विचार

ऑपरेशन सिंदूर का रणनीतिक लेखा-जोखा: पिछले कुछ हफ्तों के घटनाक्रम और उठे सवालों की समीक्षा जरूरी

ऑपरेशन का रणनीतिक उद्देश्य हासिल नहीं हो पाया। संघर्षविराम की घोषणा के बाद भी ड्रोन ऑपरेशन और गोलाबारी संदेश देते हैं कि पाकिस्तान को अब भी खौफ नहीं। ऊपर से जैश समेत तमाम आतंकवादी और चरमपंथी संगठनों की ओर से बदले की धमकियां पहले ही मिल चुकी हैं

फोटो: Getty Images
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तमाशा खत्म हो चुका है और हम अब इसे भूलने की राह पर हैं। अगर हम शहीदों को याद करने के लिए नहीं ठहरते हैं और ऑपरेशन सिंदूर की कीमत और इससे हुए नफा-नुकसान का लेखा-जोखा नहीं करते हैं, तो यह ‘बैसरन मैदान’ में हुए नरसंहार से भी बड़ी त्रासदी होगी।

पिछले कुछ हफ्तों के घटनाक्रम और इस दौरान उठे सवालों की समीक्षा जरूरी है ताकि एक रणनीतिक ‘बैलेंस शीट’ तैयार की जा सके जो भावी नीतियों और प्रतिक्रियाओं की योजना बनाने में मददगार हो। इस संदर्भ में पहला सवाल तो यही है कि क्या बैसरन नरसंहार को रोका जा सकता था और क्या यह एक इंटेलिजेंस चूक थी? इस हमले के बाद हम सब खासे ‘समझदार’ हो गए हैं। ऐसी रिपोर्ट है कि ‘इंटेलिजेंस चेतावनी’ दी गई थी और इसमें खास तौर पर यह आशंका शामिल थी कि श्रीनगर में डल झील के आसपास पर्यटकों पर हमला हो सकता है। लेकिन यह वह जगह नहीं, जहां बैसरन की घटना हुई। इसके अलावा, यह शायद ‘कार्रवाई योग्य’ जानकारी नहीं थी। 

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इससे पहले 18 मई 2024 को पहलगाम में दो पर्यटकों की लक्षित हत्या हो चुकी थी, जब आतंकवादियों ने जयपुर के एक जोड़े पर हमला किया था। इसके अलावा बैसरन हत्याकांड से पहले, ‘साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल’ ने वर्ष 2000 से जम्मू-कश्मीर में पर्यटकों की कम-से-कम 44 लक्षित हत्या की बात कही थी। यह समझने के लिए किसी विशेष प्रतिभा या असाधारण ‘इंटेलिजेंस जानकारी’ की जरूरत नहीं थी कि श्रीनगर या कश्मीर में कहीं और भी पर्यटकों पर हमला हो सकता है। लेकिन क्या उपलब्ध खुफिया जानकारी अतिरिक्त बल तैनात करने या बैसरन में प्रोटोकॉल की समीक्षा के लिए पर्याप्त थी? दूसरे शब्दों में, क्या खुफिया जानकारी ‘कार्रवाई योग्य’ थी? निसंदेह इसका जवाब है- नहीं।

बैसरन घटना दरअसल नीति, प्रचारित धारणा और योजना की विफलता थी। नीतिगत स्तर पर, ‘शून्य आतंकवाद’ के गलत आकलन के तहत कश्मीर को लाखों पर्यटकों के लिए खोलना बुनियादी गलती थी। (अनुमान है कि 2024 में यह संख्या 2.3 करोड़ होगी और बैसरन नरसंहार से पहले 2025 को लेकर जो उम्मीदें थीं, वह और भी ज्यादा थीं) घाटी जाने वाले पर्यटकों की भारी संख्या को ‘सामान्य स्थिति’ के सूचकांक के रूप में पेश करना एक तरह से हर पर्यटक की पीठ पर ‘शूटिंग टार्गेट’ टांग देने जैसा था। सभी संभावित जगहों को चिह्नित किए बिना और उन्हें पर्याप्त सुरक्षा कवर में रखे या नियंत्रित किए बिना घाटी आने के लिए लाखों पर्यटकों को लुभाना योजनागत विफलता थी जिसकी जांच के साथ-साथ इसकी जवाबदेही भी तय होनी चाहिए। 

