हालात

जलवायु परिवर्तन के कारण संकट में हिमालय, बिगड़ने लगा है ग्लेशियर का संतुलन

जून 2022 में नेचर रीव्युज अर्थ एंड एनवायरनमेंट नामक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार हिमालय क्षेत्र में तापमान बृद्धि के कारण अब ग्लेशियर में जमा ठोस पानी और इससे बहते पानी का संतुलन बिगड़ने लगा है।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया 

हाल में ही संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने हिन्दूकुश हिमालय के भूत, वर्तमान और भविष्य के विस्तृत वैज्ञानिक अध्ययन से सम्बंधित रिपोर्ट, अ साइंटिफिक असेसमेंट ऑफ़ द थर्ड पोल एनवायरनमेंट, प्रकाशित किया है। समग्र रूप से हिमालय के पर्यावरण से सम्बंधित संयुक्त राष्ट्र की यह पहली विस्तृत रिपोर्ट है। हिन्दूकुश हिमालय को पृथ्वी का तीसरा ध्रुव, यानि थर्ड पोल, कहा जाता है क्योंकि पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव के बाद सबसे अधिक ग्लेशियर और ठोस पानी यहीं है। हिन्दूकुश हिमालय पर लगभग एक लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में ग्लेशियर फैले हैं और इनके पानी पर लगभग 2 अरब आबादी आश्रित है। पानी के अतिरिक्त, हिन्दूकुश हिमालय पृथ्वी के उन क्षेत्रों में एक है जहां की अधिकतर जैविक सम्पदा स्थानिक है, यानि इसी क्षेत्र तक ही सीमित है, और जैव-सम्पदा विविधता से परिपूर्ण है।

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हिमालय के पर्यावरण पर पहले समग्र आकलन के लिए नवीनतम वैज्ञानिक सूचनाओं का सहारा लिया गया है, और इसमें जलवायु परिवर्तन, तापमान बृद्धि, जल-तंत्र, जैव-विविधता और मानव की गतिविधियों के प्रभाव को भी शामिल किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार मानव की अवांछनीय गतिविधियों के कारण यह पूरा क्षेत्र पर्यावरण के सन्दर्भ में खतरे में है और उसके स्थानीय और वैश्विक प्रभाव सामने आने लगे हैं। इस रिपोर्ट में पिछले 2000 वर्षों के दौरान इस पूरे क्षेत्र के जलवायु का आकलन किया गया है, इसके लिए ग्लेशियर, झीलों के तलछट और बृक्षों के “ट्री-रिंग” का गहराई से अध्ययन किया गया है।

रिपोर्ट के अनुसार 20 शताब्दी से वैश्विक तापमान बृद्धि का व्यापक असर हिमालय के ग्लेशियर पर स्पष्ट है, और इसके साथ ही जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय की ऊंची चोटियों पर अब हिमपात कम हो गया है और वर्षा अधिक होने लगी है। हिमालय के क्षेत्र में तापमान बृद्धि की दर 0.3 डिग्री सेल्सियस प्रति शताब्दी है, जो तापमान बृद्धि के वैश्विक औसत से अधिक है। पिछले कुछ दशकों से ग्लेशियर के पिघलने की दर में तेजी से बढ़ोत्तरी देखी गयी है, जिसके कारण ग्लेशियर झीलों का क्षेत्र और नदियों का बहाव लगातार बढ़ता जा रहा है। इन सब कारणों से हिमालय क्षेत्र में प्राकृतिक आपदा की संख्या बढ़ रही है और इससे प्रभावित होने वालों की संख्या भी।

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हिमालय के क्षेत्र में खेती अब पहले से अधिक ऊंचाई पर की जाने लगी है, और पहले जो ग्लेशियर से ढके क्षेत्र थे, उनमें हरियाली बढ़ने लगी है। ग्लोबल चेंज बायोलॉजी नामक जर्नल में प्रकाशित एक यूनिवर्सिटी ऑफ़ एक्सेटर के वैज्ञानिकों द्वारा किये गए अध्ययन के अनुसार, हिमालय के ग्लेशियर में परिवर्तन के साथ-साथ वहां के वनस्पति भी प्रभावित हो रहे हैं और अब पहले से अधिक ऊंचाई पर पनपने लगे हैं। इसके अनुसार माउंट एवरेस्ट और हिमालय के ऊंचाई वाले दूसरे हिस्सों में पनपने वाली घासों और झाड़ियों की संख्या बढ़ गयी है। इस अध्ययन को नासा के लैंडसैट नामक उपग्रह द्वारा वर्ष 1993 से 2018 के बीच प्राप्त चित्रों के आधार पर किया गया है। इसमें उपग्रह द्वारा प्राप्त चित्रों द्वारा ट्रीलाइन (जिस ऊंचाई तक बड़े पेड़ पनपते हैं) और स्नोलाइन (जिस ऊचाई से ग्लेशियर या बर्फ का आवरण शुरू होता है) के बीच मिलने वाली घासों और झाड़ियों का अध्ययन किया गया है।

