हालात

आपदा राहत पर गैर-बीजेपी शासित राज्यों से सौतेला व्यवहार

हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने प्राकृतिक आपदा के लिए केंद्र सरकार की मदद मांगने के लिए हर उस दरवाजे पर दस्तक दी है, जहां से इसकी थोड़ी भी उम्मीद थी, लेकिन जरूरत के मुताबिक मदद नहीं मिल सकी।

आपदा प्रभावित इलाकों का दौरा करते हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू (फोटो सौजन्य - @SukhuSukhvinder)
आपदा प्रभावित इलाकों का दौरा करते हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू (फोटो सौजन्य - @SukhuSukhvinder) 

हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू को लगातार प्राकृतिक आपदाओं से जूझना पड़ रहा है। नई दिल्ली से लगातार निराशा मिल रही है, इसलिए राहत और पुनर्वास का काम अब अपने भरोसे ही करना है। राज्य के संसाधनों से ही जनजीवन पटरी पर लाने और इन्फ्रास्ट्रक्चर बहाल करने का काम उन्होंने सीख लिया है। लेकिन चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं।

इस हफ्ते की शुरुआत में सुक्खू फिर दिल्ली में थे। 30 जून को मंडी जिले की सिराज घाटी में आई प्राकृतिक आपदा के लिए केंद्र सरकार की मदद मांगने के लिए उन्होंने हर उस दरवाजे पर दस्तक दी जहां से इसकी थोड़ी भी उम्मीद थी। सोमवार को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण से मिले और राज्य की उधार लेने की सीमा बढ़ाने की मांग की। अगले दिन गृहमंत्री अमित शाह से मिले और बताया कि कैसे आपदा में एक हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हो चुका है। सड़कें, पुल, घर ध्वस्त हो गए हैं। जिंदगी को फिर से पटरी पर लाने के लिए तुरंत मदद की जरूरत है। 16वें वित्त आयोग के अध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया से मिले और एक ‘ग्रीन फंड‘ बनाने की मांग की ताकि प्राकृतिक आपदा की स्थिति में पहाड़ी राज्यों की तुरंत मदद की जा सके। 

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दूसरे गैर-बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की तरह ही दिल्ली में सुक्खू का नरम-गरम स्वागत तो होता है, लेकिन हाथ कुछ नहीं लगता। विशेष मदद की उनकी मांग लंबे समय तक लटका दी जाती है। जब दिल्ली अपनी तिजोरी को थोड़ा खोलती भी है, तो कहीं कोई उदारता नहीं होती। प्राकृतिक आपदा के समय केंद्र सरकार का नजरिया हमेशा मानवीय नहीं होता, उसमें राजनीति भी भूमिका निभाती है।

उत्तराखंड के जोशीमठ में 2023 में त्रासदी हुई थी। चमोली जिले के इस नगर में जमीन के साथ ही घरों में दरारें पड़ने लगीं। जल्द ही वहां सड़कों-गलियों में दरारे पड़ने लगीं। कुछ जगहों पर लोगों को अपने घर छोड़ने पड़े। सरकार ने पुनर्वास के साथ ही घरों की मरम्मत की योजना बनाई। इसके लिए उत्तराखंड ने केंद्र सरकार से 2,943 करोड़ रुपये की मदद मांगी। बाद में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से 3,500 करोड़ रुपये के पैकेज की मांग की। हिमाचल की विशेष पैकेज की मांग की तरह ही उत्तराखंड को मदद देने में भी केंद्र सरकार ने दो साल लगा दिए। इस साल जून में केन्द्र ने जोशीमठ त्रासदी के लिए 1,658 करोड़ रुपये की मदद की घोषणा भी की। यानी उत्तराखंड ने शुरू में जितनी मदद मांगी थी, केंद्र ने उसकी 56 फीसद मदद उसे दी।

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इसके विपरीत उसी साल हिमाचल में आई आपदा कहीं ज्यादा भयावह थी। बड़ी संख्या में लोगों की जान गई और इन्फ्रास्ट्रक्चर को होने वाला नुकसान भी कहीं बड़ा था। राज्य ने इसके लिए केंद्र से 9,042 करोड़ रुपयों की मदद मांगी। उत्तराखंड के साथ ही उसे मदद देने की जो घोषणा हुई उसकी रकम थी सिर्फ 2,006 करोड़ रुपये। यानी हिमाचल ने धन की जितनी जरूरत बताई, उसे उसका महज 22 फीसद धन ही मिला। 

इससे एक परेशान करने वाला सवाल उठता है - क्या ऐसे मामलों में भी केन्द्र के फैसले इस आधार पर होते हैं कि राज्य में किस दल की सरकार है? आंकड़ें तो कम-से-कम यही बताते हैं।

यह ठीक है कि दो प्राकृतिक आपदाओं की तुलना नहीं हो सकती। तबाही का आकार, भौगोलिक हालात, कितनी आबादी पर उसका असर पड़ा और असर कितना दीर्घकालिक था, इसमें काफी फर्क होता है। लेकिन परेशान करने वाली बात यह है कि किस तरह प्राकृतिक आपदाओं में भी राजनीति खेली जाती है, और वह केंद्र के फैसलों में भी दिखती है। 