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दोनों ओर से किए गए जोरदार दुष्प्रचार को देखते हुए ऑपरेशन सिंदूर के बाद सच्चाई का अंदाजा लगाना मुश्किल है। यह अहम है कि संघर्ष विराम के बाद दोनों ही पक्षों ने अपनी-अपनी जीत की घोषणा की, लेकिन उपलब्ध (और संभवतः दोषपूर्ण) साक्ष्यों के आधार पर पता चलता है कि सामरिक और क्रियात्मक स्तर पर भारत मजबूत पक्ष के रूप में उभरा।

सामरिक तौर पर कहें तो नौ आतंकवादी ठिकानों के खिलाफ हमला पूरी सटीकता के साथ किया गया और इसकी पुष्टि करने वाले सबूत हैं। क्रियात्मक स्तर की बात करें तो पाकिस्तान की जवाबी कार्रवाई की पहली लहर में कुछ संभावित पराजय (जिसे भारत सरकार ने अभी तक स्वीकार नहीं किया है) के बावजूद भारतीय सेनाएं पाकिस्तानी सेना की हर जवाबी कार्रवाई का दृढ़तापूर्वक जवाब देते हुए अपनी बढ़त बनाने में कामयाब रहीं जबकि पाकिस्तान भारत को नुकसान पहुंचाने में तुलनात्मक रूप से कम सफल रहा।

हालांकि,ऑपरेशन का रणनीतिक उद्देश्य अब भी हासिल नहीं हो पाया है। संघर्षविराम की घोषणा के बाद भी पाकिस्तान की ओर से ड्रोन ऑपरेशन और तोपखाने की गोलाबारी यह संदेश देते हैं कि इस्लामाबाद को अब भी खौफ नहीं है। जैश-ए-मोहम्मद, ‘अलकायदा इंडियन सब कंटिनेंट’ (एक्यूआईएस) और जमीयत उलेमा ए इस्लाम- सिंध सहित आतंकवादी और चरमपंथी संगठनों की ओर से बदले की धमकियां पहले ही दी जा चुकी हैं।

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महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि पाकिस्तान को भारत के खिलाफ अब तक के चार युद्धों में शिकस्त का सामना करना पड़ा (एक हकीकत जिसे वह नहीं मानेगा) और अब भी कश्मीर के अपने ‘मूल मुद्दे’ पर टिका है। इस संदर्भ में यह याद रखना चाहिए कि अमेरिका ने 14 साल तक पाकिस्तानी धरती पर आतंकियों और उनके ठिकानों के खिलाफ हजारों ड्रोन हमले किए, लेकिन पाकिस्तान ने तालिबान की मदद से हाथ नहीं खींचा और आखिरकार अफगानिस्तान से अमेरिका के जाने के बाद तालिबान काबुल की सत्ता पर काबिज हो गया। इस पृष्ठभूमि में यह मानना ​​कि ऑपरेशन सिंदूर जैसे कभी-कभार होने वाले सैन्य हमले आतंकवाद में भागीदारी के लिहाज से निर्णायक  प्रतिकार होंगे, केवल भ्रम है। 

