विचार

बेयरफुट कॉलेज - एक ऐसा खुला कैंपस जो बीते 50 साल से रचनात्मकता के साथ आत्मनिर्भर बना रहा है गांव वालों को

बेयरफुट कालेज में किसी की परख उसकी डिग्री-डिप्लोमा से नहीं होती है अपितु उसकी ईमानदारी, निष्ठा, करुणा, व्यवहारिक कुशलता, रचनात्मकता, परिस्थितियों के अनुसार ढलने, सीखने-सुनने की तत्परता व सभी तरह के भेदभाव से ऊपर उठकर कार्य करने की क्षमता से जानी जाती है।

फोटो सौजन्य : बेयरफुट कॉलेज
फोटो सौजन्य : बेयरफुट कॉलेज 

इस वर्ष विश्व स्तर पर ख्याति प्राप्त करने वाला संस्थान बेयरफुट कालेज अपने 50 वर्ष पूर्ण कर रहा है। इस अवसर पर अनेक कार्यक्रमों का आयोजन भी हो रहा है। इस संस्थान ने अपने विभिन्न कार्यक्रमों से यह सिद्ध कर दिया कि साधारण गांववासियों में कितनी प्रतिभाएं छिपी पड़ी हैं, उन्हें तो बस भरपूर खिलने का अवसर चाहिए। यदि ग्रामीण प्रतिभा में विश्वास किया जाए, उन्हें उभरने का भरपूर अवसर दिया जाए, उन्हें बड़ी जिम्मेदारी दी जाए व इसके अनुकूल अवसर भी दिए जाएं तो यह ग्रामीण प्रतिभाएं कितनी आगे जा सकती है इसका बेहद प्रेरणादायक उदाहरण प्रस्तुत किया है बेयरफुट कालेज ने।

आइए ‘बेयरफुट’ सोच से उभरी कुछ प्रतिभाओं से परिचय करें :

त्योद गांव की सीता देवी

त्योद गांव (अजमेर जिला) की सीता देवी ने चाहे कोई औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की थी, पर जब उसे युवावस्था में हैंडपंप की मरम्मत और रख-रखाव सीखने का अवसर प्राप्त हुआ तो उसने यह कार्य बहुत कुशलता से सीखकर आसपास के गांववासियों को भी हैरान कर दिया। एक ‘बेयरफुट’ हैंडपंप मैकेनिक के रूप में सीता ने 6 गांवों के लगभग 100 हैंडपंपों की जिम्मेदारी को भली-भांति निभाया।

इसके कुछ वर्ष बाद सीता को एक अन्य अवसर मिला कि वह ग्रामीण क्षेत्रों में सौर ऊर्जा सिस्टम लगाने व उसके रख-रखाव का प्रशिक्षण प्राप्त कर सके तो इस जिमेदारी का भी सीता ने भरपूर लाभ उठाया। इस प्रशिक्षण के बाद सीता ने शहनाज, श्यामा व कमला के साथ मिलकर वुमैन बेयरफुट सोलर कुकर इंजीनियर सोसाईटी की स्थापना की। यह ग्रामीण महिलाओं की रजिस्टर्ड संस्था है जो पैराबॉलिक सोलर कुकर के उत्पादन व स्थापना के कार्य की पूरी जिम्मेदारी संभालती है। इस सोसाईटी की महिला सदस्यों को कुछ समय पहले तिलोनिया गांव में मिलने पर उन्होंने विस्तार से यहां स्थापित पैराबॉलिक सोलर कुकर के बारे में समझाया कि किस तरह भली-भांति नाप कर कार्य किया जाता है जिससे सौर ऊर्जा का बेहतर उपयोग किया जा सके।

Published: undefined

लीला

लीला की औपचारिक शिक्षा तो काफी कम रही है व जब विवाह के बाद वह तिलोनिया परिसर में आई तो पहले सिलाई के काम को ही संभाला। पर कुछ समय बाद सौर ऊर्जा संबंधी कार्य सीखने का अवसर मिला तो लीला ने इसे उत्साह से स्वीकार किया। शिक्षण कुछ समय तो अच्छा चला पर बाद में वेल्यू निकालने जैसी गणित का अधिक ज्ञान मांगने वाली चुनौतियां सामने आईं। यह स्थिति कठिनाई भरी थी पर ‘जहां चाह वहां राह’। लीला ने कोई न कोई तरीका सीखने का खोज ही लिया व शीघ्र ही अपने कार्य में दक्ष हो गई। लीला ने न केवल सौर उपकरण बनाए अपितु रात्रि पाठशाला या अन्य स्थानों पर जाकर उनके सही रख-रखाव की व्यवस्था भी की।

