कच्चे तेल के दामों में ऐतिहासिक उछाल, घरेलू मांग में कमजोरी और मैन्यूफैक्चरिंग की सुस्ती का असर शेयर बाजारों पर देखने को मिल रहा है। मंगलवार को शेयरों बाजारों में एक बार फिर गिरावट का दौर शुरु हो गया। बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज का सेंसेक्स करीब 650 अंक टूटा, वहीं नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी भी 10850 से नीचे फिसल गया।
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दरअसल सऊदी की तेल कंपनी अरामको पर हुए ड्रोन हमले का असर घरेलू शेयर बाजारों पर लगातार दूसरे दिन नजर आ रहा है। दोपहर 2 बजे तक निफ्टी 10,800 के करीब पहुंच गया। वहीं सेंसेक्स के 30 में से 29 शेयरों में गिरावट देखने को मिली। निफ्टी के 50 में से 44 शेयरों में बिकवाली हावी है। वहीं बैंक निफ्टी के सभी 12 शेयरों में गिरावट देखने को मिल रही है।
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असल में देश की अर्थव्यवस्था एक लंबी आर्थिक मंदी के खतरे का सामना कर रही है। हाल में जारी हुए कई आंकड़ों से भी देश में गंभीर आर्थिक सुस्ती का पता चलता है। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में देश की विकास दर महज पांच फीसदी दर्ज की गई। सरकारी आंकड़े में बताई गई यह दर पिछले करीब छह साल में सबसे कम है। इसके साथ ही कई सेक्टर मांग में भारी कमी से जूझ रहे हैं।
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इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक आदित्य बिड़ला ग्रुप के मुख्य अर्थशास्त्री अजित रानाडे ने मौजूदा आर्थिक स्थिति को लेकर कहा कि विकास दर में लगातार पांच तिमाहियों में गिरावट देखी जा रही है। यह अस्थायी मंदी नहीं है। इसके संरचनात्मक कारण हैं, जो जल्दी दूर नहीं होंगे। वहीं एक अन्य मीडिया रिपोर्ट में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी के प्रोफेसर एनआर भानुमूर्ति ने कहा कि भारत में मंदी असल में 2018-19 की दूसरी तिमाही से ही शुरू हो गई थी, जिसे अब सरकार ने भी स्वीकार कर लिया है।
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एक अखबार से बातचीत में लंदन स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स के प्रोफेसर मैत्रीश घटक ने कहा कि मंदी सिर्फ ऑटोमोबाइल सेक्टर तक ही सीमित नहीं है। कम कीमत वाले बिस्कुट की मांग भी कम हो गई है। कोर सेक्टर की विकास दर गिर गई है। कंज्यूमर कन्फिडेंस इंडेक्स और बिजनेस एक्सपेक्टेशन इंडेक्स दोनों में निराशा झलकती है। उन्होंने कहा कि दुनिया के स्तर पर और देश के स्तर पर भी कहीं से कोई ऐसी हवा चलने की उम्मीद न के बराबर है जिससे हालात में बदलाव हो सके।
गौरतलब है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी अगले दो साल के लिए भारत के विकास दर अनुमान को घटा दिया है। एक अन्य अखबार के मुताबिक क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री डीके जोशी ने कहा कि जुलाई-सितंबर तिमाही के लिए भी संभावनाएं उत्साहजनक नहीं हैं। पहली छमाही में मंदी की स्थिति बने रहने वाली है।
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ध्यान रहे कि इस साल खरीफ फसलों का रकबा कम रहा है जिससे उत्पादन बीते साल के मुकाबले कम होने की आशंका है। इसकी वजह अनियमित बारिश और मॉनसूल की चाल रही है जिससे कई इलाकों को बाढ़ का सामना करना पड़ा है और फसलें खराब हुई है। इस सबके चलते गांवों से मांग बढ़ने की ज्यादा उम्मीद नहीं की जा सकती।
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