शख्सियत

राजेश खन्ना की बहन से लेकर श्रीदेवी की आवाज तक, जानें कुमारी नाज का अनसुना सफर

नाज ने 1963 में अभिनेता सुब्बिराज से शादी की, जो कि राज कपूर के चचेरे भाई थे। शादी के बाद उन्होंने हिंदू धर्म अपना लिया और अपना नाम 'अनुराधा' रख लिया। फिल्मों से धीरे-धीरे दूरी बनाकर वे परिवार में रम गईं ।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया 

बॉलीवुड की दुनिया में कुछ नाम ऐसे होते हैं, जिनकी चमक पर्दे पर तो दिखती है, लेकिन असली संघर्ष और उनकी असाधारण प्रतिभा पर अक्सर धूल जम जाती है। उन्हीं में से एक नाम है कुमारी नाज, जिन्हें लोग बचपन में 'बेबी नाज' के नाम से जानते थे। 

उन्होंने बहुत छोटी उम्र में एक्टिंग की शुरुआत की और अपनी मासूम अदाकारी से पूरे देश का दिल जीत लिया। पर्दे पर उनकी मुस्कान जितनी प्यारी थी, पर्दे के पीछे उनकी जिंदगी उतनी ही मुश्किलों भरी रही। उन्होंने एक वक्त पर न केवल बतौर बाल कलाकार नाम कमाया, बल्कि बड़े होकर भी कई यादगार भूमिकाएं निभाईं। इस बात को बहुत कम लोग जानते हैं कि वह 1980 के दशक में सुपरस्टार श्रीदेवी की हिंदी फिल्मों की आवाज भी बनी थीं।

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कुमारी नाज का जन्म 20 अगस्त 1944 को मुंबई में हुआ था। उनका परिवार बेहद गरीब था, और इसी आर्थिक तंगी के चलते वह चार साल की उम्र में ही स्टूडियो में शूटिंग करने लगीं। 1950 में आई फिल्म 'अच्छा जी' से उन्होंने अपना फिल्मी करियर शुरू किया और उसके बाद 'गुनाह', 'रूपैया', 'शमा परवाना' जैसी फिल्मों में शानदार रोल निभाए।

उनको असली ब्रेक 1954 में आई फिल्म 'बूट पॉलिश' से मिला, जिसमें उन्होंने एक गरीब अनाथ बच्ची 'बेलू' का किरदार निभाया। इस फिल्म में उनका अभिनय इतना दमदार था कि सिर्फ भारत ही नहीं, विदेशों में भी उनकी चर्चा होने लगी। 'बूट पॉलिश' को कान्स फिल्म फेस्टिवल में दिखाया गया और नाज को उनके सह-कलाकार रतन कुमार के साथ स्पेशल मेंशन का अवॉर्ड मिला। यह उस दौर में खासकर एक भारतीय बाल कलाकार के लिए बहुत बड़ी बात थी।

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बाल कलाकार के तौर पर उनका करियर बुलंदियों पर था। बाद में उन्हें नायिका बनने के मौके भी मिले, लेकिन वह बचपन जैसी लोकप्रियता दोबारा हासिल नहीं कर पाईं। उन्होंने 'देवदास', 'गंगा जमुना', 'कागज के फूल', और 'मुसाफिर' जैसी गंभीर फिल्मों में अहम किरदार निभाए, लेकिन जो भूमिका उन्हें वयस्क कलाकार के तौर पर पहचान दिलाने में सबसे खास रही, वह थी 1970 की फिल्म 'सच्चा झूठा', जिसमें उन्होंने राजेश खन्ना की दिव्यांग बहन का किरदार निभाया था। इस फिल्म में उनके मासूम और भावुक अभिनय ने दर्शकों को इतना छुआ कि लोग उन्हें 'बॉलीवुड की प्यारी बहन' कहने लगे।

धीरे-धीरे जब उन्हें फिल्मों में कम मौके मिलने लगे, तब उन्होंने डबिंग आर्टिस्ट के रूप में अपना दूसरा करियर शुरू किया। बहुत कम लोगों को मालूम है कि 1980 के दशक में जब श्रीदेवी ने दक्षिण भारतीय फिल्मों से हिंदी फिल्मों में कदम रखा, तब शुरुआत में उनकी आवाज हिंदी में फिट नहीं बैठती थी। ऐसे में श्रीदेवी की शुरुआती हिट फिल्मों में कुमारी नाज ने ही डबिंग की। खास तौर पर 'हिम्मतवाला', 'तोहफा' और 'मवाली' जैसी हिट फिल्मों में उन्होंने श्रीदेवी के किरदार को आवाज दी। उनकी आवाज में वो मासूमियत और नजाकत थी जो श्रीदेवी के किरदारों से मेल खाती थी।

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नाज ने 1963 में अभिनेता सुब्बिराज से शादी की, जो कि राज कपूर के चचेरे भाई थे। शादी के बाद उन्होंने हिंदू धर्म अपना लिया और अपना नाम 'अनुराधा' रख लिया। फिल्मों से धीरे-धीरे दूरी बनाकर वे परिवार में रम गईं और फिर पूरी तरह से डबिंग आर्टिस्ट के रूप में काम करती रहीं। अपने करियर में उन्होंने करीब 200 से ज्यादा फिल्मों में काम किया, जिसमें चाइल्ड आर्टिस्ट से लेकर कैरेक्टर आर्टिस्ट और डबिंग आर्टिस्ट तक की भूमिका निभाई। उन्हें कान्स फेस्टिवल का विशेष सम्मान मिला, जो उस समय बहुत कम भारतीय कलाकारों को मिला था।

जिंदगी के आखिरी वक्त में उन्हें लिवर कैंसर हो गया। 1995 में उनकी हालत इतनी गंभीर हो गई कि वह कोमा में चली गईं और 19 अक्टूबर 1995 को उनका निधन हो गया।

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