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उत्तराखंड: नहीं बुझ रही जंगल की आग, बांज के जंगलों को बचाने की है चुनौती

उत्तराखंड में जंगल की आग थमने का नाम नहीं ले रही है। प्रतिदिन बड़े पैमाने पर जंगल धधक रहे हैं। ऐसे में आग के पांच हजार फीट से अधिक ऊंचाई पर स्थित बांज के जंगलों तक पहुंचने की चिंता सताने लगी है।

फोटो: IANS
फोटो: IANS 

उत्तराखंड में जंगल की आग थमने का नाम नहीं ले रही है। प्रतिदिन बड़े पैमाने पर जंगल धधक रहे हैं। ऐसे में आग के पांच हजार फीट से अधिक ऊंचाई पर स्थित बांज के जंगलों तक पहुंचने की चिंता सताने लगी है। इसे देखते हुए वन विभाग ने विशेष कार्ययोजना बनाई है। राज्य के नोडल अधिकारी वनाग्नि निशांत वर्मा के अनुसार वर्तमान में बांज के जंगलों से पत्तियां गिरती हैं। ये आग के फैलाव का कारण न बनें, इसे देखते हुए वहां सड़कों और रास्तों से पत्तियों को एकत्रित किया जा रहा है। साथ ही, ऐसे क्षेत्रों को संवेदनशील मानते हुए वनकर्मियों को 24 घंटे अलर्ट मोड में रखा गया है।

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अब तक 2955 हेक्टेयर वन क्षेत्र को नुकसान

राज्य में इस फायर सीजन में अब तक जंगलों में आग की 1844 घटनाओं में 2955 हेक्टेयर वन क्षेत्र को नुकसान पहुंच चुका है। आग है कि थमने का नाम नहीं ले रही है। पिछले सप्ताह आग उत्तरकाशी जिले की धरासू, मुखेम क्षेत्र में बांज के जंगल तक पहुंच गई थी। बमुश्किल इस पर काबू पाया गया। इस परिदृश्य के बीच वन विभाग के सामने चुनौती बढ़ गई है कि अब आग बांज के वनों तक न पहुंचे। दरअसल, सदाबहार बांज (ओक) के पेड़ जल संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और वहां नमी भी बनी रहती है। बावजूद इसके इनमें आग का खतरा कम नहीं रहता, क्योंकि इन दिनों बांज की पत्तियां भी गिरती हैं।

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पर्यावरणविद् सच्चिदानंद भारती के अनुसार बांज के जंगलों तक आग पहुंची तो वहां के पारिस्थितिकीय तंत्र के लिए खतरा पैदा हो जाएगा। कारण यह कि बांज के वनों में अनेक प्रकार के बायोमास समेत वनस्पतियों की तमाम प्रजातियां रहती हैं। आग फैली तो इससे दिक्कत बढ़ सकती है। वह कहते हैं कि बांज समेत अन्य वनों में आग न फैले, इसके लिए वर्षा जल संरक्षण के प्रभावी उपायों पर ध्यान देने की जरूरत है। इससे जंगलों में पर्याप्त नमी बनी रहने के साथ ही जलस्रोत रीचार्ज होंगे और आग का खतरा भी कम होगा। राज्य के नोडल अधिकारी वनाग्नि निशांत वर्मा ने कहा कि आग पर नियंत्रण के लिए विभाग मुस्तैदी से जुटा है। बांज वनों में आग के खतरे को कम करने के उद्देश्य से ही बांज की पत्तियां एकत्रित कर खाद बनाने में इनका उपयोग किया जा रहा है। इसके अलावा वर्षा जल संरक्षण पर भी ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।

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घोड़ीखाल-बुआखाल के बीच जंगल में लगी आग

उत्तराखंड में बारिश के कारण कुछ पर्वतीय क्षेत्रों में जंगल की आग से राहत मिली है। हालांकि, अब भी कुछ क्षेत्रों में जंगल की आग मुसीबत बनी हुई है। पौड़ी में शुष्क मौसम के चलते विकराल हुई जंगल की आग आबादी के पास पहुंच गई। जिससे क्षेत्र में हड़कंप मच गया। वन विभाग की टीम और दमकल कर्मियों ने बामुश्किल आग पर काबू पाया।

पौड़ी में घोड़ीखाल-बुआखाल के बीच शनिवार रात्रि सिविल वन क्षेत्र में भीषण आग लग गई। देखते ही देखते आग ने विकराल रूप ले लिया। वहीं, कोट ब्लाक के कठूड़ गांव के समीप भी जंगल की आग पहुंचने से अफरा-तफरी मची रही। किसी तरह दमकल कर्मियों ने आग पर काबू पाया। रुद्रप्रयाग, चमोली और उत्तरकाशी में बारिश के कारण जंगल की आग काफी हद तक काबू हो गई है।

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कुमाऊं के जंगलों में भी बारिश के चलते आग से कुछ राहत रही, लेकिन रविवार को स्थिति फिर बदल गई। अल्मोड़ा जिले में सोमेश्वर और जागेश्वर क्षेत्र के जंगलों में भीषण आग लगी रही। दिन में कई घंटे तक जंगल जलते रहे। बागेश्वर जिले में बारिश के बाद जंगलों की आग शांत हुई, लेकिन शनिवार रात से एक बार फिर जंगल सुलगने लगे। जिला मुख्यालय से लगे घिरौली गांव और कांडा तहसील के विजयपुर के जंगल रातभर जलते रहे।

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24 घंटे में आग की 53 घटनाएं

पिछले 24 घंटे में प्रदेश में जंगल में आग की 53 नई घटनाएं दर्ज की गई, जिनमें 65 हेक्टेयर वन क्षेत्र को नुकसान पहुंचा है। प्रदेश में फायर सीजन शुरू होने के बाद से अब तक कुल 1844 घटनाओं में 2956 हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित हुआ है।

इस दौरान छह व्यक्ति घायल हुए, जबकि एक व्यक्ति की आग में झुलसकर मौत हो चुकी है। वहीं, आरक्षित वन क्षेत्र में 1297 घटनाओं में 2138 हेक्टेयर वन क्षेत्र को नुकसान पहुंचा है। वन पंचायत और सिविल सोयम क्षेत्र में 547 घटनाओं में 818 हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित हुआ है।

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