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महाराष्ट्र में बदले सियासी समीकरणों की इनसाइड स्टोरी: पवार परिवार की पॉवर ने कर दिया बीजेपी को चित

थोड़ा अजीब लगेगा लेकिन महाराष्ट्र के घटनाक्रम को देखें, तो राजनीति के साथ-साथ परिवार के एका का महत्व भी समझ में आता है। बीजेपी भले ही बड़े एनडीए का नेतृत्व करने वाली पार्टी का दंभ करती हो, लगता है, संघ परिवार के लोगों को इसका अंदाजा कतई नहीं है कि परिवार किस तरह चलते हैं।

नवजीवन ग्राफिक्स
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अफवाह फैलाने में संघ परिवार का कोई सानी नहीं है। उसने एनसीपी प्रमुख शरद पवार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संसद भवन में हुई मुलाकात को लेकर ऐसा समां बांधा जैसे पवार ने बीजेपी को सरकार बनाने का मौका दे दिया हो। अजीत पवार को इसी आधार पर बीजेपी नेतृत्व ने बरगला भी लिया। लेकिन अजीत को वापस अपने फोल्ड में लाने के लिए शरद पवार ने परिवार के मुखिया के तौर पर सारे कदम उठाए और सबको यह बताया कि सुबह का भूला शाम को घर लौट आए, तो उसे माफ करने में कोई दिक्कत नहीं है।

Published: 28 Nov 2019, 9:39 AM IST

अजीत जब बीजेपी के साथ चले गए थे, तब भी शरद पवार और उनके परिवार के किसी सदस्य ने उनके खिलाफ कोई कटु वचन बोलने से लगातार परहेज किया। फडणवीस की सरकार बनने के दिन शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने जब यह कहा कि लगता है, पार्टी और परिवार में बंटवारा हो गया है, तब भी उनकी पीड़ा ही झलकी थी। शरद पवार ने अपने सभी लोगों को कहा हुआ था कि वह अजीत को वापस ले आएंगे, तो उनका यही आत्मविश्वास था कि वह परिवार के मुखिया हैं और उनकी बात परिवार का कोई सदस्य टाल नहीं सकता।

शरद पवार की पत्नी प्रतिभा भी चाहती थीं कि अजीत को अकेला न छोड़ा जाए, उन्हें वापस अपने साथ लाया जाए। इसीलिए अजीत से संपर्क का जिम्मा ऐसे लोगों को ही सौंपा गया जो पवार परिवार से निकट संपर्क रखते हैं। उनका सिर्फ एक ही संदेश था कि अजीत के कदम से शरद सहमत नहीं हैं लेकिन अगर वह लौट आएं, तो उनसे कोई कुछ नहीं कहेगा। एक बार कदम आगे बढ़ा देने के बाद अपने पैर पीछे खींचना मुश्किल होता ही है। अजीत के लिए मुश्किल, बस, इस झिझक को तोड़ने की थी।

Published: 28 Nov 2019, 9:39 AM IST

26 नवंबर की सुबह अजीत ने शरद पवार से मिलने से पहले यह झिझक तोड़ दी। शरद के सामने आने से पहले ही उनकी आंखों में आंसू थे। इस मुलाकात के बाद जो कुछ हुआ, वह सबके सामने है।

दरअसल, बीजेपी ने महाराष्ट्र में ऑपरेशन कमल कर्नाटक की तर्ज पर शुरू किया था। अमित शाह और देवेंद्र फडणवीस को विश्वास था कि जिस तरह चुनाव से पहले कांग्रेस और एनसीपी में तोड़फोड़ की गई थी, उसी तरह से सत्ता का लालच देकर शिवसेना और एनसीपी से विधायकों को तोड़कर बहुमत का आंकड़ा जुटा लिया जाएगा। इस मिशन में शाह-फडणवीस के साथ चंद्रकांत पाटील, गिरीश महाजन, आशीष शेलार के अलावा नारायण राणे, राधाकृष्ण विखे पाटील और गणेश नाईक भी शामिल थे। इन सबसे मिल रही सूचनाओं से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हर वक्त अपडेट किया जा रहा था। अजीत पवार को उन्होंने बरगला तो लिया लेकिन उनकी गाड़ी शरद पवार के बिछाए चक्रव्यूह में फंस गई।

Published: 28 Nov 2019, 9:39 AM IST

यह भी सच है कि फडणवीस से उनकी ही पार्टी के कई नेता नाराज थे। फडणवीस अपनी ताकत बढ़ाने के लिए दूसरी पार्टी से नेताओं को ले आए और उन्हें टिकट दिया। इसके साथ ही फडणवीस ने उन नेताओं को किनारे कर दिया जो पार्टी में थोड़ी भी हैसियत रखते थे। ये लोग मदद कर सकते थे लेकिन उनमें ऐसा करने को कोई उत्साह तो था नहीं। वैसे, मोदी-शाह की गोद में बैठने से फडणवीस ने आरएसएस को भी नाराज कर दिया। इसलिए देवेंद्र मुख्यमंत्री हों, इसके लिए आरएसएस ने शिवसेना को मनाने का काम नहीं किया जबकि शिवसेना के नेताओं का भी कहना है कि बीजेपी और शिवसेना का मिलन कराना आरएसएस के लिए कठिन काम नहीं था।

Published: 28 Nov 2019, 9:39 AM IST

राजनीतिक विश्लेषक अभय देशपांडे भी मानते हैं कि चुनाव से पहले बीजेपी से गठबंधन तो हो गया था लेकिन तब भी शिवसेना को शक था कि बीजेपी उसके साथ छल करेगी और चुनाव के बाद खुद ही सरकार बनाने की कोशिश करेगी। यह बात सच भी हुई। शिवसेना एनडीए से अलग हुई, तो बीजेपी ने एनसीपी को एनडीए का हिस्सा बनाने की कोशिश की। लेकिन शरद पवार अड़ गए। यहीं बीजेपी गच्चा खा गई। शरद पवार ने अलग- अलग विचारों वाली शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी को जोड़ने में काफी मेहनत की और अब रिमोट कंट्रोल उनके हाथ में है।

राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश अकोलकर का कहना है कि बीजेपी को शिवसेना से डर था क्योंकि उद्धव ठाकरे ने कहा था कि शिवसेना की सरकार बनी तो बुलेट ट्रेन, नाणार प्रोजेक्ट और मेट्रो कार शेड परियोजना को बंद करा देंगे। ये करोड़ों के प्रोजक्ट्स हैं और इसमें किसका कितना इंटरेस्ट हो सकता है, यह आसानी से समझा जा सकता है। अजीत पवार के बारे में अमित शाह और देवेंद्र फडणवीस को पता था कि वह कितने मजबूत हैं लेकिन डराने और तोड़-फोड़ की राजनीति में उनका इस्तेमाल बीजेपी करना चाहती थी। इसमें उसे सफलता नहीं मिली।

Published: 28 Nov 2019, 9:39 AM IST

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Published: 28 Nov 2019, 9:39 AM IST