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तीन तलाक पर मनमानी, तो फिर महिला आरक्षण बिल लोकसभा में क्यों नहीं लाना चाहती मोदी सरकार ! 

मोदी सरकार के पास लोकसभा में स्पष्ट ही नहीं बल्कि प्रचंड बहुमत है, फिर भी न तो पिछले कार्यकाल में और न ही इस कार्यकाल में सरकार महिला आरक्षण बिल लेकर आई। सवाल पूछने पर सरकार का जवाब है कि इसके लिए राजनीति आम सहमति चाहिए। क्या यह सरकार और बीजेपी का दोहरापन नहीं है !

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 

मोदी सरकार ने लोकसभा में माना है कि राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं की पर्याप्त भागीदारी और प्रतिनिधित्व के मुद्दे पर आम सहमति से गंभीरता के साथ विचार करने की जरूरत है। सरकार का यह बयान मोदी सरकार और बीजेपी के दोहरे चरित्र को उजागर करता है, क्योंकि लोकसभा में सरकार पूर्ण बहुमत में है और उसने महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने का वादा कर रखा है।

ध्यान रहे कि 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने वादा किया था कि सत्ता में आने पर वह संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने के लिए संविधान संशोधन करेगी। अपने घोषणा पत्र में बीजेपी ने कहा था कि, “सरकार में हर स्तर पर महिला कल्याण और विकास सभी स्तर पर हमारी प्राथमिकता होगा और संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को संविधान संशोधन के माध्यम से 33 फीसदी आरक्षण देने के लिए बीजेपी कृतसंकल्प है।”

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लेकिन अब सरकार ने माना है कि इसके लिए आम सहमति बनाई जाएगी। कांग्रेस सांसद हिबी एडेन के सवाल के जवाब में महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने जवाब दिया कि महिलाओं को हर स्तर पर पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने के लिए वह कृतसंकल्प हैं, लेकिन इसके लिए आम सहमति की जरूरत है। लेकिन सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि, “आम सहमति की बात इस मुद्दे को टालने का एक बहाना है।”

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गौरतलब है कि महिला आरक्षण बिल बीते 8 साल से संसद में लंबित है। 2014 में भी बीजेपी ने महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने का वादा किया था, लेकिन प्रचंड बहुमत के बावजूद बीजेपी ने महिला आरक्षण का बिल तक संसद में पेश नहीं किया।

इस मुद्दे पर सवाल पूछने हिडी एडन कहते हैं कि, “अगर यह बिल लोकसभा में आता है तो सर्वसम्मति से पास हो जाता। कांग्रेस संसदीय पार्टी की नेता सोनिया गांधी इस बिल का वर्षों से समर्थन कर रही हैं। यूपीए-2 के शासन में महिला बिल राज्यसभा से पास हो चुका है। और अगर यह लोकसभा से पास हो जाता है तो कानून बन जाएगा।” वे कहते हैं कि “बीजेपी सिर्फ महिला अधिकार और सशक्तिकरण की बात तो करती है, लेकिन जमीनी स्तर पर कुछ नहीं करती। यह कुछ नहीं बल्कि राजनीतिक दोगलापन है। साफ है कि यह उनकी प्राथमिकताओं में नहीं है।“

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ध्यान रहे कि महिला बिल ही ऐसा बिल है जिस पर सभी राजनीतिक दल सहमत हैं और इसे पास कराना मुश्किल काम नहीं है। कांग्रेस के अलावा वामदलों, एनसीपी, एआईएडीएमके, डीएमके समेत तमाम दल इसके समर्थन में हैं। इसके अलावा लोकसभा में बीजेपी का अपने दम पर बहुमत है, लेकिन फिर इस बिल का लोकसभा में न आना मोदी सरकार की मंशा पर सवालिया निशान लगाता है।

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हिडी एडन का कहना है कि, “सरकार ने तीन तलाक बिल पेश कर दिया, जबकि यह ऐसा मुद्दा था जिसमें बिल की जरूरत ही नहीं थी। सुप्रीम कोर्ट पहले इस मामले को साफ कर चुका था। जाहिर है कि तीन तलाक बिल के माध्यम से वे मुस्लिम पुरुषों को सजा देना चाहते हैं। इसके अलावा एनआईए संशोधन बिल, आरटीआई बिल, यूएपीए बिल और तमाम बिल लेकर आए। लेकिन महिला बिल पर खामोशी है।”

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एडन के सवाल के जवाब में स्मृति ईरानी ने बताया कि पंचायतों के लिए चुनी गई महिलाओं के लिए सरकार क्षमता विकास के कार्यक्रम चला रही है ताकि उन्हें सशक्त किया जा सके। लेकिन कोची से सांसद एडन कहते हैं कि, “मोदी सरकार शायद भूल गई है कि पंचायतों और स्थानीय निकायों में पहले ही महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण मिला हुआ है, जो कि राजीव गांधी सरकार की नीतियों से संभव हुआ है। केरल जैसे राज्य में पंचायती संस्थाओं में महिलाओं को 52 फीसदी आरक्षण हासिल है। इसके अलावा भी महिलाएं बिना आरक्षित सीटों पर चुनाव लड़ती हैं। लेकिन यह सरकार तो कुछ करने को तैयार ही नहीं है।”

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महिला आरक्षण बिल का इतिहास

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महिला आरक्षण बिल पहली बार 1996 में संसद में पेश किया गया था, लेकिन कभी भी यह संसद के दोनों सदनों से पास नहीं हो सका। पिछली बार भी यूपीए शासन में यह बिल राज्यसभा से तो 2010 में पास हो गया था, लेकिन लोकसभा में यह बिल लंबित है और 2014 लोकसभा भंग होते ही यह बिल भी भंग हो गया।

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