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योगी के पिता का पिंडदान करने बदरीनाथ जा रहे विधायक अमनमणि के किस्से में कई गांठ, इतना आसान नहीं इनका खुलना

बीजेपी की उत्तर प्रदेश की योगी और उत्तराखंड की रावत सरकारों में विधायक अमनमणि त्रिपाठी के परिवार की काफी गहरी पैठ है। मधुमिता शुक्ला की हत्या के मामले में माता-पिता के सजायाफ्ता और खुद के जमानत पर होने के बावजूद दबंग विधायक के रसूख में कोई कमी नहीं है।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

पत्नी की हत्या के मामले में जमानत पर चल रहे उत्तर प्रदेश के नौतनवा के निर्दलीय विधायक अमनमणि त्रिपाठी की गिरफ्तारी, नाम के लिए ही सही, ऐसे ही नहीं हुई। वह यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दूर-दूर तक रिश्तेदार नहीं हैं, लेकिन फिर भी योगी के पिता का पिंडदान करने बदरीनाथ जा रहे थे। खास बात ये है कि वहां का कपाट मई के दूसरे हफ्ते में खुलने वाला है।

विधायक अमनमणि को बदरीनाथ जाने के लिए लाॅकडाउन पास उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के चहेते अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश ने जारी किया। इस यात्रा को लेकर तमाम किस्म के संदेह की कई सारी वजहें भी हैं। अमनमणि त्रिपाठी अपनी पत्नी सारा सिंह की 9 जुलाई, 2015 को फिरोजाबाद में हुई हत्या के आरोपी हैं और इलाहाबाद हाइकोर्ट से जमानत पर हैं। उनके पिता अमरमणि त्रिपाठी और माता मधुमणि त्रिपाठी कवयित्री मधुमिता शुक्ला की 2003 में हुई हत्या के अपराध में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे हैं।

Published: 05 May 2020, 9:01 PM IST

पहले तो यह जानना जरूरी है कि कोराना महामारी के संक्रमण के भय से उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सरकार ने बदरीनाथ के कपाट खोलने की 30 अप्रैल की तय तिथि बदलकर 15 मई कर दी है। इसका धर्माधिकारियों और शंकराचार्य ने भारी विरोध भी किया। बदरीनाथ के रावल ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी को ऋषिकेश में ही रोक कर क्वारंटाइन में रखा गया है। इन सबके बावजूद यूपी के विधायक अमनमणि को बदरीनाथ और केदारनाथ जाने के लिए लाॅकडाउन पास जारी कर दिए गए।

इसकी वजह बताई गई कि वे योगी आदित्यनाथ के स्वर्गीय पिता आनंद सिंह बिष्ट का बदरीनाथ में पिंडदान करेंगे। यह सब जानते हैं कि पिंडदान पुत्र या पुत्री या फिर निकट संबंधी ही करते हैं और त्रिपाठी इनमें से कुछ भी नहीं हैं। पिंडदान करने का भी अभी समय भी नहीं हुआ है। योगी के पिता का निधन 20 अप्रैल को हुआ और पिंडदान या तर्पण वार्षिक श्राद्ध के बाद ही कराया जाता है। यही नहीं, बदरीनाथ में ब्रह्म कपाल में पिंडदान भी कपाट खुलने के बाद तीर्थ पुरोहितों की मौजूदगी में ही कराया जाता है और फिलहाल बदरीनाथ निर्जन स्थान है।

इन सबके बावजूद अमनमणि और उनकी दबंग टीम को 3 मई को बाकायदा पुलिस एस्कोर्ट कर ले जाया जा रहा था। अगर अमनमणि और उनके साथियों ने चमोली जिले के अधिकारियों को धौंसपट्टी नहीं दिखाई होती, तो वे सीधे बदरीनाथ और केदारनाथ पहुंच भी जाते। हालांकि, सीएम त्रिवेंद रावत के अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश ने 11 लोगों को पास जारी करने और उनकी आवभगत करने के आदेश दिए थे, लेकिन पास केवल 8 लोगों के ही जारी हुए थे।

Published: 05 May 2020, 9:01 PM IST

फिर भी, गिरफ्तार करने की जगह चमोली पुलिस ने त्रिपाठी और उसके 11 अन्य साथियों को कर्णप्रयाग से पहले ही लौटा दिया और जब बवाल हुआ, तो टिहरी पुलिस ने मुनी-की-रेती थाने में इन लोगों के खिलाफ आपदा प्रबंधन अधिनियम-2005 के तहत मामला दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया, लेकिन मात्र निजी मुचलके पर छोड़ दिया। उसके बाद उन्हें उत्तर प्रदेश पुलिस ने भी बिजनौर जिले के नजीबाबाद में गिरफ्तार तो किया, पर जमानत पर छोड दिया।

दरअसल, यह पूरा मामला बहुत सीधा भी नहीं है। विधायक अमनमणि और अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश के संबंधों की कड़ी पर संदेह स्वाभाविक है। अमनमणि के सजायाफ्ता पिता अमरमणि त्रिपाठी ने उत्तराखंड के राज्यपाल के समक्ष दया याचिका दाखिल की है और अभी उस पर फैसला नहीं हुआ है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मधुमिता शुक्ला हत्याकांड का मामला देहरादून की सीबीआई अदालत में ही चला था और 2007 में इसी अदालत ने अमरमणि और उनकी पत्नी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

Published: 05 May 2020, 9:01 PM IST

फिर, सुप्रीम कोर्ट तक यह मामला चला, पर दोनों को कोई राहत नहीं मिली। अब इस सजा को खत्म करने की सिफारिश उत्तराखंड के राज्यपाल वहां की राज्य सरकार की सिफारिश पर ही कर सकते हैं। आम धारणा है कि शासन-प्रशासन के मामले में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत अपर मुख्य सचिव और अपने सबसे अधिक विश्वासपात्र नौकरशाह ओम प्रकाश पर पूर्णतः निर्भर हैं।

वैसे, अमनमणि-अमरमणि परिवार का योगी सरकार में भी पर्याप्त रसूख है। सजायाफ्ता अमरमणि दंपति को देहरादून की जेल में होना चाहिए, लेकिन वे लोग 2012 से ही गोरखपुर में ही कभी मंडलीय जेल, तो कभी गोरखपुर मेडिकल काॅलेज अस्पताल में टाइम पास कर रहे हैं। अमरमणि 2012 में अपनी माता के अंतिम संस्कार के लिए गोरखपुर गए, तो फिर वहीं ठहर गए, जबकि इससे पहले मायावती अपने शासनकाल में अमरमणि को वापस देहरादून भेज चुकी थीं।

Published: 05 May 2020, 9:01 PM IST

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Published: 05 May 2020, 9:01 PM IST