
वक्फ संशोधन बिल राज्यसभा से पास होने पर विपक्षी दलों ने इसे असंवैधानिक, जनविरोधी और राजनीति से प्रेरित बताया है। कपिल सिब्बल ने मीडिया से बातचीत में कहा कि सरकार के पास लोकसभा और राज्यसभा में बहुमत था, लेकिन यह बिल देश में विभाजन को दर्शाता है। उन्होंने बताया कि वोटिंग में 128 पक्ष में और 94 खिलाफ वोट पड़े, जिससे साफ है कि बड़ी संख्या में लोगों ने इसका विरोध किया।
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कपिल सिब्बल ने कहा कि इसका असर बिहार जैसे राज्यों में होने वाले चुनावों पर पड़ेगा, जहां विपक्ष को फायदा हो सकता है। उन्होंने इसे समाज को बांटने वाली राजनीति का हिस्सा बताया और कहा कि यह बिल गरीबी, बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे असली मुद्दों को हल नहीं करेगा। उनके मुताबिक, यह एक राजनीतिक चाल है, जिससे विवाद बढ़ेगा और सरकार को लगता है कि इससे उसे फायदा होगा। सिब्बल ने चेतावनी दी कि यह देश के भविष्य के लिए ठीक नहीं है।
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कांग्रेस सांसद और वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने इसे विपक्ष की नैतिक जीत करार दिया। उन्होंने दावा किया कि लोकसभा में बिल के खिलाफ 35 वोटों का अंतर था और राज्यसभा में अंतर कम था। सिंघवी ने इसे जनादेश के खिलाफ बताया और कहा कि सरकार ने अपने बहुमत का दुरुपयोग करके इसे जबरदस्ती थोपा है।
उन्होंने दावा किया कि अगर बिल को कोर्ट में चुनौती दी गई, तो इसके असंवैधानिक होने की पूरी संभावना है, खासकर संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत। सिंघवी ने यह भी कहा कि यह बिल मुस्लिम समुदाय की स्वायत्तता को नष्ट करता है और समाज में अविश्वास पैदा करेगा। उनके मुताबिक, यह जनता के मूड के खिलाफ है और इसमें व्यापक समर्थन की कमी है।
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आरजेडी नेता मनोज झा ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि इसी संसद में पहले किसान कानून भी पास हुए थे, जिन्हें बाद में वापस लेना पड़ा। झा ने सरकार पर बहुमत के अहंकार का आरोप लगाया और कहा कि संख्या बल होने का मतलब यह नहीं कि हर ज्ञान सरकार के पास ही है। उन्होंने इसे गैर-जरूरी और विभाजनकारी बताया।
मनोज झा ने कहा कि राज्यसभा में सरकार का बहुमत बहुत मजबूत नहीं था, फिर भी उसने इसे पास करवाया। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर जनता की नाराजगी को दूर नहीं किया गया, तो इस बिल का हश्र भी किसान कानूनों की तरह हो सकता है। मनोज झा ने सरकार से आत्ममंथन करने और संजीदगी दिखाने की अपील की।
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