भयंकर गर्मी का यह मौसम भारतीय राजनीति में दूसरों को उनका कद दिखाने का सुहावना मौसम भी है। भारतीय जनता ने या मीडिया ने या अकूत धन ने या सबने मिलकर विपक्ष को फिलहाल उसका कद दिखा दिया है। अब मोदी जी और अमित शाह जी की बारी है पहले अपनों को उनका कद ठीक से दिखाने की, फिर परायों को उनका कद अच्छी तरह दिखाने की।
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मोदी जी ने कृपापूर्वक राजनाथ सिंह को फिर से मंत्री तो बना दिया है, नंबर टू भी घोषित कर दिया है मगर गृह मंत्रालय उनसे छीनकर रक्षा मंत्रालय उन्हें पकड़ा दिया है। रक्षा मंत्रालय पकड़ाकर भी संतोष नहीं मिला तो नये सिरे से उन्हें उनका कद दिखाना शुरू कर दिया। उन्हें मंत्रिमंडल की कई महत्वपूर्ण समितियों से बाहर कर दिया। राजनाथ सिंह ने कुछ लड़भिड़कर 16 घंटे के अंदर फिर से चार महत्वपूर्ण समितियों में जगह पा ली।
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अब देखिए कद दिखाने की यह प्रतियोगिता कब तक, कैसे-कैसे, किन-किन मोड़ों से कहाँ पहुँचती है। रक्षा मंत्री को अब देश की रक्षा से अधिक अपनी रक्षा में दिनरात सन्नद्ध रहना पड़ेगा, मगर मोटा-छोटा भाई से पार पाना काफी मुश्किल है। लगता है राजनाथ जी के भी मार्गदर्शक मंडल में जाने के शुभ दिन आ गए या ज्यादा से ज्यादा राज्यपाल या छोटा मगर मोटा मंत्री बनकर रहने के दिन आ गए। समझो कि राजनाथ जी के तो अच्छे दिन अब आ ही गए! बधाई और शुभकामनाएं लेने के दिन आ गए। नितिन गडकरी भी सोच में पड़ गए हों तो कोई आश्चर्य नहीं।
और, अभी तो मोदी-शाह मिलकर दूसरों को निबटा रहे हैं। बीजेपी की परंपरा के अनुसार इन दोनों मेंं से कब कौन, किसे आडवाणी-जोशी बना देगा, कुछ पता नहीं। वैसे परंपरा तो गुरु को गुड़ बनाकर, खुद को शक्कर साबित करने की है।
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उधर मालेगांव कांड की हिरोइन प्रज्ञा जी के अदालत को अंगूठा दिखाने के दिन भी आ गए हैं। जब देखो, तब जज साहब को अपना कद दिखाने में व्यस्त रहती हैं। मालेगांव कांड में आरोपित हैं तो क्या सांसद तो हैं, नाथूराम गोडसे की भक्त तो हैं! जज साहब बार- बार कहते हैं मैडम जी कृपया अदालत में हाजिर हो जाया कीजिए। उधर उनकी देशभक्ति स्वयंसिद्ध हैं तो वे क्यों हाजिर हों!
कभी अस्पताल में भर्ती होकर अपनी हालत नाजुक बताती हैं और ऐन पेशी के दिन अस्पताल से बाहर आकर महाराणा प्रताप जयंती पर महाराणा को श्रद्धांजलि देने के लिए फिटफाट हो जाती हैं।कभी दौड़ती दिखती हैं, कभी व्हील चेयर पर बैठी नजर आती हैं। बहुरूपा हैं। धर्म, आतंकवाद, राजनीति की त्रिवेणी हैं। बड़ी मुश्किल से इस शुक्रवार को मैडम जी ने अदालत को अपने चरणधूलि से पवित्र किया और वह भी बड़ी अकड़ के साथ! यहाँ धूल है, ये कुर्सी ऐसी क्यों, मुझे बढ़िया कुर्सी क्यों नहीं दी, वगैरह...
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उधर मोदी जी-शाह जी पहले ममता बनर्जी को उनका कद दिखाने मेंं लगे थे,अब नीतीश कुमार को ये दिल्ली में अपना कद दिखा रहे हैं तो पटना में नीतीश जी भी मोदी-शाह को उनका कद दिखा रहे हैं। उधर मायावती ने अखिलेश यादव को कद दिखा दिया है। मौका मिलने की बात है, कद दिखाने में कोई कभी नेता चूकता नहीं। केंंद्रीय आवास और शहरी विकास मंत्री हरदीप पुरी ने मौका मिलते ही, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को फिर से उनका कद दिखाना शुरू कर दिया।
उधर अशोक गहलोत, सचिन पायलट को और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री, इस्तीफा न देने वाले महाधिवक्ता का इस्तीफा स्वीकार कर उन्हें उनका कद दिखा रहे हैं। पंजाब में मुख्यमंत्री और उनके बड़बोले मंत्री में कद दिखाने की रेस चल रही है।
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और न जाने कितनी परस्पर कद दिखाओ प्रतियोगिताएँ देशभर में न जाने कहाँ-कहाँ चल रही हैं।मेरा तो दृढ़ विश्वास है कि देश चल ही इसलिए रहा है कि राष्ट्रीय स्तर पर परस्पर कद दिखाओ प्रतियोगिताएँ परमानेंटली चल रही हैं। आज इन्होंने कद दिखाया, कल वे दिखाएँगे। फिर कोई तीसरा इन दोनों को कद दिखाकर बाय-बाय करता चला जाएगा।
पुलिस वाले रोज ठेलेवाले का ठेला तोड़कर, उसे चार बेंत मारकर उसका कद दिखाते हैंं तो शहर का गुंडा, मंत्री बनकर पुलिस वालों को उनका कद दिखा जाता है। अफसर मौका पाकर क्लर्क को तो कद दिखाता ही रहता है, क्लर्क का दाँव भी अगर चल गया तो वह अफसर को चुल्लू भर पानी में डूबने का अवसर भी नहीं देता। दलितों,आदिवासियों, स्त्रियों को उनका कद दिखाने की प्रतियोगिताएँ तो गौरवशाली भारतीय परंपरा का अभिन्न अंग हैं।
मुसलमानों को तो जो चाहे, जिस बहाने आजकल कद दिखा देता है। कथित संत, सरकार को अपना कद दिखाते हैं, उधर ऊपर से इशारा आता है -' हैंड्स अप' तो अपना कद देख चुप लगा जाते हैं। कुछ का कद तो पहले से तय होता है। चूहा, बिल्ली को, गधा,घोड़े को, बकरी,शेर को अपना कद दिखा ही नहीं सकती। तय है कि इनमें किसका कद किससे बड़ा है। और हम इस प्रतियोगिता का मुजरा लेते रहते हैं और कभी-कभी हँसते-हँसते लोटपोट भी हो जाते हैं।
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