विचार

विष्णु नागर का व्यंग्यः मोदीजी ऐसे ही 18 घंटे काम की जिद पर अड़े रहे तो देश का और  बुरा हाल होगा!

दुख होता है प्रधानमंत्री की यह दशा देखकर कि बेचारे देश के लिए नींद की कुर्बानी तो दे ही रहे हैं, मगर मैं उनसे प्रेरणा नहीं ले पाता। दुख तो इस बात का है कि इनके भक्तों तक का यही हाल है। यह बुरी बात है, मगर जब मोदी जी को ही इसकी परवाह नहीं तो मुझे क्यों हो!

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

मुझे दुख तो बहुत होता है कि हमारे प्रिय प्रधानमंत्री जी को 18-18 घंटे काम करना पड़ता है, जबकि मैं जो उनसे उम्र में तनिक बड़ा हूं- 8 घंटे जमकर सोता हूं और दिन में सोता नहीं तो झपकी तो ले ही लेता हूं। दुख तो होता है प्रधानमंत्री की यह दशा देखकर कि हाय बेचारे देश के लिए नींद की कुर्बानी तो दे ही रहे हैं, मगर मैं उनसे प्रेरणा नहीं ले पाता। मुझे क्या मेरे बच्चों तक को उनसे यह प्रेरणा नहीं मिल पाती और उनके बच्चों को तो बिल्कुल भी नहीं। मेरे पड़ोसियों, मित्रों-परिचितों का भी ठीक यही हाल है।

दुख तो इस बात का है कि इनके भक्तों तक की यही स्थिति है। यह बुरी बात है, मगर जब मोदी जी को ही इसकी परवाह नहीं है तो मुझे क्यों हो! उन्होंने हम सबको सुधार कर ठीक कर देने का ठेका ले रखा है, हमें तो किसी ने दिया भी नहीं और हमने लिया भी नहीं! हमसे तो हमारा अपना ठेका भी नहीं लिया जा रहा और वैसे भी मैं सिद्धांतत: ठेका प्रथा के विरुद्ध हूं।

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जहां तक प्रेरणा लेने की बात है, मैं इस मामले में इतना लीचड़ हूं कि गांधीजी तक से प्रेरणा नहीं ले पाया तो उनके सामने प्रधानमंत्री-गृहमंत्री वगैरह क्या बेचते हैं! 'मां खादी की चादर दे दे, मैं गांधी बन जाऊंगा', कविता बचपन में पढ़कर गांधी बनने की प्रेरणा मिली अवश्य थी, मगर मां ने खादी की चादर लाकर नहीं दी और गांधी बनने की प्रेरणा पर भी वहीं विराम लग गया।

प्रधानमंत्री तो खैर वैसे भी मैं सौ जनम में बनना नहीं चाहता था, मक्खी-मच्छर-चूहा-सूअर बनकर भी नहीं। ऊपर से हमारे प्रधानमंत्री ने यह नया आदर्श उपस्थित करके और विरक्ति जगा दी है कि प्रधानमंत्री बनने के योग्य वही हो सकता है, जो दिन में पांच-सात बार नई-नई ड्रेसें बदले। इधर अपना हाल यह है कि अपन एक ड्रेस तीन नहीं तो दो दिन तो चलाते ही हैं। वैसे हर दिन नई-नई ड्रेस बदलने का शौक न पहले मुझे कभी था, न अब है और न मेरी ऐसी हैसियत रही कभी। प्रधानमंत्री जितनी ड्रेस एक दिन में बदलते हैं, उतनी तो कुल ड्रेसें भी मेरे पास नहीं हैं! वैसे भी ड्रेस बनवाने -बदलने के इस काम में प्रधानमंत्री के कम से कम रोज दो घंटे तो खर्च हो ही जाते होंगे, जबकि मैं इन दो घंटों का सदुपयोग सोने के लिए कर लेने को अपने लिए आदर्श मानता हूं।

