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उत्तर प्रदेश के गवर्नर ने चार हत्‍याओं के दोषी को दी माफी, नाराज सुप्रीम कोर्ट ने पलटा फैसला

बुलंदशहर हिंसा के दोषियों पर सख्त कार्रवाई की बात करने वाले यूपी के गवर्नर राम नाइक ने बीते दिनों चार हत्याओं के एक दोषी को माफी देने का आदेश जारी किया था। गवर्नर के फैसले से हैरान सुप्रीम कोर्ट ने सख्त नाराजगी जताते हुए इसे नामंजूर कर दिया है।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

उत्तर प्रदेश के गवर्नर राम नाईक द्वारा 4 हत्याओं के मामले में दोषी ठहराए गए एक अपराधी को सजा पूरी होने से पहले ही माफी देने के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त नाराजगी जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल के इस फैसले को नामंजूर कर दिया। सोमवार को राज्यपाल के इस फैसले पर हैरानी जताते हुए जस्टिस एनवी रमन्ना और एमएम शांतानागौदर की पीठ ने कहा कि इस तरह के कदम से अदालत के विवेक को झटका लगा है। अदालत ने राज्यपाल के फैसले को बदलते हुए सवाल किया, “इस तरह के अपराधी को किस आधार पर जल्द रिहा किया जा सकता है? उसे उम्रकैद की सजा मिली है, लेकिन उसने जेल में सिर्फ 7 साल बिताए। यही वजह है कि हमें अपने अधिकार का इस्तेमाल करने के लिए मजबूर होना पड़ा है।”

शीर्ष अदालत ने ये टिप्पणी मार्कंडेय शाही (60) की याचिका पर की है। शाही ने खुद की रिहाई के राज्यपाल के फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा पलटे जाने के खिलाफ याचिका दायर की थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट से भी उसे राहत नहीं मिली। पीठ ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि दोषी जब जमानत पर बाहर था, उस दौरान भी वह 4 दूसरे आपराधिक मामलों में शामिल पाया गया। इस तरह का व्यक्ति जल्द कैसे रिहा किया जा सकता है? सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट में उसकी बीमारियों का हवाला देकर राहत की गुजारिश की जिसपर कोर्ट ने सख्ती दिखाते हुए कहा कि फिलहाल उसे जेल में रहने दीजिए। वहीं पर उसे जरुरी इलाज दिया जाएगा। कोर्ट ने हैरानी जताते हुए कहा कि दोषी को उस वक्त माफी दी गई, जब उसकी दोषसिद्धि का मामला हाईकोर्ट में लंबित था।

बता दें कि मार्कंडेय शाही पर साल 1987 में गोरखपुर में 4 लोगों की हत्या समेत आधा दर्जन से भी ज्यादा मामले हैं। साल 2009 में इन हत्याओं के आरोप में शाही को दोषी पाते हुए गोरखपुर की अदालत ने उसे उम्रकैद की सजा दी थी। लेकिन राज्यपाल राम नाइक ने 2017 के सितंबर में उसकी सजा पूरी होने से पहले ही माफी देते हुए उसे रिहा करने का आदेश जारी किया था। खास बात ये है कि वक्त से पहले शाही की रिहाई पर गोरखपुर के जिलाधिकारी और एसएसपी ने भी चिंता जाहिर की थी। लेकिन इसके बावजूद राज्यपाल राम नाईक ने धारा 161 के तहत मिले अधिकारों का उपयोग करते हुए उसे माफी दे दी।

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राज्यपाल के इस फैसले को महंत शंकरसेन रामानुज दास नाम के एक स्थानीय व्यक्ति ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। शंकरसेन रामानुज दास ने दावा किया कि शाही को योगी सरकार का समर्थन और संरक्षण प्राप्त है। ध्यान देने वाली बात है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में राज्यपाल के फैसले का उत्तर प्रदेश सरकार ने समर्थन किया था। सरकार ने कहा था कि राज्यपाल ने संविधान के तहत मिली शक्ति का सही इस्तेमाल किया है। हालांकि हाईकोर्ट ने राज्यपाल के आदेश को अनुचित ठहरा दिया था और शाही की रिहाई को अस्वीकृत करते हुए उसे फिर से जेल भेजने का आदेश दिया था। हाईकोर्ट के इसी फैसले के खिलाफ शाही ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।

गौरतलब है कि सोमवार को ही उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाइक ने प्रदेश के बुलंदशहर में हुए हिंसक बवाल पर प्रतिक्रिया देते हुए सख्त कार्रवाई की बात कही है। इस हिंसा में एक पुलिस इंस्पेक्टर समेत दो लोगों की मौत हो गई है। लेकिन राज्यपाल के हत्यारोपी को रिहा करने के फैसले से कई सवाल खड़े होते हैं।

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