विचार

मोदी सरकार में वित्तीय सेविंग्स में भरोसा घटा, ऐसे में आत्मनिर्भर भारत का सपना पूरा होने से रहा

आज जब आत्मनिर्भर भारत का नारा दिया जा रहा है, जिसके लिए भारी पूंजी निवेश की जरूरत है, तब सरकार की वित्तीय दशा ठीक वैसी है जैसा मिल्टन फ्रीडमैन ने कभी कहा था- अगर आप किसी सरकार को सहारा रेगिस्तान का प्रभारी बना दें तो पांच साल में वहां रेत की कमी हो जाएगी।

फोटोः प्रतीकात्मक
फोटोः प्रतीकात्मक 

अर्थशास्त्री मिल्टन फ्रीडमैन को एक दफा यह कहते हुए उद्धृत किया गया थाः ‘अगर आप किसी संघीय सरकार को सहारा रेगिस्तान का प्रभारी बना दें तो पांच साल में वहां रेत की कमी हो जाएगी।’ जब हम अनलॉक कर रहे हैं और आत्मनिर्भर भारत की आशा कर रहे हैं जिसके लिए भारी पूंजी निवेश की जरूरत है, सरकार की वित्तीय दशा उससे अलग नहीं है जैसा मिल्टन फ्रीडमैन को उद्धृत किया गया था।

किसी सरकार की फंडिंग के दो स्रोत होते हैं: एक, टैक्स- जैसे इसके अपने राजस्व प्रवाह और दो, उधार के जरिये- प्रमुखतः पेंशन योजनाओं, भविष्य निधि और बीमा फंडों- जैसी वित्तीय संस्थाओं के जरिये सरकार को परिवारों से उपलब्ध होने वाली बचत राशियों के जरिये। भारत के लिए, इन फंडों के दोनों ही स्रोत महामारी के प्रकोप से काफी पहले से ही मंदी में रहे हैं।

Published: 17 Jul 2020, 5:03 PM IST

राजस्व पक्ष में भारत का टैक्स-जीडीपी अनुपात लगभग 17 प्रतिशत है। यह 37 सदस्य देशों वाले अंतरसरकारी आर्थिक संगठन- ऑर्गनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओईसीडी) के औसत से आधा और ब्राजील (34 प्रतिशत), दक्षिण अफ्रीका (34 प्रतिशत) और चीन (22 प्रतिशत) जैसी दूसरी उभर रही अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भी कम है।

सरकार की प्राथमिक उधार का स्रोत- पारिवारिक वित्तीय सेविंग्स भी गिर रहा है। यह 2007-08 में जीडीपी का 12 प्रतिशत था जो हाल के वर्षों में 7 प्रतिशत रह गया है। यह गहरी चिंताजनक स्थिति है, क्योंकि भारतीय आर्थिक विकास घरेलू बचत पर ही प्रमुख रूप से वित्तपोषित रहा है। यह बात चिंता बढ़ाने वाली है कि भारतीयों ने कभी भी वित्तीय बचत को प्राथमिकता नहीं दी है। वित्तीय बचत में पारिवारिक संपत्ति सिर्फ 5 प्रतिशत रही है ,जबकि रीयल इस्टेट में यह 77 प्रतिशत है।

Published: 17 Jul 2020, 5:03 PM IST

फिर भी, गिरावट चिंताजनक है, क्योंकि भारत अंतर्निहित जोखिमों की वजह से विदेशी फंडिंग से बचता रहा है। ऐसी हालत में, यह समझना महत्वपूर्ण है कि आखिर, वित्तीय सेविंग्स में भारत का विश्वास क्यों गिर रहा है। परिवारों के ख्याल से, ऐसा अधिकतर बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के कामकाज की वजह से है। इनमें से कई पर से पारंपरिक विश्वास को काफी ठेस पहुंची है। यह अब भी देखा जा सकता हैः संकट की इस घड़ी में चलन में आई मुद्रा का स्तर अब तक का सर्वाधिक है- यह जीडीपी का 12 प्रतिशत है।

शुरुआत करने के लिए, बैंकों को निश्चित तौर पर कुछ अधिक ही विश्वसनीय काम करने होंगे, बल्कि भविष्य निधि और पेंशन फंडों तथा जनसाधारण के लिए बीमा उत्पादों- जैसी निवेश योजनाओं को प्रोत्साहित करने वाली योजना पर जोर की भी जरूरत है। यह तर्क दिया जा सकता है कि भारत के पास यह सबकुछ है, लेकिन सच्चाई यह है कि भारत की अधिकांशतः अनौपचारिक अर्थव्यवस्था है और यहां भविष्य निधि- जैसी कोई सामाजिक सुरक्षा वस्तुतः 90 प्रतिशत श्रमशक्ति के पास नहीं है और पेंशन की सुविधा कुछ खास लोगों को ही मिलती है। पेंशन फंड संपत्तियां अपने यहां 1 प्रतिशत है जबकि ब्रिटेन में यह 95 प्रतिशत है।

