अब मोदी जी और उनके भक्तों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए कि 23 मई को क्या होता है। मोदी जी हार भी जाएँ तो स्वयं उन्हें भी कोई फिक्र नहीं होनी चाहिए क्योंकि एक नामी अंतरराष्ट्रीय पत्रिका 'टाइम' ने मोदी जी को वह असली उपाधि दे दी है, जिसके वह सचमुच हकदार थे। उन्हें अब तक मिली सभी फर्जी उपाधियों-पदवियों पर यह अंतर्राष्ट्रीय उपाधि भारी है।
जैसा गौरव उन्हें इस हफ्ते प्राप्त हुआ है, वह इतिहास में बड़े -बड़े सम्राटों, बादशाहों, राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों को भी आज तक नसीब नहीं हुआ है। 'डिवाइडर इन चीफ' (टुकड़े -टुकड़े गिरोह का सरगना) का जो दर्जा, मोदी जी दूसरों को मुफ्त बाँटा करते थे, उन्हें लौटाकर 'टाइम' पत्रिका ने इतिहास में उनका स्थान ठीक उसी जगह सुनिश्चित कर दिया है, जहाँ पर विनायक दामोदर सावरकर और मोहम्मद अली जिन्ना का नाम पहले से सुरक्षित है।
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सोचिए मोदी जी को इस बात से कितनी खुशी हो रही होगी कि इन दो हस्तियों के साथ उनका नाम उनके जीवन के बाद भी लिया जाएगा। जैसे सावरकर को वीर और जिन्ना को कायदे आजम कहने-मानने वाले हैंं, उन्हें भी विभाजनकारियों का मुखिया कहने-मानने वाले उनके बाद भी होंगे। वह भी 'इतिहास पुरुषों' में होंगे। और क्यों न हों, जब उनके राज में गाँधी जी की तस्वीर को गोली मारने वाली ललना प्रोत्साहन पाती हो, प्रज्ञा नामक आतंकवाद की आरोपी बीजेपी की उम्मीदवार बनाई जाती हो!
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प्रधानमंत्री तो खैर आते- जाते रहते हैं और हर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू नहीं हुआ करता! वह बर्बादी के अगले चरण पर देश को छोड़ जाता है और उसके अगले चरण पर मजबूती से कदम बढ़ाने का दायित्व भावी प्रधानमंत्री पर छोड़ जाता है, जो कि बड़ी मुस्तैदी से यह दायित्व निभाकर ही मानता है। मोदी जी ने तो खैर अट्ठारह -अट्ठारह घंटे यह काम इतनी अधिक निष्ठा और तेजी से किया है कि इसकी आजाद भारत के इतिहास में कोई दूसरी मिसाल नहीं मिलती। फिर भी उनके आत्मसम्मान को गहरी ठेस पहुंच रही थी कि उनके साथ इतिहास पूरी तरह न्याय नहीं कर रहा है, मगर शाबाश 'टाइम' पत्रिका तूने वह काम कर दिखाया,जो भारत के गोदी टीवी न्यूज़ चैनल मोदी जी की दिनरात सेवा करके भी आज तक कर नहीं पाए, इन बेगैरतों में वह क्षमता ही नहीं! इनमें से कोई भला मोदी जी को देश का 'डिवाइडर इन चीफ' का पद नवाजने की कल्पना तक कर सकता था? कभी नहीं।
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इसलिए, चमचागीरी की एक स्पष्ट सीमा होती है। चमचे या भक्त चाहकर भी अपने प्रभु को वहाँ नहीं पहुँँचा सकते, जहाँ एक अंतरराष्ट्रीय पत्रिका ने उन्हें एक झटके में पहुँचा दिया है। इसके लिए मोदी जी को बधाई देना तो बनता ही है। विपक्षी नेताओं को भी उदारता का परिचय देते हुए उन्हें अपने ट्विटर हैंडल से बधाई दे देना चाहिए।
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'डिवाइडर इन चीफ' का पद या पदवी कमांडर इन चीफ आफ आर्म्ड फोर्सेस की पदवी जैसी ही कोई पदवी लग सकती है मगर है उससे बहुत ऊँची। आज भारत की अस्सी प्रतिशत जनता नहीं बता सकती कि भारत का कमांडर इन चीफ कौन है मगर 99 प्रतिशत लोग यह बता सकते हैं कि किसे अभी 'डिवाइडर इन चीफ' की उपाधि मिली है! इतिहास में अक्सर कमांडर इन चीफ का नाम दर्ज नहीं होता। दर्ज होता है उसका नाम जिसके मूर्खतापूर्ण आदेश बर्बादी का कोई बड़ा कमाल कर दिखाते हैंं, जो किसी देश पर युद्ध थोप देता है, जो विश्व विजय का ख्वाब लेकर चलता है और खुद अपने दुश्मन की सेना से घिरकर आत्महत्या करने को मजबूर हो जाता है।
मोदी जी को अपने पाँच साल के कार्यकाल के दौरान इतनी बड़ी पदवी बिना माँगे मिल जाना उनकी 'योग्यता' का प्रमाण है और उनके जीवन की सबसे बड़ी ऐतिहासिक उपलब्धि है। इस पर उन्हें नाज होना चाहिए और इस पर भारत माता की जय और वंदेमातरम का नारा उन्हें हर चुनाव सभा में लगवाना चाहिए और खुले दिल से यह स्वीकार करना चाहिए कि यह जो पदवी मुझे मिली है, वह अकेले मुझे नहीं, मेरे मंत्रियों, सांसदों, विधायकों, पार्टी के राष्ट्रीय और प्रांतीय अध्यक्षों कार्यकर्ताओं, गोरक्षकों, मनुष्य भक्षकों के सक्रिय तथा निरंतर सहयोग, समर्थन और क्रियाकलापों का कुल परिणाम है। गालीगलौज, चरित्रहनन, हिंसा आदि के बगैर यह पदवी मुझे मिलना कठिन था। मैं तो मात्र आपका चीफ था, जमीनी सहयोग तो आपका था!
इस पदवी रूपी फल की इच्छा किए बगैर मोदी जी ने यह उपलब्धि सचमुच बहुत परिश्रम से हासिल की है। इसकी विनम्र शुरुआत उन्होंने 2002 में गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नरसंहार को होने देकर कर दी थी। 2014 से 2019 तक का उनका यह कार्यकाल भी इस दृष्टि से उनका स्वर्णकाल है, जिसमें छोटे पैमाने पर गंभीर घाव किए जाते रहे और धर्मनिरपेक्ष दृष्टि के सबके साथ यह हुआ।उन्होंने इस प्रकार धर्मनिरपेक्षता को एक नई परिभाषा, नया कोण दिया। उनकी बड़ाई हम जैसे लोग आजीवन कर नहीं पाएँगे।
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