झारखंड के आदिवासी संगठन मोदी सरकार के प्रस्तावित यूनिफार्म सिविल कोड (यूसीसी) के खिलाफ गोलबंद हो रहे हैं। बुधवार को विभिन्न आदिवासी संगठनों की समन्वय समिति के बैनर तले सैकड़ों लोगों ने समान नागरिक संहिता के खिलाफ रांची में राजभवन के सामने धरना दिया और अपना विरोध जताया।
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धरना देने वालों ने यूनिफार्म सिविल कोड लागू होने पर आदिवासियों को होने वाली परेशानियों पर चिंता गहरी जतायी। धरनास्थल पर एक सभा भी हुई, जिसे संबोधित करते हुए आदिवासी संगठनों के वक्ताओं ने कहा कि अगर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू हुआ तो आदिवासियों का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा।
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झारखंड की पूर्व मंत्री गीताश्री उरांव ने कहा कि यूनिफार्म सिविल कोड लागू करना बीजेपी के एजेंडे में है। जब भी चुनाव की बारी आती है, यह मुद्दा गर्म हो जाता है। एक बार फिर से यह मुद्दा गर्म है। अगर सरकार इसे लागू करती है तो इससे आदिवासियों के अधिकारों का हनन होगा। क्योंकि आदिवासियों को संविधान में विशेष दर्जा मिला हुआ है। आदिवासियों की शादी हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत नहीं होती है। इनके संबंध विच्छेद में भी अलग तरीका अपनाया जाता है। आदिवासियों में सामाजिक तौर पर इसका निपटारा होता है।
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अन्य वक्ताओं ने कहा कि यूनिफार्म सिविल कोड लागू कर केंद्र सरकार आदिवासियों का हक नहीं छीन सकती। यह हमारे लिए अधिकार की लड़ाई है। हम किसी भी कीमत पर इस लड़ाई से पीछे नहीं हटेंगे। इधर, आदिवासी अधिकार सुरक्षा मंच ने इस बाबत लॉ कमीशन ऑफ इंडिया को पत्र भेजा है। मंच के संयोजक लक्ष्मी नारायण मुंडा ने कहा कि यूसीसी से केवल आदिवासी ही नहीं, बल्कि दलित, अल्पसंख्यक और पिछड़े वर्ग के लोगों का सामाजिक ताना-बाना बुरी तरह प्रभावित होगा।
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