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उन्नाव रेप केस: कुलदीप सेंगर को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका, जेल ही रहना होगा, हाई कोर्ट के 'जमानत' आदेश पर लगी रोक

सुनवाई के दौरान सीबीआई की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी दलीलें रखीं। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट ने कई अहम पहलुओं पर विचार नहीं किया, जबकि यह मामला एक नाबालिग पीड़िता से जुड़ा है।

कुलदीप सेंगर को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका, जेल ही रहना होगा
कुलदीप सेंगर को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका, जेल ही रहना होगा फोटो: सोशल मीडिया

उन्नाव रेप केस में सजायाफ्ता पूर्व विधायक कुलदीप सेंगर को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट द्वारा दिए गए जमानत के आदेश पर रोक लगा दी है। अब सुप्रीम कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए सेंगर की जमानत पर फैसला सुनाया है, हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है। सीबीआई के वकील पहले ही इस मामले को एक भयावह अपराध बताते हुए हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ विरोध करते हुए  सख्त से सख्त सजा की मांग की गई।

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सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा?

चीफ जस्टिस (सीजेआई) सूर्यकांत ने कहा कि तमाम सवाल हैं कि जिनका जवाब बाद में भी लिया जा सकता है। फिलहाल इस मामले में हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की जरूरत है। लोकसेवक हैं या नहीं, इस व्याख्या पर भी विचार करेंगे।

सीजेआई ने कहा कि फिलहाल हम आदेश पर रोक लगाने के पक्ष में है। सामान्यतः सिद्धांत यह है कि चूंकि व्यक्ति अदालत से बाहर चला गया है, इसलिए अदालत उसकी स्वतंत्रता नहीं छीनती। लेकिन, यहां स्थिति विशिष्ट है क्योंकि वह एक अन्य मामले में जेल में है

सीजेआई ने कहा कि यह भी तय किया जाएगा कि आरोपी लोकसेवक की श्रेणी में आता है या नहीं और इस व्याख्या पर अदालत आगे विचार करेगी। उन्होंने स्पष्ट किया कि सामान्य तौर पर यदि कोई व्यक्ति जेल से बाहर है तो अदालत उसकी स्वतंत्रता में हस्तक्षेप नहीं करती, लेकिन इस मामले की परिस्थितियां अलग हैं क्योंकि आरोपी एक अन्य मामले में पहले से ही जेल में बंद है।

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सीबीआई का पक्ष

सुनवाई के दौरान सीबीआई की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी दलीलें रखीं। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट ने कई अहम पहलुओं पर विचार नहीं किया, जबकि यह मामला एक नाबालिग पीड़िता से जुड़ा है। उन्होंने यह भी बताया कि सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के बाहर प्रदर्शन हो रहे हैं, जिस कारण अदालत परिसर में भारी पुलिस बल तैनात किया गया है।

एसजी मेहता ने कहा कि अपराध के समय पीड़िता की उम्र मात्र 15 साल 10 महीने थी और यह एक गंभीर व जघन्य अपराध है। इसके बावजूद हाईकोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 376 और पॉक्सो एक्ट की धारा 5 पर पर्याप्त विचार नहीं किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि पॉक्सो कानून इसलिए लागू होता है क्योंकि पीड़िता नाबालिग थी।

उन्होंने आगे कहा कि धारा 376 के तहत बलात्कार के मामलों में अलग-अलग प्रावधान हैं। यदि अपराध किसी प्रभुत्वशाली स्थिति में मौजूद व्यक्ति द्वारा किया गया हो, तो न्यूनतम सजा 20 वर्ष की हो सकती है, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि भले ही पीड़िता नाबालिग न हो, तब भी धारा 376(2)(i) के तहत न्यूनतम सजा का प्रावधान लागू होता है।

 एसजी मेहता ने यह भी बताया कि सेंगर के वकील ने हाईकोर्ट में ए.आर. अंतुले केस के फैसले का हवाला दिया था और यह दलील दी थी कि यह भ्रष्टाचार का मामला था, जबकि मौजूदा मामला पॉक्सो एक्ट से जुड़ा है, इसलिए आरोपी को लोकसेवक नहीं माना जा सकता। इस पर सीबीआई ने कड़ा विरोध जताते हुए हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की मांग की।

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हाई कोर्ट के फैसले पर नाराजगी 

सीबीआई ने दिल्ली हाई कोर्ट के 23 दिसंबर के उस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई, जिसमें सेंगर की अपील पेंडिंग रहने तक सजा सस्पेंड करने की अर्जी मंजूर की गई थी।

जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद और हरीश वैद्यनाथन शंकर की डिवीजन बेंच ने सेंगर की उम्रकैद की सजा को निलंबित करते हुए उनकी अपील लंबित रहने तक उन्हें कड़ी शर्तों के साथ सशर्त जमानत दे दी थी।

उन्नाव रेप केस ने पूरे देश में गुस्सा पैदा कर दिया था। दिसंबर 2019 में ट्रायल कोर्ट ने सेंगर को एक नाबालिग लड़की के अपहरण और रेप का दोषी ठहराया था और उसे उम्रकैद की सजा सुनाई थी। साथ ही, 25 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया था।

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