बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन (एसआईआर) को लेकर सियासत उफान पर है। विपक्षी दल लगातार चुनाव आयोग के कदम की लगातार आलोचना कर रहे हैं। विपक्ष ने राजनीतिक दलों की सलाह के बिना ही चुनाव आयोग की जल्दबाजी पर सवाल खड़ा कियाहै । कांग्रेस से लेकर तृणमूल कांग्रेस और वाम दलों ने रविवार को कहा कि चुनाव आयोग को बिहार जैसे एसआईआर के लिए निर्देश देने से पहले सुप्रीम कोर्ट में मामले के निपटारे का इंतजार करना चाहिए था।
ध्यान रहे कि बीते गुरुवार (10 जुलाई, 2025) को बिहार में एसआईआर पर चिंता जाहिर करने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को एसआईआर पर आगे बढ़ने से रोकने से तो इनकार कर दिया था, लेकिन सुझाव दिया कि चुनाव आयोग वोटर लिस्ट को अपडेट करने के लिए आधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड और राशन कार्ड पर भी विचार करे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग 21 जुलाई तक जवाबी एफिडेविट दाखिल कर सकता है और मामले की अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी।
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इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार में मतदाता सूचियों के गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को चुनौती देने वाली सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर होने के एक दिन बाद चुनाव आयोग ने अन्य सभी राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को पत्र लिखकर उन्हें इसी तरह की तैयारी शुरू करने का निर्देश दिया है। इसी निर्देश पर विपक्षी दलों के नेताओं ने कहा कि चुनाव आयोग को देश भर में इसी तरह की प्रक्रिया शुरू करने से पहले सुप्रीम कोर्ट में मामले के नतीजे का इंतजार करना चाहिए था।
कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य अभिषेक मनु सिंघवी का कहना था कि, ‘चुनाव आयोग का बयान वास्तव में निरर्थक है क्योंकि सब कुछ सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामले के नतीजे पर निर्भर करेगा। सिर्फ़ 28 जुलाई को ही नहीं, बल्कि उसके बाद की कुछ तारीखों पर भी। सिर्फ उसी नतीजे के आधार पर, बाकी सब आगे बढ़ेगा या नहीं। सिर्फ अंधराष्ट्रवादी बयान देना निरर्थक है। सभी को सुप्रीम कोर्ट की पूरी कार्यवाही के अपने आप निपट जाने का इंतजार करना चाहिए।’
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सिंगवी के अलावा आरजेडी के राज्यसभा सदस्य मनोज कुमार झा ने भी कहा कि, ‘हमारी चिंता बिहार में समय-सीमा और चुनाव आयोग द्वारा इस तरह की प्रक्रिया शुरू करने से पहले राजनीतिक दलों से परामर्श करने से इनकार करने को लेकर है। जैसा कि मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर जमीनी रिपोर्टों से पता चलता है, चुनाव आयोग बेशर्मी से केवल हेडलाइन मैनेजमेंट पर ध्यान दे रहा है और गणनाकर्ताओं और गणना से गुजरने वालों की चिंताओं का समाधान करने में विफल रहा है।’
वहीं समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सदस्य जावेद अली खान ने भी वोटर लिस्ट अपडेट को लेकर चुनाव आयोग और बीजेपी दोनों पर निशाना साधा। अली ने कहा, ‘यह सबकुछ मनमाने तरीके से किया जा रहा है। आयोग यह काम पूरे देश में कर सकता है, लेकिन उसे इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का इंतजार करना चाहिए।’ टीएमसी की राज्यसभा सदस्य सागरिका घोष ने भी कहा कि चुनाव आयोग को जवाब देना चाहिए कि क्या वह वोटर लिस्ट रिवीजन के नाम पर नागरिक रजिस्टर तैयार कर रहा है।
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सागरिका घोष ने कहा, ‘हमारी पार्टी का कहना है कि एसआईआर का टारगेट बंगाल है। यह बैक डोर एनआरसी ही है । चुनाव आयोग को जवाब देना चाहिए कि क्या वह नागरिक रजिस्टर तैयार कर रहा है, जो उसका काम ही नहीं है। सच तो यह है कि लाखों भारतीयों के पास वे दस्तावेज नहीं होंगे जो चुनाव आयोग इस प्रक्रिया के लिए मांग रहा है। इससे चुनाव आयोग को यह तय करने का विवेकाधिकार मिल जाता है कि कौन से दस्तावेज मान्य हैं और वोटर्स के नाम वोटर लिस्ट से हटा दिए जाएं। यह एक दुर्भावनापूर्ण प्रक्रिया है जिसका लक्ष्य सबसे गरीब और सबसे कमजोर वर्ग है। चुनाव आयोग अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जा रहा है।’
सीपीएम नेता जॉन ब्रिटास का भी कहना है कि विपक्ष फर्जी मतदाताओं को हटाने के लिए मतदाता सूची संशोधन के खिलाफ नहीं है। उन्होंने कहा, ‘यह पिछले दरवाजे से एनआरसी लागू करने और मतदाताओं के साथ छेड़छाड़ करने की चाल नहीं होनी चाहिए। इसके अलावा, चुनाव आयोग को सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी पर भी ध्यान देना चाहिए कि नागरिकता पर फैसला करना चुनाव आयोग का काम नहीं है। उन्हें इस तरह की कवायद के लिए राजनीतिक दलों को भी विश्वास में लेना चाहिए।’
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सीपीआई नेता और महासचिव डी राजा ने कहा कि चुनाव आयोग को पूरे भारत में मतदाता सूचियों के संशोधन की जल्दबाजी के बारे में बताना चाहिए। राजा ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई कर रहा है, और चुनाव आयोग ने अभी तक कोई जवाब नहीं दिया है। इतनी जल्दी क्यों? क्योंकि केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में अगले साल चुनाव हैं। चुनाव आयोग को बताना चाहिए कि इतनी जल्दी क्यों है।’
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