ग्रामीण अर्थव्यवस्था किस तरह बचेगी और यह सामाजिक बदलावों और आर्थिक संकट से किस तरह तालमेल बनाएगी, यह सवाल हमारे लिए तात्कालिक महत्व का है। हमारे सामने ये मुद्दे सबसे अहम हैं कि क्या करने की जरूरत है और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की दिशा क्या हो।
प्रवासी मजदूर विभिन्न महानगरों से अपने गांवों की ओर लौट रहे हैं। निकट भविष्य में उनके वापस आने की संभावना नहीं है। इन्हें गांवों में ही सामाजिक और आर्थिक- दोनों ही तौर पर समाहित करना चुनौतीपूर्ण होगा। विस्थापन के लिए तथाकथित शहरी आकर्षण निकट भविष्य में काम करता नहीं दिख रहा। वैसे भी, मंदी की वजह से शहरों में रोजगार के अवसर काफी कम हो जाने की आशंका है। लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों ने शहरी लोगों, खास तौर से किसी भी स्तर पर रोजगार देने वालों से जो उपेक्षा और, एक तरह से, क्रूरता भोगी है, वह शहरों की तरफ दोबारा जाने से इन्हें रोकेगी। इन सबसे सामाजिक तनाव और बेचैनी की भावनाएं देर-सबेर फूटेंगी। एक प्रमुख मुद्दा ग्रामीण अनौपचारिक क्षेत्र में बेरोजगारी के साथ तालमेल बिठाना होगा क्योंकि यह क्षेत्र शहरी व्यापार पर पारंपरिक तौर पर निर्भर रहा है।
Published: 13 May 2020, 12:45 PM IST
पहले प्रवासी मजदूर रहे, पर अब अपने घर लौट आए मजदूर ग्रामीण इलाकों में जिन चीजों का उपयोग करेंगे, उससे खाद्यान्न की मांग इस इलाके में बढ़ेगी, लेकिन ऐसा अन्य उपभोक्ता वस्तुओं के साथ नहीं होगा। इस वजह से कुछ हद तक, शहरी क्षेत्र में बिकने वाली वस्तुओं की आपूर्ति कम होगी। पर, इन सबसे स्थानीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल सकती है। शहरों से प्रवासी मजदूर पहले पैसे भेजते थे। वह जरिया खत्म हो जाएगा। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में गैरखाद्य वस्तुओं का उपयोग तेजी से कम होगा। ग्रामीण क्षेत्र में इन नए श्रमिकों की तरफ से रोजगार की मांग बढ़ेगी, तो ग्रामीण श्रमिकों की भुगतान दरों में भी कमी होने की संभावना है। इस तरह, ग्रामीण समुदायों को रोजगार के अवसरों और आय को आंतरिक तौर पर ही बढ़ाने की जरूरत होगी।
ये तीन तरीके से हो सकती हैं। सक्रिय सामुदायिक चेतना विकसित कर और कृषि क्षेत्र में मशीनों पर अधिक जोर को बदलकर श्रम-साध्य उपज के अभियान के जरिये यह संभव है। डीजल और मशीनों की बढ़ती दरों और इसके उलट अब गिरती कृषि मजदूरी दरों के कारण यह किफायती भी हो सकता है। शहरी रोजगार के कारण श्रमिकों के विस्थापन की वजह से कृषि क्षेत्र में मजदूरों की कमी मशीन पर निर्भरता की एक वजह थी। यह हुआ, तो इसने विस्थापन को और बढ़ाया। अगर श्रमिक-केंद्रित तकनीक अपनाए गए, तो विस्थापन को बढ़ाने वाले इस दुष्चक्र को तोड़ा जा सकता है।
Published: 13 May 2020, 12:45 PM IST
दूसरी बात, स्थानीय जरूरतों के सामान के स्थानीय स्तर पर उत्पादन के लिए स्थानीय बुनकर, दस्तकार और कारीगर सूक्ष्म उद्यम स्थापित कर सकते हैं और स्थानीय सामुदायिक विपणन सहकारी संस्थाएं बना सकते हैं। साथ ही साथ, स्थानीय उत्पादों की खरीद के सामुदायिक अभियान चलाए जा सकते हैं और जहां तक संभव हो, ये शहरी औद्योगिक सेक्टरों से आने वाले कुछ सामानों की जगह ले सकते हैं। यह एक किस्म का स्वदेशी आंदोलन हो सकता है।
तीसरी बात, वाटर हारवेस्टिंग, कैनाल सिंचाई नेटवर्क, सामुदायिक मार्केट सेंटर के लिए जगहों आदि-जैसे सामुदायिक इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाने वाले स्थानीय प्रयास रोजगार के अवसर पैदा करेंगे। सामुदायिक स्तर की योजना और मनरेगा के अंतर्गत 100 दिनों के काम के कार्यक्रम का कार्यान्वयन नगद के समयबद्ध वितरण के आश्वासन के साथ शुरू किया जा सकता है। जिन्हें अब तक शामिल नहीं किया गया है, उन्हें भी नए जॉब कार्ड जारी किए जा सकते हैं।
Published: 13 May 2020, 12:45 PM IST
शहरी बाजारों में मंदी का कृषि पर भी अपना असर होगा। बड़े किसान और कृषि-आधारित नगद फसल उगाने वालों और पशुपालन, मछली पालन, फल और फूल-जैसी चीजें उगाकर निर्यात या शहरी बाजारों में बिक्री करने वालों पर अधिक असर होने जा रहा है। लिक्विडिटी के संकट की वजह से सरकार और बैंक कृषि उधार, एमएसपी पर सरकारी खरीद, फसल बीमा आदि की योजनाओं को प्रभावी ढंग से आगे बढ़ाने में सक्षम नहीं होंगे। कृषि उत्पाद के थोक बाजार में थोक के डीलर्स और रीटेलर्स लिक्विडिटी संकट के कारण सतर्क रहेंगे और आम मूल्य गिरावट के साथ बाजार चेन में रुकावट आ सकती है।