फिर इससे भी बड़ी चुनौती तब आई जब लीला और उसकी साथियों मगन कंवर, नजमा, गुलाब आदि को विदेश के गांवों से आई अनेक महिलाओं के प्रशिक्षण का कार्य सौंपा गया। एक बड़ी समस्या भाषा की थी। पर एक बार फिर जरूरत के मुताबिक समाधान खोजे गए और न केवल प्रशिक्षण सफल सिद्ध हुए अपितु इस दौरान आपसी लगाव इतना बढ़ गया कि इन महिलाओं के अपने देश लौटने के समय की विदाई में आंसुओं की धारा बह चली। इन महिलाओं ने अपने-अपने देश लौटकर अपने गांवों में सफलतापूर्वक सौर ऊर्जा सिस्टम स्थापित किया।

Published: undefined

गुल जामन

अफगानिस्तान से 26 वर्षीय महिला गुल जमान अपने पति मोहम्मद जान के साथ सोलर सिस्टम के स्थापना और रख-रखाव के प्रशिक्षण के लिए तिलोनिया आई। यहां प्रशिक्षण प्राप्त कर वे अपने गांव में लौटे व उन्होंने यहां के 50 घरों को सौर ऊर्जा से आलोकित किया।

इन सभी कहानियों की प्रेरणा स्थली है अजमेर जिले (राजस्थान) के तिलोनिया गांव में स्थित बेयरफुट कालेज। प्रत्यक्ष तौर पर तो बेयरफुट कालेज इस क्षेत्र के लगभग 200 गांवों में कार्य करता है, पर अपने प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से व बेयरफुट कॉलेज द्वारा प्रेरित अन्य प्रयासों के माध्यम से इस संस्थान की पहुंच भारत में व भारत से बाहर भी (विशेषकर अफ्रीका महाद्वीप में) इससे कहीं अधिक गांवों तक है।

बेयरफुट कालेज का आरंभ सामाजिक कार्य व अनुसंधान केंद्र के नाम से वर्ष 1972 में हुआ। इस संस्थान के कार्य का एक प्रमुख दिशा निर्देश यह रहा है कि अपनी समस्याओं को स्वयं सुलझाने की गांववासियों की अपनी क्षमता में विश्वास रखो और उसे प्रोत्साहित करो। पिछले 4 दशकों के दौरान विभिन्न कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के अनुभव से बेयरफुट कालेज का गांववासियों की क्षमता में यह विश्वास और दृढ़ हुआ है।

Published: undefined

बेयरफुट कालेज के निदेशक बंकर राय के अनुसार गांववासियों की सही स्थिति को न समझने वाले बाहरी विशेषज्ञों के ज्ञान को गांवों पर जबरदस्ती लादने से बहुत क्षति हो चुकी है, तो भी इस कड़वे अनुभव से सबक नहीं लिए गए हैं। यदि गांववासियों व विशेषकर निर्धन परिवारों को विश्वास में लिया जाए व उनके ग्रासरूट के अनुभवों, स्थानीय जानकारी व क्षमताओं का सही उपयोग किया जाए तो प्रायः समस्याओं के कहीं बेहतर व सस्ते समाधान मिलते हैं। बंकर राय कहते हैं, “बेयरफुट कालेज में किसी व्यक्ति की परख उसके डिग्री या डिप्लोमा से नहीं होती है अपितु उसकी ईमानदारी, निष्ठा, करुणा, व्यवहारिक कुशलता, रचनात्मकता, परिस्थितियों के अनुसार ढलने, सीखने-सुनने की तत्परता व सभी तरह के भेदभाव से ऊपर उठकर कार्य करने की क्षमता से जानी जाती है।”

