मैं बैंगलोर के अपने एक ऐसे मित्र से बात कर रहा था, जिसने जिंदगी का बड़ा हिस्सा अमेरिका में गुजारा है। वह एक सॉफ्टवेयर फर्म में काम करता है और काम के सिलसिले में उसे साल में तीन बार भारत की यात्रा करनी पड़ती है। मैं उसे करीब एक चौथाई शताब्दी यानी 25 सालों से जानता हूं और वह नियमित कूर से भारत आता है। यही सका रुटीन रहा है और इस तरह वह हरास कम से कम 60 दिन भारत में गुजारता है।
लेकिन, इस बार वह अगले महीने बेंगलोर नहीं आ रहा, हालांकि उसे आना था। इतना ही नहीं उसे यह भी नहीं पता कि अगली बार उसे कब भारत भेजा जाएगा। कंपनियां अपने कर्मचारियों को किसी भी जोखिम में नहीं डालना चाहती, खासतौर से अमेरिका और यूरोप की कंपनियां ऐसा सोचती हैं। उनके यहां ऐसे कानून हैं जिसके मुताबिक अगर किसी कर्मचारी को लगता है कि उसे खतरे में डाला जा रहा है तो वह अपनी सुरक्षा के लिए इसका इस्तेमाल कर सकता है। ऐसे में जब तक कोविड-19 का टीका नहीं बन जाता तब तक ऐसी ही स्थिति रहने के आसार हैं।
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इन हालात का निश्चित रूप से एयरलाइंस पर गहरा असर पड़ेगा। पहले से ही दुनिया भर में अंतरराष्ट्रीय यात्रा पर बहुत अधिक पाबंदियां लगी हुई हैं। यूरोपीय लोग अमेरिका नहीं जा सकते और अमेरिकी यूरोप। भारत में भी लॉकडाउन खत्म होने की अवधि 15 अप्रैल तक सभी यात्री उड़ानें बंद हैं। इस तरह काम के सिलसिले में इधर-उधर हवाई यात्रा करने वालों की संख्या भी कम ही रहेगी। और लॉकडाउन खुलने के बाद भी ज्यादातर यात्री वहीं होंगे जो इधर उधर फंसे हुए हैं। इस तरह पिछले साल के मुकाबले हवाई सफर का ट्रैफिक कम नही रहने की संभावना है।
ऐसे में उन एयरलाइंस का क्या होगा जो बहुत कम मुनाफ या मार्जिन पर अपने ऑपरेशन चलाती हैं? उन्हें अपना कारोबार चलाना मुश्किल हो जाएगा, ऐसे में सरकार को तय करना होगा कि उनकी आर्थिक मदद की जाए या नहीं या फिर लीज पर लिए उनके विमान कर्जदारों द्वारा वापस लिए जाने और एयरलाइंस स्टाफ और पायलटों को भूखों मरने के लिए छोड़ दिया जाए। ऐसे में जहां सरकारी एयरलाइन एयर इंडिया को बेचने की कोशिश हो रही थी, हो सकता है कि आने वाले दिनों में सरकार कुछ प्राइवेट एयरलाइंसम हिस्सेदारी खरीदे।
इसके अलावा पर्यटन क्षेत्र में दुनिया की करीब 10 फीसदी आबादी को रोजगार मिलता है। मेरा दोस्त बेंग्लोर आता है तो होटल में रुकता है, लेकिन अब होटलों को भी नुकसान होगा क्योंकि बिजनेस यात्रा पर आने वाले अब अपने यहां से ही काम करना पसंद करेंगे। रेस्त्रां को भी अच्छी खासी आमदनी से हाथ धोना पड़ेगा क्योंकि महामारी का संकट खत्म होने के बाद भी लोग घरों में ही रहना पसंद करेंगे। इसी तरह मॉल, सिनेमा और दूसरी ऐसी जगहों पर चलने वाले कारोबारों को भी नुकसान ही उठाना पड़ेगा। स सबसे हम कैसे निपटेंगे और हमारी नई अर्थव्यवस्था का आखिर क्या रूप होगा? फिलहाल हमें नहीं पता है, और हालात के बीच ही धीरे-धीरे हमें यह समझ आएगा।
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एचडीएफसी के चीफ इकोनॉमिस्ट ने इसी सप्ताह लिखा है कि कोविड-19 के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को कम से कम 100 अरब डॉलर का नुकसान होगा, जो भारतीय रुपए में साढ़े सात लाख करोड़ होता है। यह रकम हमारे रक्षा बजट और मनरेगा, शिक्षा, स्वास्थ्य, पीएम आवास, स्मार्ट सिटी, स्वच्छ भारत, मिड डे मील, पेयजल और सिंचाई के मद में होने वाले खर्च के बराबर है। यानी अगर हम इन सब योजनाओं आदि पर खर्च न करें, जो कि असंभव सी बात है, या फिर हम इतना पैसा कर्ज लें या फिर इतने नोट छापें।
इस समय किसी भी ऐसे सेक्टर की कल्पना नहीं की जा सकती जो इस महामारी से प्रभावित नहीं है। कारों की बिक्री मार्च में 50 फीसदी कम हो गई। जबकि मार्च में हम सिर्फ एक सप्ताह ही लॉकडाउन में थे। अप्रैल में तो यह आंकड़ा और भी खराब होगा क्योंकि आधा महीना तो लॉकडाउन में ही है। इस सप्ताह बिजली खपत 25 फीसदी कम रही क्योंकि फैक्टरियां बंद हैं औ इससे तीन सप्ताह का माल नहीं बन पाया। इसके बाद भी फैक्टरियां तभी चलेंगी जब मजदूर वापस लौटेंगे, लेकिन हालात को देखते हुए ऐसा लगता नहीं है।
देश की जीडीपी को इस महामारी से कितना नुकसान होगा, इसे लेकर तीन-चार अनुमान हैं। सबसे ज्यादा आशावादी अनुमान में जीडीपी को 2 फीसदी नुकसान की बात कही जा रही है जबकि सबसे निराशावादी अनुमान के मुताबिक जीडीपी को 4 फीसदी तक का नुकसान हो सकता है। लेकिन सच्चाई तो यह है कि फिलहाल किसी को अंदाजा नहीं है कि अप्रैल और मई में क्या होगा। ठीक ऐसा ही फरवरी और मार्च में भी हुआ था, जबकि कोरोना वायरस की खबरें अखबारों में आने लगी थीं।
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हकीकत यह है कि कोरोना वायरस 2020 के बाकी बचे हिस्से को दुनिया भर में प्रभावित करता रहेगा और इसके मध्य या दीर्घावधि असर होगा। लघु अवधि की स्थिति तो हमने देख ली है, क्योंकि ये सब सामने दिख रहा है। लेकिन आने वाले दिन अधिक मुश्किल भरे हो सकते हैं। हो सकता है आने वाला वक्त हमारी पूरी पीढ़ी को ही प्रभावित करे, क्योंकि अभी तो हम इस स्वास्थ्य संकट के मध्य में ही हैं। भेल ही इस पर चर्चा नहीं हो रही है, लेकिन होना तो है।
प्रधानमंत्री और देश दोनों के लिए आने वाला वक्त मुश्किल भरा है, खासतौर से लॉकडाउन खत्म होने के बाद।
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