कोरोना महामारी के कुप्रबंधन और किसानों के मसले पर घिरी खट्टर सरकार ने मंगलवार को हरियाणा विधानसभा के मानसून सत्र का तीन दिन में ही समापन कर दिया। विपक्ष मांग करता रहा कि ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा के लिए सत्र की अवधि बढ़ाई जाए, लेकिन सरकार की मंशा ही नहीं थी। हद तो तब हो गई जब स्पीकर ने किसानों के मुद्दे को कोई मसला मानने से ही इनकार कर दिया। ऑक्सीजन की कमी से प्रदेश में हुई मौतों पर अपने वादे के मुताबिक सीएम ने सदन में विस्तृत बयान देना तक मुनासिब नहीं समझा। भीषण त्रासदी पर चर्चा से भागी सरकार की मंशा का अंदाजा सत्र समापन के बाद मीडिया के सामने आए मुख्यमंत्री के किला फतेह करने वाले अंदाज में विपक्ष पर सवाल उठाने से ही हो गया।
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विधानसभा के मानसून सत्र से पहले ही उम्मीद जताई गई थी कि मुश्किल सवालों से घिरी खट्टर सरकार हर वह कोशिश करेगी, जिससे सदन में जवाबदेही की नौबत ही न आए। इसमें सरकार का पहला प्रयास था कि सत्र को छोटा रखा जाए, जिसमें आवश्यक विधायी कार्यों को निबटाते हुए विपक्ष को अहम मसलों पर चर्चा का कोई अवसर ही न देने की रणनीति शामिल थी। वही हुआ भी। बेरोजगारी, किसान, कोरोना और भ्रष्टाचार जैसे मुश्किल सवालों पर कांग्रेस विधायकों के तकरीबन तीन दर्जन ध्यानाकर्षण प्रस्ताव स्वीकार ही नहीं किए गए।
किसान और कोरोना के तो नाम से ही सरकार विधानसभा में भागती नजर आई। यहां तक कि सत्र के दूसरे दिन ऑक्सीजन की कमी से मौतों के मुद्दे पर विपक्ष से आधा घंटा चर्चा कर लेने की बात कहने वाले सीएम ने अंतिम दिन नाम तक नहीं लिया। सत्र समापन के बाद मीडिया के सामने आए सीएम खट्टर ने फिर अपना वही बयान दोहरा दिया कि ऑक्सीजन की कमी से प्रदेश में कोई मौत नहीं हुई है।
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जगबीर सिंह मलिक और बिशनलाल सैनी समेत तमाम कांग्रेस विधायक सत्र की अवधि बढ़ाने की मांग करते रहे। इस पर स्पीकर तर्क देते रहे कि विधायी कार्य शेष होगा तो ही सत्र की अवधि बढ़ेगी। किसानों का तो कोई मुद्दा ही मानने से स्पीकर ने इंकार कर दिया। इस पर नेता विरोधी दल भूपिंदर सिंह हुड्डा ने कहा कि "आप कह रहे हो कि कोई विधायी कार्य शेष नहीं है। किसानों का कोई मुद्दा ही नहीं है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि केंद्र और राज्य सरकार मिलकर किसानों से बात करें। इस दौरान विपक्ष के भारी विरोध और शोरगुल के बीच स्पीकर ने सदन अनिश्चितकाल तक स्थगन करने का प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित करा लिया।
इसके बाद शून्यकाल को चलाने के तरीके पर नेता विरोधी दल से स्पीकर की भिड़ंत हो गई। हुड्डा का कहना था कि बोलने के लिए तय किए गए तीन-तीन मिनट के समय में कोई क्या बात रख पाएगा। यही करना है तो जीरो आवर बंद कर दो। हुड्डा का कहना था कि शून्यकाल में अहम मसलों पर ही बात होनी चाहिए। इस दौरान रघुबीर कादियान और जगबीर सिंह मलिक वेल में पहुंच गए। दोनों विधायक स्पीकर से कह रहे थे कि किसानों के मुद्दे पर चर्चा के लिए दिए गए उनके काम रोको प्रस्ताव तक अस्वीकार कर दिए गए। हुड्डा ने गुस्से में स्पीकर से कहा कि मैं आपके चैंबर में आकर बात करूंगा।
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इस दौरान विधानसभा अध्यक्ष और नेता विरोधी दल के बीच जमकर बहस हुई। बीबी बत्रा ने भी कहा कि यह तरीका ठीक नहीं है। सरकार को समर्थन दे रही जेजेपी के विधायक रामकुमार गौतम ने भी कहा कि कम से कम 10-10 मिनट तो विधायकों को बोलने के लिए दिए जाएं। लेकिन सरकार ने तो तय कर रखा था कि विपक्ष को कोई भी ऐसा अवसर नहीं देना है, जिसमें वह उसे मुश्किल में डालने वाले मुद्दे उठा पाए। विपक्ष की मांग नकारते हुए स्पीकर ने यहां भी सत्ता पक्ष के विधायकों के ध्वनि मत से शून्यकाल में बोलने देने के लिए तीन-तीन मिनट के समय का प्रस्ताव पारित करा लिया।
पुलिस कांस्टेबल की भर्ती का पेपर लीक मामले पर घिरने के बाद सरकार के आए हरियाणा लोक परीक्षा (अनुचित साधन निवारण) विधेयक पर बोलते हुए नेता प्रतिपक्ष ने पेपर लीक और भर्ती घोटालों की जांच सीबीआई से करवाने की मांग की। उन्होंने कहा कि मौजूदा सरकार में नौकरियों को परचून की दुकान पर राशन की तरह बेचा जा रहा है। भर्ती पेपर लीक करने से लेकर नौकरी लगने तक हर एक चीज के रेट तय हैं।
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सरकार पर तंज कसते हुए भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि पर्ची और खर्चे की बात करने वाली सरकार ने लखी और करोड़ी पैदा कर दिए हैं। यानी आज ऐसे लोग सक्रिय हैं जो नौकरियां लगवाने के लाखों और पेपर लीक करने के करोड़ों रुपये लेते हैं। उन्होंने कहा कि नया कानून अपनी जगह है, लेकिन भूतकाल में जिन लोगों ने एक के बाद एक पेपर लीक किए और भर्ती घोटालों को अंजाम दिया, सरकार उन पर कार्रवाई से क्यों परहेज कर रही है? आखिर सरकार किसको बचाना चाहती है? जब खुद प्रदेश के गृहमंत्री सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं तो फिर सरकार इससे क्यों भाग रही है?
भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि मौजूदा सरकार के कार्यकाल में सदन की गरिमा और गंभीरता दोनों में कमी आई है। क्योंकि बिना विस्तार से चर्चा और विपक्ष को बहस का पूरा मौका दिए कानून पास कर दिए जाते हैं। इसकी वजह से कानूनों में कई खामियां रह जाती हैं। बार-बार मांग करने के बावजूद सरकार ने सत्र की अवधि को नहीं बढ़ाया। इतना ही नहीं किसानों और महंगाई समेत कई मुद्दों पर चर्चा के लिए दिए गए प्रस्ताव अस्वीकार कर दिए। सत्र चलाने के नाम पर सरकार सिर्फ खानापूर्ति करती नजर आई।
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