विचार

कहीं तेजाबी बारिश में न बदल जाए दिवाली के अगले दिन दिल्ली-एनसीआर में होने वाली नकली वर्षा

दिल्ली सरकार ने दिवाली के अगले दिन वायु प्रदूषण को कम करने के लिए कृत्रिम बारिश करवाने के संकेत दिए हैं। लेकिन हर दिवाली पर दिल्ली-एनसीआर की आबोहवा का जो हाल होता है, उससे यह आशंका है कि कहीं यह नकली वर्षा तेजाबी बारिश में न बदल जाए।

एआई से बनाई गई सांकेतिक तस्वीर
एआई से बनाई गई सांकेतिक तस्वीर 

वैसे तो पिछले कई महीनों से दिल्ली सरकार इस बात पर  जोर देती रही है कि वायु प्रदूषण से जूझने के लिए नकली बरसात करवाना जरूरी है। हालांकि एक महीने  पहले ही  राजस्थान में कभी जयपुर के करीब विशाल झील रही और बीते दो दशक से पूरी तरह सूखी जमवा रामगढ़ की झील को भरने के लिए कृत्रिम बारिश का प्रयोग एक तमाशे से अधिक नहीं रहा। कई कई बार ड्रोन उड़ाये और चार बार असफल रहने के बाद नाममात्र की बूंदें गिरी जिसने झील के तल को गीला तक नहीं किया। चूंकि दिल्ली सरकार तो  दीपावली के ठीक अगले दिन कृत्रिम  बादल से पानी बरसाने की बात कर रही है तो यह मामला अधिक गंभीर हो जाता है , जिसमें  एसिड रेन या तेजाब की बारिश एक बड़ी आशंका है।

सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े मसले को धार्मिक बना कर राजनीतिक लाभ लेने के लिए बीजपी नेता इस बात को छिपा रहे हैं की दीपावली से एक दिन पहले चौदस की सुबह सात बजे सेंट्रल दिल्ली से ले कर अशोक विहार और वजीरपुर से  द्वारका तक का एक्यूआई “बहुत खराब” श्रेणी में पहुंच गया था, जबकि तब तक बहुत काम आतिशबाजी हुई थी। चूंकि इस बार अदालत ने ग्रीन आतिशबाजी की छूट दे दी है और यह आतिशबाजी कहने को भले ही हरी हो लेकिन इनके दहन से होने वाले उत्सर्जन से रासायनिक विषाक्तता तो  धरती से कुछ मीटर ऊपर तक मंडराएगी ही। अब इससे उपजे स्मॉग को समाप्त करने के लिए दिल्ली सरकार नकली बरसात करवाना चाहती है।

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कैसे होती है कृत्रिम बारिश?

जिस कृत्रिम बरसात की बात की जा रही है, उसकी तकनीक को समझना जरुरी है। इसके लिए हवाई जहाज से सिल्वर-आयोडाइड और कई अन्य रासायनिक पदार्थो का छिड़काव किया जाता है, जिससे सूखी बर्फ के कण तैयार होते हैं। असल में सूखी बर्फ ठोस कार्बन डाइऑक्साइड ही होती है।  सूखी बर्फ की खासियत होती है कि इसके पिघलने से पानी नहीं बनता और यह गैस के रूप में ही लुप्त ओ जाती है। यदि परिवेश के बादलों में थोड़ी भी नमी होती है तो यह सूखी बर्फ के कणों पर चिपक जाते हैं और इस तरह बादल का वजन बढ़ जाता है, जिससे बरसात हो जाती है।  

एक तो इस तरह की बरसात के लिए जरुरी है कि वायुमंडल में कम से कम 40 फ़ीसदी नमी हो, फिर यह थोड़ी सी देर की ही बरसात होती है। इसके साथ यह ख़तरा बना रहता है कि वायुमंडल में कुछ उंचाई तक जमा स्मॉग और अन्य छोटे कण फिर धरती पर न आजाएंं। साथ ही सिल्वर आयोडाइड, सूखी बर्फ के धरती पर गिरने से उसके संपर्क में आने वाले पेड़-पौधे, पक्षी और जीव ही नहीं, नदी-तालाब पर भी रासायनिक ख़तरा संभावित है। वैसे भी दिल्ली के आसपास जिस तरह सीएनजी वाहन अधिक हैं, वहां बरसात नए तरीके का संकट ला सकती हैं। ध्यान रहे कि सीएनजी दहन से नायट्रोजन ऑक्साइड और नाइट्रोजन की ऑक्सीजन के साथ गैसें जिन्हें “आक्साईड आफ नाइट्रोजन “ का उत्सर्जन होता है। चिंता की बात यह है कि “आक्साईड आफ नाइट्रोजन “ गैस वातावरण में मौजूद पानी और ऑक्सीजन के साथ मिल कर तेजाबी बारिश कर सकती है ।

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कितने ग्रीन हैं ग्रीन पटाखे?

