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कोरोना संकट के बीच जब पीएम केयर्स फंड पर उठे सवाल तो PMO ने बहाना बनाकर जवाब देने से किया इनकार, RTI से खुलासा

पीएमओ ने आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी के जवाब में लॉकडाउन लागू करने के निर्णय के पीछे के औचित्य, इस बारे में स्वास्थ्य मंत्रालय और पीएमओ के बीच पत्राचार और कोविड-19 की जांच से संबंधित फाइलों समेत कोविड-19 पर हुई उच्चस्तरीय बैठकों की जानकारी देने से मना कर दिया।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया 

प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने कोविड-19 महामारी से लड़ने के लिए लोगों से ली जाने वाली वित्तीय सहायता स्वीकार करने के लिए प्रकट तौर पर गठित पीएम-केयर्स फंड से संबंधित दस्तावेज सार्वजनिक करने से मना कर दिया है। पीएमओ ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत मांगी गई जानकारी के जवाब में लॉकडाउन लागू करने के निर्णय के पीछे के औचित्य, इस बारे में स्वास्थ्य मंत्रालय और पीएमओ के बीच पत्राचार और कोविड-19 की जांच से संबंधित फाइलों समेत कोविड-19 पर हुई उच्चस्तरीय बैठकों की जानकारी देने से मना कर दिया। यह जानकारी सोशल एक्शन फॉर फॉरेस्टइनवायरमेन्ट(सेफ) के संस्थापक विक्रांत तोंगड़ ने 21 अप्रैल को मांगी थी जिसे पीएमओ ने 6 दिनों में निबटा दिया। पीएमओ ने इसके लिए केंद्रीय सूचना आयुक्त(सीआईसी) के 2009 में दिए फैसले का हवाला दिया जिसे बाद में उलट दिया गया था और 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर व्यवस्था दी थी।

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पीएमओ की पहली प्रतिक्रिया

2007 में राजेन्द्र सिंह ने सीबीआई से 69 बिंदुओं पर जानकारी हासिल करने के लिए आरटीआई के तहत आवेदन दिया था। उनसे कई विषयों से संबंधित हर प्रश्न के लिए 10 रुपये प्रति प्रश्न जमा करने को कहा गया। इस बात से असंतुष्ट होकर सिंह ने पहली अपील की, जिसे निरस्त कर दिया गया। मामला केंद्रीय सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह के पास पहुंचा जिन्होंने व्यवस्था दी कि सिर्फ एक सवाल मूल विषय से अलग है। यह उल्लेखनीय है कि पीएमओ के तर्क के विपरीत सीआईसी ने सूचना देने से संबंधित विभागों को मना नहीं किया बल्कि 10 रुपये के अतिरिक्त भुगतान के बाद इसे देने को कहा। हबीबुल्ला ने यह भी कहा कि हम मानते हैं कि किसी अनुरोध में मांगी गई सूचना से उपजे कई स्पष्टीकरण और सहायक सवाल हो सकते हैं। इस तरह के आवेदन को निश्चित तौर पर एक ही अनुरोध माना जाना चाहिए और उसके अनुरूप ही शुल्क लगाया जाना चाहिए। फिर, 2011 में, तब के सीआईसी शैलेश गांधी ने माना कि दिए गए आदेशों में ऐसा कोई ’कानूनी आधार’ नहीं है जो आरटीआई आवेदन को एक ही विषय के दायरे तक सीमित रखता है या विभिन्न विषयों पर अतिरिक्त शुल्कों की मांग करता है। पिछले आदेशों को पलटते हुए उन्होंने कहा कि न तो आरटीआई कानून और न इसके तहत बनाए गए नियमों और अधिनियमों में ‘एक विषय से संबंधित मामले’ की परिभाषा दी गई है।

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दूसरा तर्कः सुप्रीम कोर्ट का आदेश