आपदा जब किसी बीजेपी शासित राज्य में आती है, तो केंद्र से राहत पैकेज में ज्यादा उदारता होती है। इसके विपरीत हिमाचल जैसे गैर बीजेपी शासित राज्य के मामले में वह देर से आती है और अक्सर अपर्याप्त होती है। यह रवैया आपदा राहत के मामले में केंद्र सरकार की निष्पक्षता पर सवाल खड़े करता है। 

आज जब हिमाचल प्रदेश फिर से प्राकृतिक आपदा से मुकाबिल है, जरूरत तत्काल मदद की है, लेकिन न्यूनतम मदद मिल रही है। पिछले अनुभव बताते हैं कि केंद्र से पूरी और समय रहते मदद मिलने की उम्मीद करना निरर्थक है। 

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हिमाचल प्रदेश में पिछले तीन साल में एक के बाद एक आपदाओं में राज्य का 21,000 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है। यहां एक और बात पर ध्यान देना जरूरी है कि प्रदेश के कुल बजट का आकार ही 58,500 करोड़ रुपये से कम है। 

इस साल जून के आखिर में मंडी जिले में हुई बादल फटने की कईं घटनाएं हुईं जिसके कारण सेराज घाटी और आस-पास की जगहों पर भीषण तबाही हुई। इस आपदा में 100 से ज्यादा लोेगों की जान जाने की खबर है और बहुत से लोग अभी भी लापता हैं। जिले की 248 सड़कें या तो नष्ट हो गईं या भारी मात्रा में मलबा गिरने के कारण अवरुद्ध हो गईं। दर्जनों पुल टूट गए। 994 पाॅवर ट्रांस्फार्मर नष्ट हो गए। गांवों और कस्बों में पेयजल की सप्लाई बाधित हो गई। सड़कें और पाॅवर एवं पेयजल की सप्लाई फिर से शुरू करने के लिए सरकारी अमला और कईं संगठन पूरी तरह से जुटे हुए हैं, लेकिन यह काम आसान नहीं है। 

सबसे कठिन है लोगों तक तुरंत मदद पहुंचाना। राज्य सरकार ने राहत शिविर लगाए हैं। पीड़ित परिवारों को 5,000 रुपये की नगद राशि तुरंत मदद के रूप में भी दी गई है। मदद देने वाले भी जानते हैं कि यह पर्याप्त नहीं है। मुख्यमंत्री ने यह घोषणा भी की है कि जिनके घर इस आपदा में बह गए हैं या ध्वस्त हो गए हैं, उन्हें घर बनाने के लिए सात लाख रुपये दिए जाएंगे। सबसे बड़ी चुनौती है इन्फ्रास्ट्रक्चर को फिर से खड़ा करना, जिसका खर्च राज्य सरकार के लिए तमाम मुश्किलें खड़ी कर सकता है।

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क्या उम्मीद की जाए कि राज्य सरकार को इसके लिए समय रहते केंद्र से पर्याप्त वित्तीय मदद मिल पाएगी? कम से कम पिछले अनुभव तो हमें यह आश्वासन नहीं देते। यहां 2023 में राज्य में आई प्राकृतिक आपदा को याद करना जरूरी है। पिछले 75 साल में इस क्षेत्र में आई यह सबसे बड़ी आपदा थी। बरसात के मौसम में बादल फटने, बाढ़ आने और भूस्खलन से कईं हिस्सों में भारी तबाही हुई थी। 550 से ज्यादा लोगों की जान गई थी। 12 हजार घर या तो पूरी तरह तबाह हो गए थे या उन्हें भारी नुकसान पहुंचा था। इन्फ्रास्ट्राक्चर को जिस पैमाने पर नुकसान पहुंचा, उसके हाल-फिलहाल के बहुत ज्यादा उदाहरण नहीं हैं।  

तब अनुमान लगाया गया था कि कुल नुकसान 12 हजार करोड़ रुपयों से ज्यादा का हुआ है। राज्य सरकार ने इसकी भरपाई के लिए केन्द्र से ,9042 करोड़ रुपयों की मदद मांगी ताकि यहां की अर्थव्यवस्था और जनजीवन को पटरी पर लाया जा सके।  कईं महीने बाद 12 दिसंबर 2023 को नेशनल डिजास्टर रिस्पांस फंड की ओर से 633.73 करोड़ रुपयों की मदद की मंजूरी दी गई। इससे कहीं ज्यादा तो तब तक राज्य सरकार खुद खर्च कर चुकी थी। 

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हालात बिगड़ते देख कर खुद सरकार ने अपने बजट से 4493.43 करोड़ रुपये का खर्च आपदा राहत में किया। दूसरे पहाड़ी राज्यों की तरह ही हिमाचल की जिस तरह की आर्थिक स्थिति है, उसमें यह रकम बहुत बड़ी थी। इसका असर राज्य की कमजोर माली हालत पर भी पड़ा। इस साल के शुरू में एक ऐसी स्थिति भी आ गई थी जब राज्य सरकार के कर्मचारियों को महीने की पहली तारीख को दी जाने वाली तनख्वाह पांच तारीख को दी गई। रिटायर कर्मचारियों की पेंशन तो और भी लेट हो गई। 

इन हालात पर तो किसी तरह काबू पा लिया गया, लेकिन पूरे दो साल तक लगातार मांग करने और याद दिलाने के बाद भी आपदा राहत के नाम पर केन्द्र से जितनी रकम मांगी गई थी, उसका 22 फीसद धन ही हिमाचल प्रदेश को मिला।

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