क्या दीपावली के अगले दिन मौसम का हाल इस तरह का होगा कि इस प्रक्रिया से बरसात करवा कर सारे जहर को धोया जा सकता है? तो इसके लिए ग्रीन पटाखों को समझना होगा। यदि रासायनिक सम्मिश्रण की बात की जाए तो ग्रीन पटाखों में भले बैरियम न हो, लेकिन अमोनियम और एल्युमिनियम यौगिकों के जलने से निकलने वाले सूक्ष्म धात्विक कण यथावत हैं। ये कण शरीर के भीतर जाकर फेफड़ों में सूजन, सिरदर्द और सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्याएं बढ़ाते हैं। कथित ग्रीन  पटाखे में  पोटैशियम नाइट्रेट, अमोनियम नाइट्रेट और एल्युमिनियम पाउडर का इस्तेमाल होता है और इनके जलने से भी नाइट्रोजन ऑक्साइड  और एल्युमिनियम ऑक्साइड उत्सर्जित होते हैं जो फेफड़ों, आंखों और त्वचा के लिए हानिकारक हैं। विदित हो अमोनियम नाइट्रेट कई देशों में विस्फोटक पदार्थ के रूप में प्रतिबंधित है; इससे अमोनिया और नाइट्रस ऑक्साइड  हैं।

कोई भी दहन-आधारित प्रक्रिया, जिसमें पटाखों का जलना शामिल है, कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य गैसों का उत्सर्जन करती है। ग्रीन पटाखों में भी दहन के लिए जिस सामग्री का इस्तेमाल होता है, उससे कार्बन डाइऑक्साइड और नाइट्रस ऑक्साइड  जैसी ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जित होती ही हैं ।

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अब पिछले साल को याद करें जब अमावस की गहरी अंधियारी रात में इंसान को बेहतर आबोहवा देने की सुप्रीम कोर्ट की उम्मीदों का दीप खुद ही इंसान ने बुझा दिया। रात आठ बजे बाद जैसे-जैसे रात गहरी हो रही थी, केंद्र सरकार द्वारा संचालित सिस्टम-एयर क्वालिटी एंड वेदर फोरकास्टिंग एंड रिसर्च अर्थात सफर के एप पर दिल्ली एनसीआर के का एआईक्यू अर्थात एयर क्वालिटि इंडेक्स खराब से सबसे खराब के हालात में आ रहा था। 

अब समझना होगा कि दीवाली की रात पटाखों से भारी मात्रा में सल्फर डाइऑक्साइड  और नाइट्रोजन ऑक्साइड  उत्सर्जित होना ही है और यदि इनके संपर्क में पानी आया तो तेजाबी बारिश के हालात बनेंगे। एसिड रेन तभी होती है जब एसिड के कण वर्षा, बर्फ या कोहरे के साथ जमीन पर गिरते हैं। दीवाली के बाद यदि बारिश या भारी कोहरा/धुंध होती है, तो एसिड रेन की संभावना बढ़ जाती है।

एसिड रैन के कण फेफड़ों में गहराई तक प्रवेश कर सकते हैं, जिससे अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और अन्य श्वसन संबंधी रोग बढ़ जाते हैं। यह वर्षा मिट्टी और जल स्रोतों से सीसा, पारा और कैडमियम जैसे जहरीले भारी धातुओं को घोलकर पानी की आपूर्ति में मिला सकती है, जिससे पीने का पानी दूषित होता है और न्यूरोलॉजिकल समस्याएं हो सकती हैं।

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उच्च अम्लता यानी अधिक तेजाब वाली वर्षा के कारण आंखों में जलन और त्वचा संबंधी एलर्जी हो सकती है, खासकर बच्चों और संवेदनशील लोगों में। यदि बरसात में अम्लीयत अधिक हुई तो इमारतों में उपयोग किए जाने वाले संगमरमर, बलुआ पत्थर और कंक्रीटमें मौजूद कैल्शियम कार्बोनेट से रासायनिक प्रतिक्रिया करती है। इससे इमारतों की सतह गलने लगती है, जिसे अक्सर 'पत्थर का कैंसर' कहा जाता है। यही नहीं यह पुलों, रेलिंगों, धातु की छतों और अन्य शहरी ढांचों पर लगे पेंट और कोटिंग्स को खराब कर देती है, जिससे धातु में तेजी से जंग  लगता है और उनकी जीवन अवधि कम हो जाती है।

दिल्ली-एनसीआर मेंं तो वाहन कॉलोनियों और मुहल्लों की सड़कों पर ही होते हैं और इस तरह की बरसात कारों और अन्य वाहनों के बाहरी पेंट को भी खराब कर सकती है।

इस मौसम में नकली बरसात का  पारिस्थितिकीय  और वानस्पतिक पर दूरगामी नुकसान  संभावित हैं। इससे पेड़ों की जड़ें कमजोर हो जाती हैं। वे बीमारी और कीड़ों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं, और धीरे-धीरे मर जाते हैं। यदि वर्षा नहरों, झीलों या नदियों में गिरती है, तो पानी का पीएच  स्तर कम हो जाता है। इससे मछलियों और अन्य जलीय जीवों का जीवन संकट में पड़ जाता है, और कई प्रजातियां मर जाती हैं।

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महानगर के बाहरी इलाके या आस-पास के कृषि क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हो सकते हैं। मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट आने से उसकी उत्पादकता कम हो जाती है।

दीपावली के पहले हफ्ते में दिल्ली-एनसीआर पर आतिशबाजी से उपजे रासायनिक धुएं का प्रभाव रहेगा ही। ऐसे में कृत्रिम वर्षा के नाम पर होने वाली तेजाबी बारिश सिर्फ एक पर्यावरणीय समस्या भर नहीं, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य और शहरी आधारभूत संरचना के लिए एक सीधा खतरा है।

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