
मोहम्मद अखलाक के परिवार ने उत्तर प्रदेश सरकार के उस आवेदन को चुनौती दी है जिसके ज़रिये उसने मोहम्मद अखलाक की हत्या के अभियुक्तों पर से मुकदमा रद्द करने को कहा है। नोएडा की अदालत ने इस अर्ज़ी को मंजूर भी कर लिया है। अखलाक के परिवार ने पूछा है कि क्या लाठी से पीट-पीटकर हत्या करना कोई कम संगीन जुर्म है। उन्हें यह इसलिए पूछना पड़ा कि सरकार ने क़त्ल के मुलज़िमों के जुर्म को यह कहकर कमतर आंका है कि उनके पास से कोई हथियार बरामद नहीं हुआ था। सरकार ने हत्या के अभियुक्तों के पक्ष में यह दलील भी दी कि इस हत्या को इतना गंभीर नहीं मानना चाहिए, क्योंकि अभियुक्तों की अख़लाक़ से कोई जाती दुश्मनी नहीं थी। मुकदमा रद्द करने के पक्ष में सरकार का सबसे बड़ा तर्क यह है कि इससे सामाजिक सौहार्द क़ायम करने में मदद मिलेगी। लेकिन इन सबके अलावा, उसने एक बात और कही जिसपर चर्चा होनी चाहिए। उसने कहा कि अखलाक के घर से जो गोश्त बरामद हुआ था, वह गाय का था। यह ‘तथ्य’ इसलिए मुहैया कराया गया कि सरकार साबित करना चाहती है कि अख़लाक़ की हत्या अभियुक्तों ने यों ही नहीं की थी, उसका एक वाजिब कारण मौजूद था: अखलाक के घर में गोमांस होने के शक पर उन्होंने उसे मारा था। इसलिए उनकी हत्या धर्मार्थ की गई थी। अखलाक ने सबसे बड़ा पाप किया था और उनके पड़ोसी हिन्दुओं ने इसके लिए उन्हें मृत्यु दंड दिया जो सरकार की निगाह में क्षम्य है। उसे अपराध गिना ही नहीं जाना चाहिए। सरकार हत्या का कारण बतला रही थी या उसका औचित्य सिद्ध कर रही थी।
Published: undefined
अदालत ने पिछली सुनवाई में सरकार से पूछा था कि क्या हत्या का मुक़दमा वापस लेने की कोई मिसाल मौजूद है। आगे वह और क्या पूछेगी, इसका हम इंतज़ार करेंगे। इस मामले में अदालत के फ़ैसले से हमें यह भी मालूम हो जाएगा कि क्या भारत में अब औपचारिक तौर पर मनु स्मृति लागू कर दी गई है या नहीं।
मोहम्मद अखलाक की हत्या के मामले में सरकार के रुख पर बात करते हुए उत्तर प्रदेश के ही एक दूसरे इलाक़े में हुई एक हत्या पर उसके और अदालत के रुख़ पर बात करना विषयांतर नहीं होगा। बहराइच की एक अदालत ने अभी कुछ रोज़ पहले एक मुसलमान सरफराज को मौत की सजा सुनाई। उसपर आरोप है कि उसने राम गोपाल शर्मा नामक हिन्दू की गोली मारकर हत्या कर दी थी। यह घटना एक साल पहले हुई थी। अक्तूबर 2024 में दुर्गा पूजा के एक जुलूस में हिन्दुओं की एक आक्रामक भीड़ सरफ़राज़ के घर के आगे नारे लगाती दिखलाई देती है। उस भीड़ से राम गोपाल मिश्रा अचानक सरफराज के घर में घुस जाता है।उन्माद में नारे लगाते हुए वह सरफराज की छत पर चढ़ जाता है। वहां रेलिंग पर लगा ‘अलम’ नोंचने लगता है और उस रेलिंग को तोड़ डालता है। उसके बाद गोली चलती है और वह मारा जता है।
Published: undefined
आप मेरे घर में जबरन घुस जाएं, तोड़-फोड़ करने लगें और मेरी सुरक्षा को ख़तरा दिखलाई पड़े, तो शायद मुझे आत्म रक्षा का अधिकार होना चाहिए। ख़ासकर तब जब पुलिस हिंसक भीड़ को रोकने को कुछ नहीं कर रही है और न मेरे घर में घुसनेवाले को रोकने के लिए कुछ कर रही है। मौत दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन अपने ऊपर हमला करनेवाले पर गोली चलाने को आतंक फैलाने की घटना कहना कितना उचित है?
