबाजी होगी कि यह यात्रा चुनाव में कोई बड़ा बदलाव लाएगी, लेकिन इसमें शक नहीं कि यात्रा ने 'वोट चोरी' को एक प्रभावी और लोकप्रिय नारा जरूर बना दिया है।
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बीजेपी नेताओं और मुख्यधारा के मीडिया ने इस यात्रा को सर्कस करार दिया है। आधिकारिक रूप से तो वे यह कहते हुए इसका मजाक बनाते हैं कि जब कोई बंदर गांव से गुजरता है, तब भी भीड़ जमा हो जाती है। हालांकि ऑफ द रिकॉर्ड वे मानते हैं कि सियासी वजहों से वे इसके असर को कम करके आंक रहे हैं। और तो और, एक बीजेपी नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि 'राहुल गांधी और तेजस्वी यादव पर हमने जो 'बौड़म' और 'शाही पप्पू' जैसे लेबल चिपकाने की कोशिश की, उसके उलट आम जनता उन्हें मुखर, जुझारू नेता के रूप में देखती है जो रोजी-रोटी जैसे बुनियादी मुद्दों पर बात करते हैं।’ जहां तक लोकप्रियता रेटिंग की बात है, वह नरेन्द्र मोदी को कड़ी टक्कर दे रहे हैं।
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ऐक्टिविस्ट ब्रजनंदन पाठक इस बात से प्रभावित हैं कि एनडीए समर्थकों द्वारा आयोजित छिटपुट विरोध प्रदर्शनों और काले झंडों के बावजूद यात्रा बड़ी आसानी से बढ़ रही है। जिस तरह उपद्रवियों का सामना राहुल गांधी मुस्कान, ट्रेडमार्क फ्लाइंग किस और थम्स-अप के साथ कर रहे हैं, वह देखते बनता है।
सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी एम.ए. काजमी का मानना है कि यात्रा का उपहास करना गलत कदम रहा है। बेहतर होता कि उन्होंने इसे नजरअंदाज किया होता, जैसा कि वे अक्सर करते हैं। इसके बजाय बीजेपी ने अपने स्टार प्रवक्ताओं- संबित पात्रा, अजय आलोक और सैयद शाह नवाज हुसैन- को राहुल पर निशाना साधने और एक लोकप्रिय आंदोलन गढ़ती इस यात्रा को 'कमतर' बताने के लिए तैनात कर रखा है। अजय आलोक और शाह नवाज हुसैन को 'वोट चोर, गद्दी छोड़' अभियान का मुकाबला करने के लिए जिला मुख्यालयों का दौरा करने को भी कहा गया है। निचोड़ यह है कि एसआईआर का बचाव करना उतना ही मुश्किल साबित हो रहा है जितना कि इस धारणा को पलटना कि चुनाव आयोग और बीजेपी मिलकर काम कर रहे हैं। बिहार के उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा की एक बात ने अनजाने में ही इस धारणा को मजबूत कर दिया है। उनका नाम वोटर सूची में दो क्षेत्रों में है, पर उन्होंने कहा कि निर्वाचन आयोग ने दो में से एक से उनका नाम हटाने से मना कर दिया है।
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एक अन्य बात भी जो लोगों के दिलों में उतर गई है, वह यह है कि राहुल और तेजस्वी एक-दूसरे के प्रति सम्मान और आदर प्रदर्शित कर रहे हैं। दोनों में से कोई भी एक-दूसरे से अपनी छवि बेहतर दिखाने की कोशिश नहीं कर रहा। तेजस्वी और दीपांकर भट्टाचार्य यात्रा में राहुल से कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे है। यह प्रतीकात्मक भर नहीं है जो लोगों की नजर से अनदेखा नहीं रह रहा। राहुल संविधान, एसआईआर और उनके वोट की अहमियत को लेकर भीड़ को बताते हैं जबकि तेजस्वी पिछले लगभग 20 साल के एनडीए शासन में बिहार के साथ धोखाधड़ी को सामने लाते हैं। दोनों एक-दूसरे को पुष्ट कर रहे हैं।
राहुल गांधी रात में अपने कन्टेनर में रुकते हैं, किसी होटल में या किसी क्षेत्रीय नेता के घर नहीं। उनका यह फैसला बिल्कुल निचले स्तर के पार्टी कार्यकर्ताओं को भी भा रहा है। वह अपने वाहन में साथ आने के लिए जिस तरह किसी भी गांववाले को निमंत्रित करते हैं, किसी को भी अपना अनुभव बताने के लिए माइक थमा देते हैं और ड्यूटी पर घायल पुलिस जवान की मदद के लिए जिस तरह वह तुरंत दौड़ पड़े- इन अनौपचारिकताओं ने उन्हें लोगों को दोस्त बना दिया है।
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स्वर्गीय दशरथ मांझी के परिवार के साथ राहुल ने जिस तरह आत्मीयता दिखाई, वह भी लोगों के दिलों में उतर गया। दशरथ मांझी को 'माउंटेन मैन ऑफ बिहार' कहा जाता रहा है। उन्होंने अकेले ही एक पहाड़ चीरकर सड़क बना दी थी। (उनकी कहानी से प्रेरित होकर केतन मेहता ने फिल्म भी बनाई थी जिसमें नवाजुद्दीन सिद्दीकी प्रमुख भूमिका में थे।) जब दशरथ मांझी का निधन हुआ, उनके पास अपना घर नहीं था, जबकि केन्द्रीय मंत्री जीतन राम मांझी समेत कई नेताओं ने उन्हें आवास देने के आश्वासन दिए थे। बिना किसी तामझाम के 18 अगस्त को राहुल गांधी ने दशरथ मांझी के परिवार वालों को नए निर्मित आवास की चाबियां सौंपी।
और इस तरह, अभी मीलों का सफर तय करना है और वादे पूरे करने हैं, ऊर्जा और आशा से भरी हुई यात्रा जारी है। 1 सितंबर को पटना के गांधी मैदान में इसका समापन होगा।
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