आरटीआई के तहत आवेदन के उत्तर में पीएमओ ने दूसरे तर्क में लिखा कि आवेदक का ध्यान (सीबीएसई और अन्यबनाम आदित्यबंदोपाध्याय और अन्य मामले में) माननीय सुप्रीम कोर्ट के 09.08.2011 को दिए आदेश की ओर दिलाया जाता है जहां यह कहा गया है सभी और विविध सूचना देने के लिए आरटीआई कानून के तहत अव्यवस्थित और अव्यावहारिक मांग प्रतिकूल होगी क्योंकि यह प्रशासन की क्षमता पर विपरीत प्रभाव डालेगा और इसके परिणाम स्वरूप कार्यपालिका को सूचनाओं के संग्रहण और उन्हें देने के अनुत्पादी कार्य में उतरना होगा। इसने आगे कहा कि देश वह स्थिति नहीं चाहता है जब सार्वजनिक प्राधिकरण का 75 प्रतिशत स्टाफ अपनी नियमित ड्यूटी करने की जगह आवेदकों के लिए सूचना संग्रहण और इन्हें देने में अपना 75 प्रतिशत समय खर्च करे।

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लेकिन इस आदेश में कोर्ट ने तब भी सीबीएसई को आरटीआई कानून के तहत परीक्षार्थियों को उत्तर पुस्तिकाएं देखने और उनकी सत्यापित प्रतियां देने को कहा। बाद में, सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में सीबीएसई को आरटीआई कानून के तहत विद्यार्थियों को उत्तर पुस्तिकाओं की प्रतियां देने और इसके लिए 2 रुपये प्रति पेज से अधिक दर न लेने को कहा।

संडे नवजीवन से बातचीत करते हुए विक्रांत तोंगड़ ने पीएमओ की प्रतिक्रिया पर निराशा जताई। उन्होंने कहा कि सरकार को मेरे द्वारा मांगी गई सूचना को खुद ही सार्वजनिक दायरे में लाना चाहिए। हम सभी मानते हैं कि जहां तक पीएम केयर्स फंड और लॉकडाउन आदि से संबंधित फैसले का सवाल है, यह सार्वजनिक हित में काम कर रहा है लेकिन इनसे संबंधित सूचनाएं सबको उपलब्ध कराकर वह सरकार में विश्वास को और अधिक मजबूत करेगी। उन्होंने बताया कि उन्होंने पीएमओ में पहली अपील दायर कर दी है। मैंने सवालों को कई हिस्सों में कर दिया है और अलग-अलग आरटीआई दायर की है।

प्रसिद्ध आरटीआई कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज ने तोंगड़ की राय से सहमति जताई। उन्होंने भी कहा कि आरटीआई कानून में इस तरह की सूचना सार्वजनिक दायरे में अपनी तरफ से डालने के लिए संबंधित अधिकारियों से कहा गया है और ऐसा कर सरकार पीएम केयर्स फंड के संबंध में उठने वाले किसी भी तरह के सवालों काश मन बढ़िया ढंग से करेगी। उन्होंने इस बात पर भी अफसोस जताया कि सीआईसी में रिक्तियों की वजह से सेकेंड अपील सुनवाइयां बाधित हो जा रही हैं और समयबद्ध तरीके से सूचना नहीं दी जा रही है जैसा कि होना चाहिए। उन्होंने बताया कि हमने इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में भी अपील की है लेकिन सरकार ने सिर्फ स्टेटस रिपोर्ट फाइल की है कि रिक्तियां भर दी गई हैं जबकि आज की तारीख में सीआईसी में सूचना आयुक्तों की चार रिक्तियां हैं।

पूर्व सीआईसी शैलेश गांधी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के नाम पर दिया गया बयान बिना सोचे-समझे की गई टिप्पणी है। उन्होंने कहा कि यह बयान बिना किसी कानूनी आधार के दिया गया है। इसकी कतई जरूरत नहीं थी। यह नागरिकों के मूल अधिकारों के संबंध में इस तरह के बयानों के अनुरूप नहीं लगता। वैसे भी, मुझे लगता है कि पीएमओ को इस बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में इस बयान का संदर्भ नहीं देना चाहिए था। उन्होंने यह भी कहा कि आरटीआई कानून पर सुप्रीम कोर्ट के 17 आदेशों का विश्लेषण इस बयान को गलत ठहराता है। हमने पाया है कि आरटीआई आवेदनों के निबटारे के लिए सिर्फ 3.2 प्रतिशत स्टाफ को अपने काम का 3.2 प्रतिशत समय खर्च करना पड़ता है।

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