11 अक्टूबर को गंगा रक्षा के लिए 111 दिनों के उपवास के बाद स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद का निधन एक राष्ट्रीय त्रासदी है। देश और दुनिया में गंगा की रक्षा के लिए बहुत लोग समर्पित हैं, पर जितनी गहराई और एक मन से स्वामी सानंद गंगा की रक्षा के लिए समर्पित थे वह अद्वितीय था, अतुलनीय था। दुनिया में जब किसी नदी की रक्षा के लिए प्राण तक उत्सर्ग कर देने जितने समर्पण की बात होगी तो स्वामी सानंद का नाम बहुत श्रद्धा और सम्मान से लिया जाएगा।
स्वामी सानंद पहले प्रोफेसर जी डी अग्रवाल के नाम से एक मशहूर पर्यावरणविद व इंजीनियर विद्वान के रूप में विख्यात थे। उन्होंने कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय बर्कली से पीएचडी हासिल की और आईआईटी जैसे संस्थान में पढ़ाया। उनके छात्र उन्हें विशेष सम्मान देते थे। उनके कुछ छात्र आगे चलकर देश के विख्यात पर्यावरणविद बने। वे देश के केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मेम्बर सेक्रेटरी रहे।
Published: undefined
कुछ वर्ष पहले उन्होंने संन्यास लिया और स्वामी सानंद का नाम धारण कर पूरी तरह गंगा रक्षा के कार्य में समर्पित हो गए। उन्होंने कई बार गंगा रक्षा के लिए उपवास किया। पूर्व सरकारों ने समय रहते उनकी मांगों पर ध्यान दिया और उन्हें काफी हद तक स्वीकार किया।
इसकी वजह यह थी कि सरकारें जानती थीं कि गंगा नदी की रक्षा पर स्वामी सानंद को बहुत गहरी जानकारी थी। उनके उपवासों की तुलना किसी साधु-संन्यासी द्वारा मनमानी से किए गए उपवास से नहीं की जा सकती है। वे अपनी मांगों को वैज्ञानिक आधार पर रखते थे और उनके पास तमाम वैज्ञानिक जानकारियों और अध्ययनों का आधार रहता था।
हाल के समय में उनकी चिंता यह थी कि जस्टिस गिरधारी मालवीय समिति की रिपोर्ट आने के बाद उसके आधार पर कानून बनाने की कार्यवाही नहीं हो रही थी। इसलिए उन्होंने इस मुद्दे पर गंगा के हिमालय क्षेत्र की कुछ परियोजनाओं पर और गंगा की रक्षा से जुड़े व्यक्तियों की एक परिषद के गठन पर एक पत्र प्रधानमंत्री को फरवरी 24 को लिखा। इसमें से कोई भी मांग ऐसी नहीं थी जो संविधान या सरकारी कार्य के तौर-तरीकों से बाहर हो। उन्होंने किसी परियोजना को अस्वीकृत करने के लिए भी नहीं कहा, बस मात्र संसद में उचित बहस करवाने और तब तक कार्य रोकने के लिए कहा।
उन्होंने पत्र में यह भी कहा था कि यदि यह मांगें अगले 4 महीनों में नहीं मानी गईं तो 22 जून से वे उपवास आरंभ करेंगे। यह चार महीने इन मुद्दों के समाधान के लिए पर्याप्त थे। पर समाधान नहीं हुआ, तो 22 जून से स्वामी सानंद ने उपवास आरंभ कर दिया।
इसके कुछ समय बाद केंद्र सरकार हरकत में आई। मंत्रियों के संदेशे, उनका स्वयं आना-जाना आरंभ हुआ। पर स्वामी जी को आश्वासन संतोषजनक नहीं लगे, तभी उपवास 111 दिन चला और अंत में 9 अक्टूबर को स्वामी जी ने जल भी त्याग दिया। और दो दिन बाद ही 11 अक्टूबर को अस्पताल में उनका देहांत हो गया।
Published: undefined
24 फरवरी से गिनें तो साढ़े सात महीने तक का समय संतोषजनक समाधान के लिए पर्याप्त था, पर इतना समय बीतने पर भी केंद्र सरकार संतोषजनक समाधान नहीं प्राप्त कर सकी, तो यह दुखद है और एक बहुत बड़ी त्रासदी है।
अब आगे हमें यह देखना है कि गंगा नदी और देश की सब नदियों की रक्षा पर अधिक ध्यान दिया जाए और इसके लिए उचित नीतियां, उचित प्राथमिकताएं अपनाई जाएं व इन नदियों की रक्षा से जुड़े सबसे समर्पित व्यक्तियों व संगठनों को इन प्रयासों से जोड़ा जाए।
Published: undefined
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: undefined