
ताजमहल को दुनिया के सात अजूबों में गिना जाता है। वह दुनिया में भारत की प्रमुख पहचानों में से एक है। ताजमहल संगमरमर पर उकेरी गई कविता है। गुरूदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर ने इसे ‘काल के गाल पर अश्रु की एक बूंद‘ की संज्ञा दी थी। यह मुहब्बत की निशानी है। इसकी खूबसूरती और आकर्षण विलक्षण है। ताजमहल को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित किया गया है। इसकी देखभाल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) करता है। संगमरमर से बने इस अजूबे के प्रतिरूप भारत आने वाले राष्ट्राध्यक्षों को भेंट किए जाते थे।
मगर चूंकि इसे मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी पत्नि मुमताज महल की याद में बनवाया था इसलिए यह हिन्दू दक्षिणपंथियों की आंख का कांटा रहा है। ताजमहल के इतिहास के संबंध में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अपना अंतिम मत दे दिया है और 2017 में मोदी सरकार के संस्कृति मंत्री महेश शर्मा ने भी कहा था कि यह शिव मंदिर नहीं था। लेकिन दक्षिणपंथी नेताओं और विचारकों द्वारा जानबूझकर साम्प्रदायिक तनाव बढ़ाने के लिए बार-बार ताजमहल के मुद्दे पर विवाद खड़े किए जाते हैं। एएसआई ने भी कई बार साफ किया है कि यह एक मंदिर नहीं था और मकबरा ही है।
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ताजमहल को लेकर पहला बड़ा विवाद योगी आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के ठीक बाद खड़ा किया गया। उत्तर प्रदेश के पर्यटन विभाग ने प्रदेश के पर्यटक स्थलों के बारे में एक पुस्तिका प्रकाशित की। उसमें ताजमहल का जिक्र नहीं था। यह तब जब कि रोजाना करीब 12,000 लोग इस चकित कर देने वाली इमारत को देखने आते थे। भारत के 23 प्रतिशत पर्यटक ताजमहल जाते हैं। लेकिन जब आदित्यनाथ से इस सबंध में सवाल किया गया तो उनका जवाब था कि ताजमहल भारतीय संस्कृति को प्रतिबिंबित नहीं करता!
अब ताजमहल पर परेश रावल की एक फिल्म आ रही है। इसके ट्रेलर में दिखाया गया है कि जैसे ही ताजमहल का गुबंद उठाया जाता है वहां भगवान शिव नजर आते हैं। ‘द ताज स्टोरी‘ का ट्रेलर देखकर ऐसा लगता है कि फिल्म इस बेबुनियाद दावे का प्रचार करने की कोशिश है कि ताजमहल मूलतः तेजो महालय नामका मंदिर था जिसे शाहजहां ने मकबरा बना दिया।
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इस फिल्म में यह दावा किया गया है कि ताज एक हिन्दू शिव मंदिर (तेजो महालय) था, जिसे चौथी सदी में निर्मित किया गया था (बाद में इसे बदल कर 11वीं सदी बताया जाने लगा)। और इस मंदिर को मुगल शासक शाहजहां ने मकबरा बना दिया। ताजमहल चौथी सदी में निर्मित मंदिर था यह बात पी एन ओक नाम के एक वकील ने पहली बार कही थी। ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर इतिहासवेत्ता रूचिका शर्मा ने ओक के दावे को कोरी बकवास बताया।
रुचिका शर्मा ने कहा, ‘‘ओक फारसी नहीं जानते इसलिए संभवतः उनका ध्यान उन महत्वपूर्ण तथ्यों की ओर नहीं गया जो उनके इस दावे को गलत सिद्ध करते हैं कि ताजमहल पहले मंदिर था।" गाईल्स टिलोट्सन जैसे इतिहासकार भी इस आधार पर ओक के दावे को चुनौती देते हैं कि "ताज जैसे ढांचे वाली इमारत का निर्माण करने की तकनीक मुगल-पूर्व भारत में मौजूद ही नहीं थी"। ताजमहल के निचले हिस्से में मौजूद 21 खाली कमरों के बारे में भी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने स्पष्टीकरण दिया है। वास्तुकला की दृष्टि से यह ढ़ांचे को स्थायित्व प्रदान करने के लिए बनाए गए ये कमरे खाली थे, जिनका इस्तेमाल इमारत की देखभाल करने के लिए जरूरी सामान को रखने के लिए होता है। यह स्पष्टीकरण भी मोदी सरकार के दौरान ही दिया गया था।
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जब चौथी सदी वाला दावा काम नहीं आया तो पी एन ओक ने उसमें बदलाव करते हुए कहा कि वह 12वीं सदी का मंदिर था। रुचिका शर्मा के अनुसार, ‘‘ओक ने अपनी मनगढ़ंत बातें और प्रोपेगेंडा जारी रखा और जुलाई 2000 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की जिसमें यह दावा किया गया कि ताजमहल का निर्माण राजा परमार देव के प्रधानमंत्री सलकशन ने 12वीं शताब्दी में करवाया था। यह एक हिन्दू ढांचा तेजो महालय है और मुगलों द्वारा निर्मित नहीं है।
