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बंगाल में रैलियों में बीजेपी नहीं बजा सकती लाउडस्पीकर, सुप्रीम कोर्ट ने कहा, बच्चों की पढ़ाई ज्यादा महत्वपूर्ण

बीजेपी पश्चिम बंगाल में अपनी रैलियों लाउडस्पीकर का इस्तेमाल नहीं कर पाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें पश्चिम बंगाल सरकार ने परीक्षाओं वाले महीने फरवरी और मार्च में लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है।

फोटो :  Sonu Mehta/Hindustan Times via Getty Images
फोटो : Sonu Mehta/Hindustan Times via Getty Images 

केंद्र में सत्तारूढ़ बीजेपी को झटता देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पार्टी की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें पश्चिम बंगाल के उस आदेश को चुनौती दी गई थी जिसमें पार्टी की रैलियों में लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर पाबंदी लगाई गई है। पश्चिम बंगाल सरकार ने स्कूलों में चल रही परीक्षाओं का हवाला देते हुए फरवरी और मार्च माह के दौरान रैलियों में लाउडस्पीकर के इस्तेमाल की इजाजत नहीं दी है।

बीजेपी ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने इस याचिका पर कोई भी आदेश देने से इनकार कर दिया। सुप्रीम द्वारा आदेश न दिए जाने के बाद बीजेपी के वकील मुकुल रोहतगी ने कोर्ट से आग्रह किया उसे कोलकाता हाईकोर्ट में इस मामले को चुनौती देने की इजाजत दी जाए। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने इसे भी मानने से इनकार कर दिया। मुकुल रोहतगी ने अपनी अपील में लोगों तक पहुंचने के बुनियादी अधिकारों का हवाला दिया था।

लेकिन, जब सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता हाईकोर्ट जाने की भी इजाज़त नहीं दी तो मुकुल रोहतगी को अपनी याचिका वापस लेना पड़ी, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को वापस लिए जाने की स्थिति में खारिज कर दिया। यह याचिका बीजेपी की पश्चिम बंगाल इकाई ने दायर की थी। याचिका में कहा गया था कि स्कूलों में बोर्ड की परीक्षा के बहाने मार्च महीने के अंत तक पश्चिम बंगाल के हर इलाके में माइक और लाउडस्पीकर बजाने पर निषेधाज्ञा जारी करने संबंधी राज्य सरकार की अधिसूचना गलत है, जो कि राजनीति से प्रेरित है।

लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने यह कहकर इस याचिका को खारिज कर दिया कि बच्चों की पढ़ाई चुनाव प्रचार से ज्यादा ज़रूरी है। वैसे यह दूसरा मौका है जब बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस बंगाल में प्रचार को लेकर आमने-सामने आ गए हैं। इसके पहले कोर्ट ने बीजेपी रथयात्रा पर लगी पाबंदी को भी हटाने से इनकार कर दिया था, क्योंकि इससे सामुदायिक हिंसा होने का खतरा था।

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