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संसद के मॉनसून सत्र पर संशय के बादल: क्या बिहार में वोटबंदी पर चर्चा के लिए तैयार होगी मोदी सरकार!

संसद का मानसून सत्र 21 जुलाई, 2025 को शुरू होकर 21 अगस्त को समाप्त होगा, जिसमें 12 अगस्त से 18 अगस्त के बीच 21 बैठकें होंगी, लेकिन विपक्षी इंडिया ब्लॉक इस बात को लेकर चिंतित और संशय में है कि सत्र का संचालन कैसे किया जाएगा।

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Getty Images Hindustan Times

भले ही सरकार ने संसद का मॉनसून सत्र शुरु होने से एक दिन पहले रविवार 20 जुलाई को सर्वदलीय बैठक बुलाई, लेकिन ऐसा आभास हो रहा है कि बिहार में मतदाता सूची का गहन पुनरीक्षण शायद ही संसद की चर्चा में शामिल हो। ध्यान रहे कि बिहार में चुनाव आयोग की इस प्रक्रिया पर बेशुमार सवाल उठ रहे हैं, और आयोग कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पा रहा है। मामला सुप्रीम कोर्ट में भी है।

सरकार ने इस मुद्दे पर चुप्पी साथ रखी है और इंडिया ब्लॉक की इस मुद्दे पर विशेष चर्चा की मांग को शायद ही माने। बता दें कि बिहार एसआईआर का मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने लंबित है और 28 जुलाई को इस पर अगली सुनवाई होनी है, जबकि चुनाव आयोग द्वारा तय मतदाता सूची के पुनरीक्षण का काम 25 जुलाई को संपन्न हो रहा है। हो सकता है सरकार इस बात का आग्रह करे कि इस बाबत सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद अगस्त में इस पर चर्चा कराई जा सकती है।

वैसे भी संसद के मॉनसून सत्र को लेकर काफी गहमा-गहमी है। यह सत्र स्वतंत्रता दिवस से पहले संपन्न हो जाना था, लेकिन इसे बाद में 21 अगस्त तक जारी रखने का सरकार ने फैसला किया है। जैसा कि मौजूदा केंद्र सरकार की आदत रही है, चर्चा है कि सरकार इस सत्र में कुछ बड़े ऐलान कर सकती है, ताकि लोगों का ध्यान अहम मुद्दों से हट जाए, साथ ही बिहार में इस साल नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों में उसे उसका फायदा मिल सके।

अलबत्ता कहा जा रहा है कि सरकार ऑपरेशन सिंदूर और उसके बाद की घटनाओं पर चर्चा के लिए तैयार हो गई है। इनमें अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा लगातार भारत-पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता कराए जाने का मुद्दा भी शामिल है। ताजा बयान में ट्रम्प ने यह दोहराते हुए कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच युद्धविराम कराया, दावा किया कि इस युद्ध में कम से कम पांच लड़ाकू विमान गिराए गए थे और दोनों पड़ोसी परमाणु युद्ध की तरफ बढ़ रहे थे।

हालांकि इससे पहले सरकार विपक्ष की उस मांग को खारिज कर चुकी है जिसमें पहलगाम आतंकी हमले पर संसद का विशेष सत्र बुलाने का आग्रह किया गया था। सरकार ने कहा था कि इस मामले पर मॉनसून सत्र में चर्चा हो सकती है। ऐसे में अब सरकार के पास कोई बहाना नहीं है कि वह पहलगाम आतंकी हमले पर चर्चा से भाग सके। गौरतलब है कि पहलगाम आतंकी हमले के बाद संसद का यह पहला सत्र है। इस हमले में 25 पर्यटकों और एक स्थानीय नागरिक की मौत हुई थी। इसके बाद भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया था। लेकिन अचानक से इस ऑपरेशन को रोक दिया गया था और इसके रोके जाने का ऐलान सबसे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नहीं, बल्कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने किया था।

विपक्ष पहलगाम के आतंकवादियों के अभी तक न पकड़े जाने और सरकार की नाकामी, विमानों के नुकसान और युद्धविराम पर उसकी चुप्पी पर तीखे सवाल पूछने की तैयारी कर रहा है, लेकिन कुछ आशंकाएं भी हैं। क्या संसद में इस विषय पर समझदारी और ज़िम्मेदारी से चर्चा होगी? या फिर से व्यवधान, निष्कासन, राजनीतिक बयानबाज़ी और कटुता देखने को मिलेगी? सरकार और विपक्ष के बीच मतभेद पहले ही उभर चुके हैं, विपक्ष इसे सत्र के पहले कार्य के रूप में उठाने पर अड़ा है, जबकि सरकार इसका विरोध करने पर आमादा दिख रही है।