Published: 13 May 2020, 12:45 PM IST
इसलिए, शहरी बाजारों के लिए किसानों के कृषि उत्पादन के वर्तमान तरीके को स्थानीय और क्षेत्रीय जरूरतों की तरफ बढ़ाने का तरीका निकालना होगा। एक या दो नगदी फसल में विशेषज्ञता की जगह पैदा की जाने वाली नाना प्रकार की फसलों की पसंद के चुनाव में बदले जाने और स्थानीय तथा क्षेत्रीय बाजारों में मांग के अनुरूप पैदा की जाने वाली मात्रा के संशोधित आकलन में बदलने की जरूरत है।
दूसरी बात, सिकुड़ते बाजार और उत्पाद के मूल्य में गिरावट की स्थितियों में लागत में कमी जरूरी हो जाती है। लागत कम करने के खयाल से ऑर्गेनिक फार्मिंग की तरफ बढ़ना अपेक्षित है। इसमें रासायनिक खादों और कीटनाशकों में लगने वाला धन खत्म हो जाएगा। इनकी कीमतें बढ़ रही हैं क्योंकि खाद सब्सिडी वापस ली जा रही है। इस प्रक्रिया में खाद, कीटनाशक और मशीनरी-जैसे औद्योगिक उत्पादों पर निर्भरता कम कर कृषि अधिक आत्मनिर्भर बनेगी।
Published: 13 May 2020, 12:45 PM IST
अगर सरकार विभिन्न योजनाओं के जरिये धन नहीं डालती है, तो शहरी केंद्रों में बिक्री और शहरी क्षेत्र से आने वाले पैसों में गिरावट से ग्रामीण क्षेत्र में पैसे की काफी कमी हो जाएगी। लेकिन अपने आंतरिक कारोबार के लिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था में धन रोका जा सकता है? आम तौर पर, ग्रामीण क्षेत्र शहरी उत्पादों का कुल आयातक है और इसका धन शहरी क्षेत्र को चला जाता है। इसलिए, ग्रामीण क्षेत्र में धन कम आने के कारण स्थानीय बाजारों में कृषि मूल्य की और गिरावट हो सकती है। निश्चित तौर पर, थोड़े भिन्न प्रकार की स्थिति हो सकती है- ग्रामीण क्षेत्र में पर्याप्त खाद्यान्न हो सकता है लेकिन इसे खरीदने के लिए पैसे न हों। इससे उबरने का तरीका यथासंभव बाहरी शहरी बाजारों से स्थानीय अर्थव्यवस्था को अलग करना हो सकता है।
Published: 13 May 2020, 12:45 PM IST
वैश्विक तौर पर देखें, तो राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं से लेकर कॉरपोरेट बिजनेस तक- सभी एक किस्म की खोली में जा रहे हैं। वे मुक्त व्यापार बाजार अर्थव्यवस्था और इसके वैश्वीकरण के मूलभूत स्वरूप को तोड़ने जा रहे हैं। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और राजनीतिक संरचना भी टूट रही है। राष्ट्रीय स्तर पर, खास तौर से ग्रामीण क्षेत्र में बाजार अर्थव्यवस्था को अंदरूनी तौर पर ध्यान रखने वाली स्थानीय अर्थव्यवस्था से बदले जाने की जरूरत है। इन स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को बाहरी मुद्रा झटकों से बचाना होगा, जहां तक संभव हो, गैरमुद्रा ऋण या उपहार अर्थव्यवस्था की तरह अपने सामुदायिक धन या अपने ही बीच के विनिमय के जरिये।
लगभग इसी तरह के लक्ष्य की तरफ कदम बढ़ाते हुए चीन ने इस माह से ही बाहरी मुद्रा झटकों से अपनी घरेलू अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए राष्ट्रीय मुद्रा के साथ-साथ चार प्रमुख शहरों में सरकार-नियंत्रित स्थानीय डिजिटल मुद्रा का परीक्षण आरंभ किया है। इस रूप में स्थानीयकरण का मतलब स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को आत्मभरोसे लायक बनाना है। यह आत्मनिर्भरता नहीं है। यह स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं के सांचे में अपने अतिरिक्त उत्पादन का विनिमय है, मतलब उत्पादकों और उपभोक्ताओं के बीच दूरी को कम करना।
Published: 13 May 2020, 12:45 PM IST
सभी देशों में आर्थिक संकुचन देखा जा रहा है। लेकिन प्रवासी मजदूरों के मुद्दे को लॉकडाउन के दौरान करीब दो महीने से गलत ढंग से निबटाने की वजह ने भारत के आर्थिक संकट को भिन्न आयाम दे दिया है। चक्का अब विपरीत दिशा में घूम रहा है- विशहरीकरण (डीअर्बनाइजेशन) और विऔद्योगीकरण (डीइंडस्ट्रीलाइजेशन) अब वास्तविक संभावनाएं लगती हैं।
2011 जनगणना के अनुसार, भारत की आबादी के करीब 69 प्रतिशत लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं और 39 प्रतिशत प्रवासी हैं। इस आर्थिक महामारी में भारतीय अर्थव्यवस्था की जीवनरेखा स्थानीय जरूरतों और अतिरिक्त व्यापार के लिए उनके विविध स्थानीय उत्पादन के बीच संतुलन साधते हुए स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं के ढांचे में ग्रामीण क्षेत्र में बदलाव पर निर्भर है।
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Published: 13 May 2020, 12:45 PM IST
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Published: 13 May 2020, 12:45 PM IST