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लॉकडाउन से मजदूरों के उदास चेहरे, सूनी आंखें, भविष्य की चिंता और बसी बसायी गृहस्थी छोड़कर आने का छलका दर्द...

अपने और अपने परिजनों के लिए खुशियां लाने गए परदेश, अब परदेसी बनकर दुखों का अंबार लेकर लौटे हैं। कोरोना के संक्रमण के बीच संक्रमित होने का भय लेकर अहमदाबाद से मुजफ्फरपुर जंक्शन पहुंचे प्रवासी मजदूरों की पीड़ा उनके आंखों में छिपे दर्द को बयां कर रही है।

फोटो: Getty Images
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कोरोना लॉकडाउन से परेशान प्रवासी मजदूरों के उदास चेहरे, सूनी आंखें झकझोरने के लिए काफी है। भविष्य की चिंता और बसी बसायी गृहस्थी को छोडकर आने का दर्द कोई इनसे जाने। अपने और अपने परिजनों के लिए खुशियां लाने गए परदेश, अब परदेसी बनकर दुखों का अंबार लेकर लौटे हैं। कोरोना के संक्रमण के बीच संक्रमित होने का भय लेकर अहमदाबाद से मुजफ्फरपुर जंक्शन पहुंचे प्रवासी मजदूरों की पीड़ा उनके आंखों में छिपे दर्द को बयां कर रही है।

Published: 14 May 2020, 1:58 PM IST

अहमदाबाद से कई जिलों के 1600 से अधिक प्रवासी मजूदरों को लेकर आई विशेष ट्रेन मुजफ्फरपुर पहुंची। प्रवासी मजदूरों ने कहा कि इस महामारी के दौर में वापस आने के अलावे कुछ बचा नहीं था। आने वाले मजदूर कहते हैं, “जब पहली बार लकडाउन का ऐलान हुआ था तो हमने सुना कि हमारे कई मजदूर पैदल ही घरों को लौटने के लिए सैकड़ों किलोमीटर चले। हम भी तब अपने घर लौटना चाहते थे लेकिन स्थानीय प्रशासन की ओर से हमें सारी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने का वादा देकर रोक लिया गया। लेकिन बाद में हमारे लिए फिर खाने पर भी आफत हो गया।”

Published: 14 May 2020, 1:58 PM IST

मोतिहारी के कृष्ण कुमार अपने कुछ लोगों के साथ झोला, बैग और पानी का डिब्बा लिये प्लेटफार्म से बाहर निकलते है। ये सभी एक बड़ी कंस्ट्रक्शन एजेंसी में राजमिस्त्री और लेबर का काम करते थे। सभी ने एक साथ कहते हैं कि अब नमक-रोटी खाकर गुजारा कर लेंगे, पर दूसरे प्रदेश कमाने नहीं जाएंगें।

वे कहते हैं, “जिस तरीके से लगभग डेढ़ महीने का समय कटा है, इसे जीवन में कभी नहीं भूल सकते हैं। अपने गांव में ही जो मिलेगा कमा खा लेंगे।” इधर, अहमदाबाद से लौटे वीरेंद्र पासवान की चिंता भविष्य को लेकर है। उन्होंने कहा, “हमलोग दिहाड़ी मजदूर हैं। कोरोना के डर से वापस लौट आए। वहां दो महीने से काम नहीं मिला, अब अगर यहां भी काम नहीं मिलेगा तो क्या करेंगे। कोरोना के डर से भूखे तो घर में नहीं रह सकते।”

Published: 14 May 2020, 1:58 PM IST

मुजफ्फरपुर आने वाले सभी प्रवासी मजदूरों की स्क्रीनिंग के बाद प्रशासन द्वारा उपलब्ध कराए गए बसों से उन्हें उनके प्रखंडों या उनके संबंधित जिलों को रवाना कर दिया गया। इधर, कर्नाटक से विशेष ट्रेन से दानापुर रेलवे स्टेशन पहुंचे मोहम्मद कलाम बेंगलुरू के एक कंपनी में नौकरी करते थे। इन्होंने कहा कि पॉकेट में पैसा नहीं था। इस ट्रेन को पकड़ने के लिए 35 किलोमीटर पैदल आना पड़ा।

इस बीच, राजस्थान के कोटा से करीब 750 छात्र बुधवार को दानापुर पहुंचे। प्रत्येक छात्रों को सैनेटाइज कर उन्हें फूड पॉकेट दिया गया और उन्हें सरकारी और निजी वाहनों से उनके गंतव्य को रवाना कर दिया गया। इस दौरान रेलवे और पटना पुलिस की टीम रेलवे स्टेशन पर मौजूद रही।

Published: 14 May 2020, 1:58 PM IST

इधर, सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के सचिव अनुपम कुमार ने बताया कि आपदा प्रबंधन विभाग के परिवहन नोडल पदाधिकारी से अभी तक प्राप्त सूचना के अनुसार बुधवार को 25 ट्रेनें आई थी, जिससे 34,629 लोग यहां पहुंचे। उन्होंने कहा, “मुख्यमंत्री ने निर्देश दिया है कि 7-8 दिनों के अंदर बाहर से आने वाले लोगों को लाने के लिए समन्वय कर उसकी व्यवस्था की जा रही है।”

उन्होंने बताया, “11 मई तक 115 ट्रेनों के माध्यम से 1 लाख 37 हजार 401 लोग अब तक राज्य में आ चुके हैं। 267 ट्रेनों के माध्यम से 4 लाख 27 हजार 200 और लोगों के राज्य में लाए जाने की योजना है लेकिन यह अंतिम सूची नहीं है।”

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Published: 14 May 2020, 1:58 PM IST

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Published: 14 May 2020, 1:58 PM IST