Published: 17 Jul 2020, 5:03 PM IST

जनधन योजना ने वित्तीय समावेशन किया है, पर अभी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है। बचत के मामले में ऐसे प्रावधान की काफी जरूरत है जो कुछ आश्वासन के साथ सकारात्मक वास्तविक प्रतिफल दर (रेट ऑफ रिटर्न) दे और इतनी साधारण और समझने में आसान हो कि कोई प्रवासी मजदूर भी इसके लिए आवेदन कर सके। आप इस तरह की बचत की किसी गाड़ी के बारे में सोच सकते हैं?

कहने की जरूरत नहीं कि यह दीर्घकालीन आधार पर देश में कम मुद्रास्फीति के रखरखाव पर अनुमानित है ताकि निवेश किया गया धन अपना मूल्य न खोए। ऐसा करने के लिए, सरकार की भूमिका महत्वपूर्ण है, क्योंकि कमजोर सार्वजनिक आय मुद्रास्फीति में भागीदारी करता है, पारिवारिक सेविंग्स को बेकार बनाता है और ब्याज दरों को बढ़ाता है, जिससे निवेश गतिविधि में अड़चन होती है।

Published: 17 Jul 2020, 5:03 PM IST

पहले सरकार की उधारी ने सभी पारिवारिक वित्तीय सेविंग्स का उपयोग कर लिया और प्राइवेट कॉरपोरेट सेक्टर को अपनी प्रतिधारित (रीटेन्ड) आय से अपने लिए पूंजी का इस्तेमाल करना पड़ा जिससे पूंजी की कीमत बढ़ी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनकी प्रतिद्वंद्विता में गिरावट आई। इसे दुरुस्त करने के लिए सरकारी उधार को इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करने पर खास तौर से केंद्रित करना चाहिए क्योंकि यह हाउसिंग , ग्रामीण इन्फ्रास्ट्रक्चर, सक्षम सप्लाई चेन, रेफ्रीजरेशन सुविधाओं आदि- जैसी आपूर्ति को तैयार करते हैं।

पानी के बिलों को सब्सिडाइज करने, मेट्रो की मुफ्त सवारी उपलब्ध कराने से वोट मिलते हैं, लेकिन ये दुर्लभ उपभोक्ता सामग्रियों की कीमतें बढ़ाती हैं जिससे लोग और सरकार- दोनों को गरीब बनना पड़ता है! सब्सिडी सुधार का एक क्षेत्र यह भी हो सकता है कि किसी भी नई सब्सिडी के साथ दो पुरानी सब्सिडी हटा दी जाएं। अगर ऐसा समाधान हुआ तो कुल सार्वजनिक धन व्यय कई गुना बढ़ाया जा सकता है, क्योंकि तब यह कुल सब्सिडी की मात्रा के बराबर होगी।

Published: 17 Jul 2020, 5:03 PM IST

सरकार को भारत की आत्मनिर्भर निवेश जरूरतों के लिए (बैंकों के लिए) उधार के वैकल्पिक स्रोतों की व्यवस्था करनी चाहिए। तरल बॉण्ड मार्केट मध्यवर्ती सेविंग्स का सक्षम तरीके से रास्ता बना सकता है। वैसे, भारत के बॉण्ड मार्केट की विशेषता निम्न सरकारी भागीदारी है, जो कॉरपोरेट बॉण्ड मार्केट को बढ़ने के प्रति हतोत्साहित करती है। न्यूनतम मापदंड के लिए सरकार को कॉरपोरेट की दरकार होती है। कॉरपोरेट बॉण्ड में विदेशी भागीदारी को मौका देना भी सख्त जरूरी तरलता उपलब्ध करा सकता है।

आत्मनिर्भर भारत बड़ा नारा है, लेकिन इसे व्यवहार में लाने के लिए बेहतर अनुशासन की जरूरत होगी और सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि खर्च करने की उसकी आदतें खुद को ही हरा देने वाली और उसी मूल सिद्धांत को तोड़ने वाली नहीं है जो उसे पूंजी उपलब्ध कराती है।

Published: 17 Jul 2020, 5:03 PM IST

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Published: 17 Jul 2020, 5:03 PM IST