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फिर उन्हें दो-दो, तीन-तीन घंटे भाषण देने में भी खुशी-खुशी खर्च करने पड़ जाते हैं। उसमेंं आत्म प्रशंसा और झूठ की बढ़िया मिक्सिंग करने के लिए भी उन्हें कम से कम एक घंटा तैयारी में अतिरिक्त लग जाता होगा। मुझे ये सब नहीं करना पड़ता, इस प्रकार मेरे तीन से चार घंटे और भी रोज बच जाते हैं। इतने समय मैं चाहूं तो सो सकता हूं, मगर मैं इतना भी सोता नहीं (और वैसे तो मैं दिन भर भी सोऊं तो किसी की सेहत पर इसका क्या फर्क पड़ेगा और न ईडी और सीबीआई इस बारे में मुझसे पूछताछ करेगी)।

फिर मैं ट्वीटर पर गोडसे समर्थकों को फॉलो भी नहीं करता, इस वजह से भी मेरा मिनीमम आधा घंटा और बच जाता है। फिर मुझे कैमरों के लिए तरह-तरह के पोज भी देने नहीं पड़ते, इससे भी समय की काफी बचत हो जाती है। जैसे मैं चैन्नई एकाधिक बार गया हूं और वहां के समुद्र तट के पास रुका भी हूं, मगर चीनी राष्ट्रपति की कसम मैंने एक बार भी कैमरे फिट करवाकर वहां के समुद्र किनारे का कचरा उठाने का कष्ट या कष्ट करने जैसा कुछ नहीं किया।

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इसके अलावा मुझे किसी न किसी विरोधी को रोज फंसाने का उपक्रम भी नहीं करना पड़ता, इस कारण भी मेरा काफी समय बच जाता है। मुझे अडाणी-अंबानी की दौलत बढ़ाने, देश की अर्थव्यवस्था का भट्टा बैठाने, भुखमरी के इंडेक्स में पाकिस्तान, बांग्लादेश से पिछड़ने, असमानता और बेरोजगारी बढ़ाने, आर्थिक मंदी लाने, विकास दर निरंतर घटाने, बीएसएनएल, एमटीएनएल आदि को डुबाने जैसी तमाम 'राष्ट्रहितों' की चिंता भी नहीं करनी पड़ती। संविधान-कानून की ऐसी-तैसी करने जैसी तमाम चिंताओं से भी मैं मुक्त हूं, इसे भी मैं अपने समय की बचत मानता हूं।

वैसे मुझ 'देशद्रोही' की मानें तो बेहतर तो यह होगा कि स्वयं प्रधानमंत्री भी दस नहीं तो नौ और नौ नहीं तो आठ घंटे तो जरूर सोया करें तथा ड्रेसें बदलने की गति में अधिक तीव्रता ला दें तो देश के लिए इसके अधिक सकारात्मक परिणाम आएंगे, बल्कि देश इसके लिए प्रधानमंत्री का आभारी होगा कि वह अचानक कितने अधिक विवेक से देश को चलाने लगे हैं! देश का बच्चा-बच्चा मोदी -मोदी करने लगेगा और क्या पता 2024 में उन्हें फिर से पांच साल और दे दे!

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अगर प्रधानमंत्री 18-18 घंटे काम करने की जिद पर अड़े रहे तो देश का आज से भी अधिक बुरा हाल होगा। लोग राष्ट्रवाद, हिंदूवाद, धारा 370, जय श्रीराम सब भूल जाएंगे और फिर जो होगा, आप जानते हैं! इसलिए आपका आराम करना हराम की श्रेणी में नहीं आएगा बल्कि आपका आराम ही आपका काम करना साबित होगा। यही प्रेरणा आप अमित शाह, आदित्यनाथ आदि को भी दे सकें तो देश भूलते-भूलते भी आपको याद करेगा, मगर आपकी समस्या यह है कि 'देशद्रोही' अगर आपके फायदे की बात भी कहें तो आप उनकी बात सुनते नहीं, 'मन की बात' ही करते रहते हैं। ऐसी स्थिति में आपको मैं सिर्फ शुभकामना दे सकता हूं, उसका भंडार भरा पड़ा है मेरे पास, बशर्ते कि उसके एक अंश की भी जरूरत आपको हो!

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