प्रधानमंत्री मोदी ने घोषणा की है कि ऑपरेशन सिंदूर को केवल स्थगित किया गया है और जैसे ही कोई भी पाकिस्तान समर्थित आतंकी हमला होगा, इसे फिर शुरू कर दिया जाएगा। उन्होंने इसे  ‘न्यू नॉर्मल’ बताया। इस तरह, दंडात्मक सैन्य हमले पाकिस्तान के सिर पर तलवार की तरह लटके रहेंगे; लेकिन वे भारत पर भी उतने ही लटके रहेंगे। ‘न्यू नॉर्मल’ ने नई दिल्ली पर यह दायित्व डाल दिया है कि वह भविष्य में होने वाली हर आतंकवादी कार्रवाई को ‘युद्ध की कार्रवाई’ के रूप में सैन्य रूप से जवाब दे; लेकिन ऐसी हर प्रतिक्रिया के दोहराव पर पाकिस्तान का जवाब भी आएगा, क्योंकि हालिया कार्रवाई वांछित ‘निवारण’ हासिल करने में विफल रही; और ऐसी हर कार्रवाई ‘कश्मीर मुद्दे’ को ‘अंतरराष्ट्रीयकरण’ की ओर आगे बढ़ाएगी।

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अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने कहा है कि उन्होंने भारत-पाक संघर्ष में पड़ना इसलिए चुना क्योंकि ‘लाखों अच्छे और बेकसूर लोग मारे जाते’, इस तरह उन्होंने परमाणु युद्ध के डर का फायदा उठाया- एक ऐसा हथियार जिसका इस्तेमाल पाकिस्तान अक्सर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को बरगलाने के लिए करता है। दक्षिण एशिया विवादों से भरा क्षेत्र है और अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी ताकतें परमाणु डर की आड़ में यहां अपनी भूमिका बढ़ाने की ताक में हैं और यह भारतीय हितों के विपरीत हो सकता है।

इसके अलावा भारत के ‘नए सामान्य’ में कई जटिल कारकों की कीमत शामिल है। सीमा पार बार-बार सैन्य हस्तक्षेप भारत को एक अस्थिर देश के रूप में पेश करेगा और यह निवेशकों में अरुचि लाएगा, खास तौर पर चीन से कई महत्वपूर्ण उद्योगों के तत्काल आने की संभावनाओं को कमजोर करेगा। ऑपरेशन सिंदूर जैसी कार्रवाइयों ने पूरे देश में सामान्य जीवन में खलल पैदा किया है जिसमें गलत सूचनाओं के क्रूर और उन्मादी अभियान अविश्वास और क्रोध का माहौल पैदा कर रहे हैं।

यह निश्चित रूप से देश के आर्थिक जीवन और इसकी ‘विकास कहानी’ को प्रभावित करेगा। अहम बात यह है कि आतंकवाद को लगातार प्रायोजित करने के लिए पाकिस्तान पर दंड लगाने के लिए भारत के पास सैन्य कार्रवाई ही एकमात्र विकल्प नहीं है। पाकिस्तान के खिलाफ असैन्य लेकिन अधिक नुकसानदायक उपाय खोजने की जरूरत है ताकि उसे अपनी करनी की कीमत चुकानी पड़े और आखिरकार इसे सहन करना उसकी क्षमता से बाहर हो जाए। 

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2016 की सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 की बालाकोट बमबारी की तुलना में बेहतर सफलता हासिल करने के बावजूद ऑपरेशन सिंदूर ने रणनीतिक बढ़त या प्रतिकारात्मक खौफ सुनिश्चित किए बिना रणनीतिक स्थिरता को कमजोर किया है। पाकिस्तान सामने आई कमजोरियों को दूर करने के लिए अपनी रक्षा को मजबूत करेगा, यहां तक ​​​​कि आतंकवादी समूह भी जमीन के और भीतर ठिकाने बना लेंगे। हाल के संघर्ष से दोनों पक्षों की कमजोरियों और मजबूतियों का खुलासा हुआ और इससे हथियारों की होड़ तेज होगी और इसमें चीन पाकिस्तान की हर तरह से मदद करेगा। अगर रक्षा के लिए भारत पहले की तरह ही बजट आवंटन के मामले में कंजूस रहता है तो किसी भी भावी कृत्य के खिलाफ पाकिस्तान पर निर्णायक बढ़त हासिल करना मुश्किल होगा।

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डॉ. अजय साहनी ‘साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल’ की देखरेख करने वाले इंस्टीट्यूट फॉर कॉन्फ्लिक्ट मैनेजमेंट के संस्थापक सदस्य और कार्यकारी निदेशक हैं 

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