विचार

विष्णु नागर का व्यंग्यः प्रधानमंत्री को विदेशों से सम्मान हासिल करने का चस्का, आखिर शौक बड़ी चीज है!

सर्वोच्च नागरिक सम्मान का सौदा जिस देश में नहीं पटता होगा वहां वे यह विकल्प रखते होंगे कि आप अगर गौतम भाई का आर्थिक सम्मान कर सकें तो इसे भी मैं अपना ही सम्मान मानूंगा।

प्रधानमंत्री को विदेशों से सम्मान हासिल करने का चस्का, आखिर शौक बड़ी चीज है!
प्रधानमंत्री को विदेशों से सम्मान हासिल करने का चस्का, आखिर शौक बड़ी चीज है! फोटोः सोशल मीडिया

हमारे प्रधानमंत्री को विदेशों से सर्वोच्च नागरिक सम्मान बटोरने का इधर ज्यादा ही शौक चढ़ा है। इस साल तो साहेब जी दस देशों से सम्मान कबाड़ लाए। अभी-अभी तीन देशों की यात्रा पर गए थे, दो देशों से सम्मान ले आए। एक जोर्डन ही ऐसा देश था, जो इन्हें सम्मानित करने के सौभाग्य से वंचित रहा। उसकी ओर से लगता है कि कहा गया होगा कि देखिए, हम आपके प्रधानमंत्री जी को सर्वोच्च नागरिक सम्मान देने की गलती तो नहीं कर सकते मगर हमारे युवराज हवाई अड्डे पर इनका स्वागत करने आ सकते हैं। उन्हें मंजूर हो तो आएं, उनका स्वागत है और न आना चाहें तो भी स्वागत है!

प्रधानमंत्री ने कहा होगा, जो भी भिक्षा में मिले, बढ़िया है। वैसे हम भी राजा हैं और वे भी राजा। एक राजा, दूसरे राजा को लेने आए, कार खुद ड्राइव करके साथ ले जाए, यह भी बड़ा सम्मान है। इससे इतना नुकसान अवश्य होगा कि नागरिक सम्मानों की सूची में एक कम हो जाएगा! हो सकता है कि मेरी ही तपस्या में कोई कमी रह गई होगी वरना हवाई अड्डे पर स्वागत के साथ मुझे नागरिक सम्मान से भी नवाज़ा जा सकता था!

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आजकल प्रधानमंत्री किसी देश जाएं तो उनकी पूरी कोशिश रहती है कि वहां का सर्वोच्च नागरिक सम्मान लेकर ही आएं। इस वर्ष के समाप्त होने में अभी दस दिन बाकी हैं। प्रधानमंत्री जी दो-चार दिन भारत को अपनी उपस्थिति से लाभान्वित करके पुनः किसी ऐसे देश की यात्रा पर जा सकते हैं, जहां आज तक भारत का कोई प्रधानमंत्री नहीं गया हो या गया हो तो चालीस- पचास या साठ साल पहले गया हो!

ऐसा देश प्रधानमंत्री का नागरिक सम्मान करने से बच नहीं सकता! इस तरह हो सकता है, 31 दिसंबर तक उन्हें मिले सम्मानों की संख्या दस से बारह हो जाए। हर महीने एक सम्मान का औसत बढ़िया है। और इतना न भी हो सके तो भी बुरा नहीं। एक वर्ष में दस सम्मान भी कम नहीं! एंटायर पोलिटिकल साइंस में एम ए करने के बाद इतना सम्मान काफी से अधिक है!

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निश्चित रूप से इतने विदेशी नागरिक सम्मान लगभग ग्यारह वर्ष की अवधि में न तो जवाहरलाल नेहरू को मिले होंगे, न इंदिरा गांधी को! साहेब का मुकाबला वैसे भी कोई क्या खाकर करेगा! 1947 के बाद एक ही तो योग्य प्रधानमंत्री हुआ है। किसी भूतपूर्व प्रधानमंत्री ने कभी चालीस हजार रुपए किलो का गुच्छी मशरूम नहीं खाया होगा और न दिन में छह ड्रेसें बदली होंगी तो उनमें ऐसी काबिलीयत भी कहां से आती!

2023 से प्रधानमंत्री जी को सम्मान हासिल करने का चस्का लग गया है। उस साल माननीय ने छह सम्मान हासिल किए मगर 2024 के चुनावी वर्ष में वह थोड़ा पिछड़ गए। चार से आगे बढ़ नहीं पाए। इससे पहले कभी एक, कभी दो, कभी तीन पाकर भी संतुष्ट हो जाते थे। तब साहेब को इनका चुनावी उपयोग समझ में नहीं आया। बाद में साहेब को लगा कि भारत का (मतलब मोदी) का दुनिया भर में डंका बजता हुआ लगे, इसलिए धड़ाधड़ दुनिया भर के सम्मान बटोरने चाहिए!

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इन्हें सम्मानित करवाने के लिए इनकी विदेश यात्रा से पहले हमारे देश के राजदूत उस मुल्क में लाबिंग करते होंगे कि प्रधानमंत्री जी आपके देश आना चाहते हैं। परस्पर लाभ के अनेक समझौते करेंगे। व्यापार बढ़ाएंगे। रणनीतिक संबंध मजबूत करेंगे और भी जो हो सकेगा, मजबूत करेंगे। वहां का सचिव या मंत्री या प्रधानमंत्री कहता होगा, यह तो बहुत सुंदर विचार है। आप बताइए हम इसके लिए क्या कर सकते हैं?

तो हमारे राजदूत कहते होंगे कि एक तो आप उन्हें अपने देश की यात्रा का आमंत्रण भेजिए। तब वह इस पर विचार करना आरंभ करेंगे मगर वह सकारात्मक ढंग से विचार कर सकें, इसके लिए आपको अपने देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान देना होगा। वहां से सकारात्मक उत्तर मिलता होगा तो प्रधानमंत्री वहां जाते होंगे वरना वह किसी और देश को लाभान्वित करने चले जाते होंगे! वैसे सर्वोच्च नागरिक सम्मान का सौदा जिस देश में नहीं पटता होगा वहां वे यह विकल्प रखते होंगे कि आप अगर गौतम भाई का आर्थिक सम्मान कर सकें तो इसे भी मैं अपना ही सम्मान मानूंगा।

किसी दिन इन सारे सम्मानों का कबाड़ा आपको प्रधानमंत्री म्यूजियम में देखने को मिलेगा। तब भी अगर उनके असली भक्त बचे होंगे तो वे कहेंगे कि मोदी का डंका दुनिया भर में बजता था और बजता ही रहता था! अभी भी बज रहा है और उसके शोर से लोगों के कान आज भी फट रहे हैं!

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