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हिंडनबर्ग के बंद होने से 'मोदानी' को क्लीन चिट नहीं मिल गई, गंभीर अपराधिक कृत्य की जेपीसी जांच जरूरीः कांग्रेस

जयराम रमेश ने दावा किया कि मोदानी भले ही भारत की संस्थाओं पर क़ब्ज़ा कर सकते हैं और किया भी है, लेकिन देश के बाहर उजागर हुई आपराधिक गतिविधियों को इस तरह से नहीं छुपाया जा सकता।

कांग्रेस ने कहा कि हिंडनबर्ग के बंद होने का मतलब यह नहीं है कि 'मोदानी' को क्लीन चिट मिल गई
कांग्रेस ने कहा कि हिंडनबर्ग के बंद होने का मतलब यह नहीं है कि 'मोदानी' को क्लीन चिट मिल गई फोटोः सोशल मीडिया

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने गुरुवार को कहा कि अमेरिकी निवेश एवं अनुसंधान कंपनी हिंडनबर्ग रिसर्च के बंद होने का मतलब यह नहीं है कि 'मोदानी' को क्लीन चिट मिल गई है। उन्होंने अडानी समूह और भारतीय प्रतिभूति विनिमय बोर्ड (सेबी) से जुड़े मामलों का उल्लेख करते हुए यह भी कहा कि ये गंभीर अपराधिक कृत्य हैं जिनकी पूरी तरह से जांच केवल संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) द्वारा ही की जा सकती है।

दरअसल गुरुवार को अमेरिकी निवेश एवं अनुसंधान कंपनी हिंडनबर्ग रिसर्च को अचानक बंद किए जाने की खबर ने सबको चौंका दिया। इसके संस्थापक नैट एंडरसन ने खुद बुधवार को यह जानकारी दी। उद्योगपति गौतम अडानी और उनके समूह के खिलाफ भारी अनियमितताओं और धांधली का आरोप लगाने वाली रिपोर्ट जारी करने के बाद यह कंपनी चर्चा में आ गई थी। अडानी समूह ने हिंडनबर्ग के सभी आरोपों को खारिज किया था।

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जयराम रमेश ने एक बयान में कहा, "हिंडनबर्ग रिसर्च के बंद होने का किसी भी तरह से यह मतलब नहीं है कि 'मोदानी' को क्लीन चिट मिल गई है।" उन्होंने कहा, "जनवरी 2023 में आई हिंडनबर्ग रिपोर्ट इतनी गंभीर साबित हुई थी कि भारत के उच्चतम न्यायालय को उसमें अडानी समूह, जिसे किसी और का नहीं, ख़ुद प्रधानमंत्री का संरक्षण प्राप्त है, के खिलाफ़ सामने आए आरोपों की जांच के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन करने के लिए मजबूर होना पड़ा।"

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कांग्रेस नेता ने कहा कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट में "मोदानी महाघोटाले" के केवल एक हिस्से, प्रतिभूति कानूनों के उल्लंघन को ही कवर किया गया था। रमेश ने दावा किया, "यह मामला और भी ज़्यादा गंभीर है। इसमें राष्ट्रीय हित की क़ीमत पर प्रधानमंत्री के क़रीबी मित्रों को और समृद्ध करने के लिए भारत की विदेश नीति का दुरुपयोग शामिल है। इसमें भारत के व्यवसायियों को अपनी महत्वपूर्ण संपत्तियों को बेचने के लिए मजबूर करने और अडानी को हवाई अड्डों, बंदरगाहों, रक्षा एवं सीमेंट जैसे क्षेत्रों में एकाधिकार बनाने में मदद करने के लिए जांच एजेंसियों का दुरुपयोग शामिल है।"

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कांग्रेस नेता ने कहा कि इसमें सेबी जैसी संस्थानों पर कब्ज़ा किए जाने का मुद्दा शामिल है, जिसकी प्रमुख (माधवी बुच) अडानी के साथ हितों के टकराव और वित्तीय संबंधों के स्पष्ट सबूत होने के बावजूद अपने पद पर बनी हुई हैं। रमेश ने दावा किया, "मोदानी भले ही भारत की संस्थाओं पर क़ब्ज़ा कर सकते हैं और किया भी है, लेकिन देश के बाहर उजागर हुई आपराधिक गतिविधियों को इस तरह से नहीं छुपाया जा सकता।"

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जयराम रमेश ने कहा, "ये सभी मित्र पूंजीवाद से जुड़े गंभीर अपराधिक कृत्य हैं जिनकी पूरी तरह से जांच केवल संयुक्त संसदीय समिति द्वारा ही की जा सकती है। जेपीसी के बिना, पूरी तरह से नियंत्रित की जा चुकी भारत की संस्थाएं केवल शक्तिशाली लोगों और प्रधानमंत्री के करीबियों की रक्षा के लिए काम करेंगी, भारत के ग़रीब और मध्यम वर्ग को उनके हाल पर छोड़ दिया जाएगा।"

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