यूनिवर्सिटी ऑफ़ एक्सेटर स्थित एनवायर्नमेंटल एंड सस्टेनेबिलिटी इंस्टिट्यूट की वैज्ञानिक डॉ करेन एंडरसन के अनुसार इन चित्रों के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि हिमालय पर पिछले कुछ वर्षों के दौरान ही 4150 मीटर से 6000 मीटर के बीच की ऊंचाई पर वनस्पति में प्रभावी परिवर्तन आया है। सबसे अधिक अंतर 5000 से 5500 मीटर की ऊंचाई पर देखा गया है। पूरे हिमालय में ग्लेशियर का बारीकी से अध्ययन किया गया है पर वनस्पतियों का नहीं। वर्ष 2021 में प्रकाशित एक अध्ययन में खुलासा किया गया था कि हिमालय के ग्लेशियर के सिकुड़ने की दर वर्ष 2000 से 2016 के बीच दुगुनी हो चुकी है। हिमालय के ग्लेशियर से एशिया की 10 सबसे बड़ी नदियाँ निकलतीं हैं और इनके पानी पर 2 अरब आबादी निर्भर है। हिन्दुकुश हिमालय को वाटर टावर भी कहा जाता है।

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ट्रीलाइन और स्नोलाइन के बीच मिलने वाले घासों और झाड़ियों का क्षेत्र बहुत महत्वपूर्ण है और इसका क्षेत्र हिमालय के बर्फ से ढके क्षेत्र की तुलना में 5 से 15 गुणा तक अधिक है, पर अत्यधिक ऊंचाई और दुरूह रास्तों के कारण इनका विस्तृत अध्ययन नहीं किया गया है। डॉ करेन एंडरसन के अनुसार इस वर्तमान अध्ययन में वनस्पतियों के दायरा बढ़ने का अध्ययन तो किया गया है, पर इसके कारण पर चर्चा नहीं की गयी है। अधिकतर वैज्ञानिकों के अनुसार इसका कारण तापमान बृद्धि है, जिसके कारण अधिक ऊंचाई पर भी पौधे पनप रहे हैं।

हिमालय की जैव-विविधता को हमलावर प्रजातियों से भी खतरा बढ़ता जा रहा है क्योंकि तापमान बृद्धि के साथ नई प्रजातियाँ इस क्षेत्र पर पनपने और विकसित होने लगी हैं। पर, सबसे बड़ा खतरा हिमालय पर बेतहाशा बढ़ते इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं से है, वैज्ञानिकों द्वारा लगातार खतरे बताने के बाद भी सरकार ऐसी परियोजनाओं को स्वीकृति देती जा रही है। हिमालय के ग्लेशियर के नष्ट होने के खतरे केवल स्थानीय जलवायु के बदलने के कारण नहीं हैं, बल्कि कहीं दूर हवा में मिलने वाला वायु प्रदूषण भी ग्लेशियर को प्रभावित कर रहा है।

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जून 2022 में नेचर रीव्युज अर्थ एंड एनवायरनमेंट नामक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार हिमालय क्षेत्र में तापमान बृद्धि के कारण अब ग्लेशियर में जमा ठोस पानी और इससे बहते पानी का संतुलन बिगड़ने लगा है। इसके कारण इसके उत्तरी क्षेत्रों (चीन) में पानी का बहाव बढ़ता जा रहा है और दक्षिणी क्षेत्रों (भारत) में पानी का बहाव कम हो रहा है। यह भविष्य में पूरे क्षेत्र में जल उपलब्धता के लिए कठिन चुनौती बन सकता है। इस तरह का अध्ययन पहले नहीं किया गया था, पर पिछले कुछ वर्षों के दौरान चीन में लगातार आती भयानक बाढ़ और चीन से भारत पहुँचती ब्रह्मपुत्र नदी द्वारा एक ही वर्ष में अनेक बार असाम को बाढ़ से प्रभावित करना, इस अध्ययन के निष्कर्ष को सही साबित करता है। इस अध्ययन के अनुसार इस क्षेत्र का भविष्य पानी की उपलब्धता के सन्दर्भ में चुनौतीपूर्ण है क्योंकि उत्तरी क्षेत्रों में पानी की मांग कम है पर नदियों में पानी का बहाव बढ़ रहा है, जबकि दक्षिणी क्षेत्रों में पानी की मांग लगातार बढ़ रही है और नदियों का बहाव कम हो रहा है।

वैज्ञानिक हिमालय के पर्यावरण पर लगातार अध्ययन कर रहे है और खतरों से आगाह कर रहे हैं, पर हमारे प्रधानमंत्री केदारनाथ की गुफा में ध्यान लगाने के अतिरिक्त कुछ नहीं कर रहे हैं। हिमालय को बर्बाद करने वाला चार-धाम हाईवे प्रोजेक्ट उनका पसंदीदा प्रोजेक्ट है।

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