Published: undefined

यहां के कार्यक्रमों की एक मुख्य विशेषता यह है कि कार्य गांववासियों की अधिकतम भागेदारी से ही आगे बढ़ता है। किसी गांव में कोई कार्य तभी आरंभ होता है जब उस गांव समुदाय से इसकी मांग आती है। इस बारे में निर्णय गांव समुदाय लेते हैं व फिर क्रियान्वयन विभिन्न ग्राम समितियों को सौंप दिया जाता है। प्रायः संस्था के कार्यक्षेत्र में जल समितियों, शिक्षा समितियों व ऊर्जा या पर्यावरण समितियों की स्थापना की गई है। यह समितियां ही परियोजना के धन के उपयोग व इसके बैंक एकाऊंट के संचालन के लिए जिम्मेदार होती हैं। अनेक तरह की जिम्मेदारियां लोग मिल-बांट कर उठा लेते हें। प्रोजेक्ट का कार्य तब तक पूरा नहीं माना जाता है जब तक उसे गांव समुदाय की सहमति न मिल जाए व समिति के सदस्य इस स्वीकृति के हस्ताक्षर न कर दें। इस पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता और जिम्मेदारी स्वीकार करना व निभाना आरंभ से अंत तक जुड़े हुए हैं, व यही बात बेयरफुट कालेज के अपने संचालन के बारे में भी कही जा सकती है।

Published: undefined

बेयरफुट कालेज का एक बुनियादी मूल्य यह है कि धर्म-जाति, लिंग आदि के आधार पर किसी भी भेदभाव को किसी भी हालत में स्वीकार नहीं किया जाएगा। संस्थान के आंरभिक दिनों में रसोई कार्य दलित व्यक्ति को सुपुर्द करने जैसे निर्णयों पर गुपचुप विरोध प्रकट होता रहता था पर बंकर राय ने स्पष्ट कह दिया कि चाहे मुझे इस रसोईए के साथ अकेले रहना पड़े पर किसी तरह के भेदभाव को मैं स्वीकार नहीं करूंगा। अंत में भेदभाव को पूरी तरह समाप्त करने के निर्णय को संस्थान के सब सदस्यों ने स्वीकार कर लिया व अब यह स्थिति है कि दलित समुदाय में भी जिन्हें सबसे निचली सीढ़ी पर मान लिया गया है उन्हें संस्थान में लाने व जिम्मेदारी संभालने के लिए विशेष तौर पर प्रोसाहित किया जा रहा है।

बेयरफुट कालेज के जल संरक्षण व संग्रहण कार्यक्रम ने सैंकड़ों गांवों व स्कूलों की अपनी जल व सफाई की जरूरतों को पूरा करने में सहायता की है। संस्थान ने ग्रामीण महिलाओं को प्रशिक्षित कर बेयरफुट हैंडपंप मैकेनिक का जो मॉडल लोकप्रिय किया उसे बाद में राजस्थान में व अन्य राज्यों में व्यापक स्तर पर अपनाया गया।

Published: undefined

बेयरफुट कालेज से जुड़े हुए अनेक दस्तकारों ने अपने गांवों में ऐसे उत्पाद बनाए हैं जिन्हें प्रतिष्ठित बड़े शहरों की प्रदर्शनियों में भी प्रशंसा मिली है। बेयरफुट कालेज से जुड़े महिला-समूह बिना किसी आर्थिक सहयोग के गठित हुए हैं। वे लिंग आधारित भेदभाव व अन्य समस्याओं से संघर्ष में अपनी गहरी निष्ठा के लिए जाने जाते हैं। इनके कार्यक्षेत्र में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा में महत्त्वपूर्ण कमी आई व लड़कियों की शिक्षा में उत्साहवर्धक वृद्धि प्राप्ति हुई है। इन महिला समूहों के गठन व संचालन में अरुणा राय की अपनी बेयरफुट कालेज के कार्यकाल (1975-83) के दौरान बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका रही।

विभिन्न परियोजनाओं से आगे जाते हुए बेयरफुट कालेज व इसके सहयोगी संस्थान न्याय, समता, लोकतंत्र व भाईचारे के मूल्यों के लिए प्रतिबद्ध हैं व इन मूल्यों से जुड़े अनेक अभियानों में मूल्यवान योगदान देते रहे हैं। न्यूनतम मजदूरी, रोजगार गारंटी व सूचना के अधिकार के अभियानों में संस्थान नजदीकी तौर पर जुड़ा रहा। संस्थान की रात्रि शालाओं में कच्ची उम्र से ही लोकतंत्र का प्रशिक्षण आरंभ हो जाता है व बच्चे अपनी संसद और मंत्रिमंडल चुनते हैं। कानूनी न्यूनतम मजदूरी सब मजदूरों को सुनिश्चित करने के लिए बंकर राय व संस्थान के कार्यकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट तक एक केस लड़ा जिसके अनुकूल निर्णय का लाभ राष्ट्रीय स्तर पर मिला।

उम्मीद है कि 50 वर्ष के सफर के बाद भी बेयरफुट कालेज का कारवां निरंतर नई मंजिले तय करते हुए आगे बढ़ता रहेगा।

Published: undefined

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: undefined