इस बात पर भी संदेह है कि क्या प्रधानमंत्री मोदी इस बहस के दौरान मौजूद रहेंगे और इसका जवाब देंगे। ध्यान रहे कि प्रधानमंत्री पहलगाम हमले पर हुई सर्वदलीय बैठक से नदारद रहे थे, इसके बजाय उन्होंने बिहार का दौरा किया, जहां उन्होंने दावा किया था कि पहलगाम में हमला करने वाले आतंकवादियों को पाताल से भी खोजकर निकाल लाएंगे। कई पर्यवेक्षकों का मानना है कि उन्होंने इस तरह पाकिस्तान को बालाकोट जैसे हमले के लिए सचेत कर दिया था। सेना के शीर्ष अधिकारियों के साथ बैठक करते हुए उनके कई फोटो भी सामने आए थे, जिसमें दावा किया गया था कि वे व्यक्तिगत रूप से एक सैन्य अभियान की बारीकियों से निगरानी कर रहे थे।

हालांकि, 'ऑपरेशन सिंदूर' शुरू होने के कुछ घंटों बाद राष्ट्र के नाम अपने प्रसारण के बाद से, प्रधानमंत्री चुप हैं और उन्होंने राष्ट्रपति ट्रंप के इस दावे पर कुछ नहीं कहा है, जिसे ट्रम्प कम से कम 23 बार दोहरा चुके हैं कि उन्होंने युद्धविराम की मध्यस्थता की थी। भारत ने कभी यह नहीं बताया कि जब उसका दावा है कि उसका कट्टर दुश्मन मैदान में था, तो उसने युद्धविराम पर सहमति क्यों जताई। यह दावा ज़रूर किया गया कि प्रधानमंत्री ने कनाडा से राष्ट्रपति ट्रंप से आधे घंटे तक टेलीफोन पर बात की, जहां वे जी-7 शिखर सम्मेलन के लिए अंतिम समय में आमंत्रित किए गए थे। लेकिन, हिंदी में मीडिया को दिए अपने बयान में विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने दावा किया कि प्रधानमंत्री ने ट्रंप से कहा था कि युद्धविराम कराने में उनकी और अमेरिका की कोई भूमिका नहीं थी, लेकिन इसने अमेरिकी राष्ट्रपति को यह दावा करने से नहीं रोका।

इन मुद्दों के अलावा चार अन्य नये विधेयक इस सत्र में आ सकते हैं, वे हैं - मणिपुर वस्तु एवं सेवा कर (संशोधन) विधेयक, जन विश्वास (प्रावधानों में संशोधन) विधेयक, भारतीय प्रबंधन संस्थान (संशोधन) विधेयक और कराधान कानून (संशोधन) विधेयक।

साथ ही केंद्र सरकार मानसून सत्र के दौरान आयकर विधेयक, 2025 पेश करने वाली है। यह विधेयक फरवरी में लोकसभा में पेश किया गया था और इसे निचले सदन की प्रवर समिति को भेज दिया गया था। समिति ने बुधवार (16 जुलाई) को अपनी रिपोर्ट स्वीकार कर ली और इसे सोमवार, 21 जुलाई को लोकसभा में पेश किए जाने की संभावना है। सरकार मणिपुर में राष्ट्रपति शासन की अवधि बढ़ाने के लिए संसद की मंज़ूरी लेने और राज्य की अनुदान मांगों को सदन की मंज़ूरी के लिए रखने की भी तैयारी में है। इसके अलावा गोवा राज्य के विधानसभा क्षेत्रों में अनुसूचित जनजातियों के प्रतिनिधित्व का पुनर्समायोजन विधेयक, 2024, व्यापारिक नौवहन विधेयक, 2024 और भारतीय बंदरगाह विधेयक, 2025 लोकसभा में मंज़ूरी के लिए लंबित हैं।

शनिवार को, विपक्षी दलों के इंडिया ब्लॉक ने अपने 24 घटक दलों के साथ एक वर्चुअल बैठक की, जिसमें आठ प्रमुख मुद्दों पर आम सहमति बनी, जिन्हें वे मानसून सत्र के दौरान उठाने की योजना बना रहे हैं, इनमें भारत की विदेश नीति और बिहार में चुनाव आयोग द्वारा जारी मतदाता सूची संशोधन शामिल हैं। सत्र के दौरान जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग भी उठाई जाएगी। लोकसभा में विपक्ष के नेता और वरिष्ठ कांग्रेस नेता राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने हाल ही में इस विषय पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा था। नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता और जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी कहा है कि विपक्ष को इस मांग पर अडिग रहना चाहिए।

संसद का मॉनसून सत्र भी लोकसभा उपाध्यक्ष के चुनाव के बिना ही समाप्त होने की संभावना है, हालांकि यह एक संवैधानिक आवश्यकता है। चूंकि यह पद आमतौर पर विपक्ष के पास जाता है, इसलिए 2019 और 2024 के बीच उपाध्यक्ष के चुनाव का कोई प्रयास नहीं किया गया। जून 2024 में वर्तमान लोकसभा के शुरू होने के बाद से कोई चुनाव नहीं हुआ है। ऐसा कोई संकेत नहीं है कि सरकार या विपक्ष मानसून सत्र के दौरान इसके लिए दबाव डाल रहे हैं।

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