हालात

बिहार चुनाव से पहले 'टोपी विवाद' में घिरे नीतीश कुमार, राज्य में बढ़ी सियासी सरगर्मी

बिहार की राजनीति में मुस्लिम वोट अहम माने जाते हैं। करीब 18 फीसदी आबादी वाला यह समुदाय चुनावी समीकरण बदलने की ताकत रखता है।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया 

बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 'टोपी' विवाद में घिरते नजर आ रहे हैं। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे एक वीडियो ने राजनीतिक हलचल तेज कर दी है। इस वीडियो में नीतीश कुमार बिहार सरकार के मंत्री मोहम्मद जमा खान को टोपी पहनाते हुए दिखाई दे रहे हैं। आरोप यह है कि मुख्यमंत्री ने खुद टोपी पहनने से इनकार कर दिया और टोपी मंत्री को पहना दी।

Published: undefined

नीतीश पर उठे सवाल और राजनीति शुरू

'टोपी' विवाद के बाद नीतीश कुमार के आलोचकों ने उन्हें घेरना शुरू कर दिया है। आरजेडी नेता मृत्युंजय तिवारी ने इस मुद्दे पर निशाना साधते हुए कहा कि नीतीश कुमार पूरी तरह अचेत हो चुके हैं। तिवारी ने याद दिलाया कि नीतीश कुमार पहले कहते थे कि उन्हें "टोपी भी पहननी है और टीका भी लगाना है", लेकिन हाल ही में सीतामढ़ी दौरे पर उन्होंने मंदिर में टीका लगाने से भी इनकार कर दिया था। अब टोपी पहनने का मामला सामने आ गया है। आरजेडी का आरोप है कि मुख्यमंत्री न तो किसी धर्म का सम्मान कर रहे हैं और न ही किसी तरह का स्पष्ट निर्णय ले पा रहे हैं। नीतीश का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। नीचे दिए गए वीडियो में आप पूरे प्रकरण को देख सकते हैं।

Published: undefined

मुस्लिम राजनीति और नीतीश कुमार की मुश्किलें

बिहार की राजनीति में मुस्लिम वोट अहम माने जाते हैं। करीब 18 फीसदी आबादी वाला यह समुदाय चुनावी समीकरण बदलने की ताकत रखता है। पारंपरिक तौर पर मुसलमानों का बड़ा वर्ग आरजेडी को वोट करता है। यही वजह है कि आरजेडी को ‘एमवाई समीकरण’ की पार्टी भी कहा जाता है। हालांकि, राज्य के हिस्सों हिस्सों में मुसलमान जेडीयू और कांग्रेस के साथ भी रहे हैं।

2020 के विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने सीमांचल में 5 सीटों पर जीत दर्ज कर मुस्लिम वोटों में सेंध लगाई थी। हालांकि बाद में उसके 4 विधायक राजद में शामिल हो गए।

नीतीश कुमार अक्सर यह दावा करते हैं कि उनके शासनकाल में बिहार में कभी सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ। लेकिन बीते कुछ सालों में उनका मुस्लिम वोट बैंक खिसकता दिखा है। तीन तलाक और वक्फ बिल जैसे मुद्दों पर जेडीयू द्वारा केंद्र सरकार का समर्थन करना मुस्लिम समाज को खटका। इतना ही नहीं, इफ्तार पार्टी तक का विरोध हुआ और कई मुस्लिम नेताओं ने पार्टी पदों से इस्तीफा तक दे दिया।

Published: undefined

जेडीयू और मुसलमानों का रिश्ता

2020 का चुनाव जेडीयू के लिए इस मायने में ऐतिहासिक रहा कि उसके टिकट पर एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं जीत पाया। इससे पहले 2005 में चार, 2010 में सात और 2015 में पांच मुस्लिम उम्मीदवार जेडीयू से विधानसभा पहुंचे थे। 2020 में कैबिनेट विस्तार के समय भी कोई मुस्लिम चेहरा शामिल नहीं किया गया। आलोचना बढ़ने पर नीतीश ने बसपा से जीते जमा खान को अपनी पार्टी में शामिल कर मंत्री बनाया। वही जमा खान अब "टोपी विवाद" के केंद्र में हैं।

Published: undefined

सीमांचल और मुस्लिम वोट

सीमांचल के कटिहार, अररिया, पूर्णिया और किशनगंज जिलों को मुस्लिम बहुल क्षेत्र माना जाता है। 2020 में AIMIM ने यहीं से 5 सीटें जीती थीं। पटना और भागलपुर में भी मुस्लिम वोट निर्णायक भूमिका निभाते हैं। यही वजह है कि चुनाव से ठीक पहले उठा यह विवाद नीतीश कुमार के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है।

Published: undefined

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: undefined