ओक अपने इस दावे के साथ सर्वोच्च न्यायालय पहुंचे। सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी फंतासी को ख़ारिज कर दिया क्योंकि उनके पक्ष में कोई ऐतिहासिक साक्ष्य मौजूद नहीं थे। उनका मुख्य तर्क इमारत की वास्तुकला पर आधारित था- शिखर पर गुबंद, उल्टा कमल और सबसे नीचे 21 खाली कमरे। इसी तरह बाद में अमरनाथ मिश्रा ने इलाहबाद उच्च न्यायालय में याचिका दायर की जिसमें यह दावा किया गया था कि ताजमहल का निर्माण चंदेल सम्राट परमाड़ी द्वारा किया गया था। इसे भी न्यायालय ने 2005 में खारिज कर दिया।
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ताजमहल के निर्माण के संबंध में विशुद्ध ऐतिहासिक स्त्रोतों में विस्तृत विवरण उपलब्ध है। पीटर मुंडी और टेवेरनियर नामक दो यात्री जिक्र करते हैं कि अपनी भारत यात्रा के दौरान उन्हें यह पता चला कि शाहजहां शोक में डूबे हुए हैं और उन्होंने तय किया है कि वे अपनी पत्नि मुमताज महल की याद में एक विशाल स्मारक बनवाएंगे। शाहजहां ने वास्तुविदों की मदद से इस बड़ी इमारत का खाका बनाया। उनके मुख्य वास्तुविद एक मुस्लिम (उस्ताद अहमद लाहौरी) थे, जिनके प्रमुख सहयोगी एक हिन्दू थे। शाहजहां की जीवनी बादशाहनामा में इस काम की योजना बनाने का और उस पर अमल करने के लिए जिन लोगों को इकठ्ठा किया गया था उसका विस्तृत विवरण दिया गया है।
ताजमहल बनाने के लिए जिस जमीन को चुना गया वह राजा जयसिंह की थी। इस भूमि को किस तरह हासिल किया गया, इसके दो अलग-अलग विवरण मिलते हैं। पहले विवरण के अनुसार जमीन वाजिब मुआवजा देकर हासिल की गई थी। वहीं दूसरे विवरण के अनुसार राजा जयसिंह ने शाहजहां से अपनी मित्रता के मद्देनजर जमीन उन्हें भेंट कर दी थी।
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ताज की वास्तुकला उस काल की मिली-जुली परंपराओं और शैलियों का प्रतिबिंब है। दो गुबंदों वाले ढांचे बनाने की शुरूआत मुगल वास्तुविदों ने की थी। लाल किला और हुमांयु का मकबरा इसके दो अन्य उदाहरण हैं। हिन्दू मंदिरों की छत त्रिकोणीय होती थी। बाद में मंदिरों के ऊपरी भाग को गुबंद के आकार में बनाया जाने लगा। वास्तुकला कोई स्थिर चीज नहीं है। उसमें बदलाव आते रहते हैं और वास्तुकलात्मक शैलियों का एक-दूसरे को प्रभावित करना सभ्यता के विकास की प्रक्रिया का अंग होता है।
बीस हजार कारीगरों को ताजमहल के निर्माण में लगाया गया। ताजमहल सहित उत्तर भारत में कई शानदार इमारतें इसलिए बन सकीं क्योंकि मुगल शासन में एक अलग निर्माण विभाग हुआ करता था। फिर न जाने किस वजह से कहा जाने लगा कि सारे कारीगरों के हाथ काट दिए गए थे। इस दावे की पुष्टि किसी भी स्त्रोत से किसी तरह नहीं होती है। शाहजहां के काल के दस्तावेज से हमें पता चलता है कि ताज के निर्माण में हुए खर्च का विस्तृत हिसाब रखा गया था। हिसाब-किताब के कागजातों में मकराना से संगमरमर की खरीद पर हुए खर्च और मजदूरों को चुकाई गई मजदूरी का विवरण है। उस समय प्रचलित कई हिन्दू डिजाइनों को भी ढांचे का भाग बनाया गया क्योंकि हिन्दू वास्तुविद और कारीगर निर्माण की प्रक्रिया में शामिल थे।
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मगर पी एन ओक की उर्वर कल्पनाशीलता की दाद दी जानी चाहिए। उनके लिए सारी दुनिया की सभ्यता का जड़ हिंदू संस्कृति में है। क्रिश्चियनिटी दरअसल कृष्ण नीति का बिगड़ा रूप है। वैटिकन शब्द वाटिका से बना है और रोम का नाम राम के नाम पर है! उनके इन खोखले दावों का कोई ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं है, इसके बावजूद वे पुस्तकें और छोटी पुस्तिकाएं प्रकाशित करते रहे जिन्हें उनके नजरिए को सामूहिक समझ का हिस्सा बनाने के लिए आरएसएस शाखाओं में बांटा जाता था।
ताजमहल के सबंध में फिल्म में किए गए ज्यादातर दावों (जो ट्रेलर में दिखाए गए हैं) के बारे में स्पष्टीकरण दस साल पहले ही दिया जा चुका है। इसके बावजूद उन्हें फिर से उछालने का उद्धेश्य शुद्धतः राजनैतिक है और मुगल शासकों और उसके जरिए आज के मुसलमानों के प्रति घृणा फैलाने के हिन्दू राष्ट्रवादी एजेंडे को बल प्रदान करने के लिए किया जा रहा है।
यह फिल्म कश्मीर फाईल्स, बंगाल फाईल्स, केरला स्टोरी और ऐसी ही अन्य फिल्मों की तरह एक प्रोपेगेंडा फिल्म है, जिसका लक्ष्य दक्षिणपंथी एजेंडे को ताकत देना है। यह समाज को बांटने और आज के भारत में पहले सी फैली नफरत को और बढ़ाने का एक औजार है।
(लेख का अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया द्वारा)
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