बहरहाल! इस एक घटना में एक साल बीतते-बीतते इंसाफ़ हो गया। अभियुक्त को सबसे बड़ी सज़ा, सज़ा-ए-मौत की सिफ़ारिश सरकार ने की और अदालत ने मनु स्मृति का हवाला देते हुए प्रजा में भय बिठाने के लिए यह दंड सरफ़राज़ को दे भी दिया।
अख़लाक़ और सरफ़राज के मामलों में एक समानता है। दोनों के घरों पर हमला हुआ। अख़लाक़ के घर पर हमले के लिए गांव के मंदिर से, जो अख़लाक़ के पड़ोस, ऐलान करके भीड़ इकट्ठा की गई। अख़लाक़ के गांववाले अख़लाक़ के घरपर और उनपर हमला करने की नीयत से इकट्ठा हुए। उन्होंने योजना बना कर उनके घर पर हमला किया और अख़लाक़ को घर से खींचकर निकाला और दिन दहाड़े पीट-पीट कर मार डाला। यह कोई क्षणिक आवेश या क्रोध के अतिरेक में की गई हत्या न थी। यह ठंडे दिमाग़ से सोच-समझकर योजनाबद्ध तरीके से किया गया हमला और हत्या थी। यह हिंसा सचमुच आतंकवादी हिंसा की श्रेणी में आती है, क्योंकि इससे सारे मुसलमानों में दहशत फैल गई। अब उन्हें यक़ीन नहीं कि कब उनके पड़ोसी उनके घर में घुसकर उनके फ्रिज, रसोई आदि की जांच करने लगें और उनपर कोई भी इल्ज़ाम लगाकर उन्हें मार डालें। अख़लाक़ की हत्या के बाद इस आरोप की आड़ में अनेक मुसलमानों को पीट-पीट कर मार डाला गया है। वह सिलसिला जारी है।
Published: undefined
अख़लाक़ की हत्या के बाद सभी आरोपी जमानत पर रिहा कर दिए गए। दो की मौत प्राकृतिक कारणों से हो गई। उन्हें राष्ट्रध्वज ओढ़ा कर उनकी शव यात्रा निकाली गई, मानो वे किसी राष्ट्रीय कर्तव्य में शहीद हुए हों। हिन्दू गांववालों को अख़लाक़ की हत्या का ज़रा भी अफ़सोस नहीं है, बल्कि वे अख़लाक़ की हत्या को जायज़ मानते हैं। भारतीय जनता पार्टी के नेताओं और मंत्रियों ने अभियुक्तों के पक्ष में बयान दिए। हत्या के बाद अख़लाक़ के परिवारवालों के लिए गांव में रहना मुश्किल हो गया और प्रायः उनका घर वीरान ही पड़ा रहा।
उत्तर प्रदेश सरकार के अनुसार, अख़लाक़ की हत्या इतना गंभीर जुर्म नहीं, बल्कि जुर्म ही नहीं है। वह दलील दे रही है कि अभियोजन का पक्ष कमजोर है, गवाही पूरी होने में देर हो रही है और पर्याप्त सबूत नहीं मिल रहे, इसलिए भी मुक़दमा चलाने में वक्त क्यों बर्बाद करें।
हत्या के मामले में अभियुक्त के ख़िलाफ़ सबूत इकट्ठा करने, गवाही पक्की करने का काम पुलिस का है। यहां राज्य यह कह रहा है कि वह यह नहीं कर पाया है और न उसकी इच्छा है कि वह अभियुक्तों के ख़िलाफ़ मुक़दमा मज़बूत करे। वह मुक़दमा चलते रहने और दंड की आशंका से भयभीत है। उसका कहना है कि इससे समाज में अशांति पैदा हो रही है। न्याय के मुक़ाबले वह समाज में शांति के लिए चिंतित है। वह यह नहीं कह रहा कि इस समाज का मतलब सिर्फ़ हिन्दू समाज है। मुक़दमा वापस लेने और अख़लाक़ के क़त्ल के मुलज़िमों को यों ही छोड़ देने का असर मुसलमान समाज पर क्या पड़ेगा, इसकी उसे परवाह नहीं। बल्कि शायद वह चाहता है कि हिन्दुओं की शांति के लिए मुसलमान उन्हें यह अधिकार दे दें कि वे उनकी हत्या करें और उसके बाद उस हत्या या हिंसा के बारे में बात भी न करें, क्योंकि इससे हिन्दुओं के चैन में ख़लल पड़ता है।
Published: undefined
अख़लाक़ की हत्या का कोई प्रतिरोध उस वक्त नहीं किया जा सका। भीड़ इत्मीनान से उनकी हत्या करती रही। राज्य के मुताबिक़ यही उचित है। राम गोपाल मिश्रा की हिंसा का प्रतिरोध किया गया और वह मारा गया। सरकार और अदालत राम गोपाल की हिंसा की बात नहीं करना चाहती। बावजूद इसके कि उकसावा राम गोपाल मिश्रा और हिन्दू भीड़ का था, सरकार इसके बारे में कुछ नहीं कह रही है। सरकारी रुख़ को अब अख़बार भी जायज़ ठहरा रहे हैं। इंडियन एक्सप्रेस ने इसकी रिपोर्ट करते समय कहा कि राम गोपाल मिश्रा सरफराज की छत पर हालात का जायज़ा लेने चढ़ा था। उसने राम गोपाल के हिंसक कृत्य का ज़िक्र ही ग़ायब कर दिया। अब मुसलमानों के घरों में घुसना हालात का जायज़ा लेने के नाम पर जायज़ मान लिया जाएगा और मुसलमानों को कहा जाएगा कि उन्हें इसमें कोई बाधा नहीं डालनी चाहिए।
मनु स्मृति का सैद्धांतिक आधार यह है कि सभी लोग समान नहीं हैं। ब्राह्मण की हत्या का दंड मृत्यु है, लेकिन ब्राह्मण के द्वारा शूद्र की हत्या का दंड मृत्यु नहीं है, प्रायश्चित है। आज हम उससे भी आगे बढ़ गए हैं। हिन्दू अगर मुसलमान की हत्या करे, तो अब प्रायश्चित भी नहीं करना है, बल्कि उसका जश्न मनाना है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राज्य में मुसलमानों के साथ बलात्कार, हिंसा या उनकी हत्या करने पर उनका सार्वजनिक अभिनंदन किया जाता है। कठुआ, झारखंड, दादरी, कोलकाता में यही किया गया है। देखना यह है कि मोहम्मद अख़लाक़ की हत्या को नोएडा की अदालत संविधान की निगाह से जांचती है या आरएसएस की मनु स्मृति की निगाह से।
Published: undefined