शख्सियत

क्या साहिर के लिए गीत लिखते थे ‘ऐ दिले नादां, आरज़ू क्या है...’ जैसा गीत लिखने वाले जांनिसार अख्तर !

एक जमाने में मजरूह सुल्तानपुरी ने यह बयान देकर हड़कंप मचा दिया था कि साहिर लुधियानवी खुद गीत नहीं लिखते हैं, बल्कि उनके सारे गीत जांनिसार अख्तर लिखते हैं। लेकिन वक्त के साथ जांनिसार के बारे में फैलाई गई दूसरी अफवाहों की तरह यह भी गलत साबित हुई।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 

बेमिसाल शायर, वफादार दोस्त, दर्दमंद इंसान लेकिन बेहद खराब शौहर और ग़ैरजिम्मेदार बाप यानी जांनिसार अख्तर। उनका ना तो एक फिल्मी गीतकार की हैसियत से कभी ईमानदारी से मूल्यांकन किया गया और ना ही एक शायर के तौर पर उनके योगदान को याद किया जाता है। मगर उनकी कलम में वो ताकत थी कि उनके शे’र आज भी लोगों की ज़बान पर चढ़े हुए हैं।

जांनिसार अख्तर के जन्म दिवस को लेकर भी दो तिथियां चर्चा में रहती हैं। एक तो 8 फरवरी और दूसरी 18 फरवरी। गवालियर में साल 1914 में जन्मे जांनिसार के दादा फ़ज्ले हक खैराबादी और पिता मुज़्तर ख़ैराबादी अपने समय के उस्ताद शायर थे, और मां भी ऊंचे दर्जे की शायरा थीं।

ये घर के माहौल का ही असर था कि जांनिसार ने 13 साल की उम्र से शायरी शुरू कर दी। अलीगढ़ विश्वविद्यालय से 1936 में उर्दू में एम ए करने के बाद वे गवालियर के विक्टोरिया कालेज में उर्दू पढ़ाने लगे। कुछ समय बाद वे भोपाल पहुंच कर हमीदिया कालेज में उर्दू विभाग के अध्यक्ष हो गए जहां उनकी पत्नी सफिया भी पढ़ाती थीं।

आजादी के बाद जब सरकार प्रगतिशील लेखक संघ के सदस्यों पर कड़ी नजर रखने लगी, तो जांनिसार गवालियर से मुंबई चले आए जहां उनके तमाम साथी जैसे सरदार जाफरी, कैफी आजमी, मजरूह, अख्तरुल अमान और इस्मत चुग़ताई जैसे साहित्यकार पहले ही जमा हो चुके थे। तब तक जांनिसार दो बच्चों जावेद अख्तर और सलमान अख्तर के पिता बन चुके थे। सफिया जांनिसार को बहुत चाहती थीं इसीलिये जब जांनिसार ने मुंबई का रूख किया तो परिवार संभालने की जिम्मेदार सफिया ने अपने कंधों पर ले ली।

जांनिसार मुंबई गए तो फिर कभी सफिया के पास वापस नहीं लौटे। सफिया लगातार जांनिसार को खत लिखती रहतीं कि बच्चे बड़े हो रहे हैं उन्हें देखन के लिये ही आ जाओ, लेकिन जांनिसार नहीं लौटे, जबकि साफ़िया जांनिसार का मुंबई का ख़र्च तब तक उठातीं रही जब तक की कैंसर से उनकी मृत्यु नहीं हो गई।

मुंबई पहुंचने पर कुछ दिनों तक जांनिसार मशहूर उपन्यासकार इस्मत चुगतई के यहां रहे। रोजगार के लिए उन्होंने फिल्मों के गीत लिखने में हाथ आजमाया। सबसे पहले फिल्म “शिकायत” के लिए उन्होंने गीत लिखा “कोलतार में रंग दे पिया मोरी चुन्दरिया”. लेकिन फिल्म बुरी तरह फ्लाप हो गयी।

इसके बाद जांनिसार साहिर लुधियानवी के बहुत करीब हो गए। साहिर लुधियानवी और जांनिसार के बीच प्रगतिशील लेखक संघ वाली दोस्ती थी। उन्होंने अपनी ज़िन्दगी के सबसे हसीन साल साहिर लुधियानवी की दोस्ती में बरबाद कर दिये। जांनिसार लंबे समय तक साहिर के साए में ही रहे और साहिर के साए से उन्हें उबरने का मौका नहीं मिला। जांनिसार का अर्थ होता है जान निछावर करने वाला और जांनिसार ने शायरी और शराब पर पूरी ज़िंदगी निछावर कर दी।

उस दौर में मजरूह सुल्तानपुरी ने ये कह कर सिनेमा और साहित्य जगत में हंगामा खड़ा कर दिया कि साहिर के बहुत से गीत जांनिसार अख्तर लिखते हैं। साहिर और जांनिसार अख्तर दोनो के करीबी रहे निदा फाज़ली ने अपने संस्मरण मे लिखा है कि साहिर को अपनी तन्हाई से बहुत डर लगता था। जाँनिसार इस ख़ौफ़ को कम करने का माध्यम थे, जिसके एवज़ में वो हर महीने 2000 रूपये दिया करते थे। ये जो अफ़वाह उड़ी हुई हैं कि वो साहिर के गीत लिखते थे, ये सही नहीं है लेकिन ये सच है कि वो गीत लिखने में उनकी मदद ज़रूर करते थे, क्योंकि जांनिसार अख़्तर ज़रूरत से ज़्यादा जल्दी शे’र लिखने वाले शायर थे। साहिर को एक पंक्ति सोचने में जितना समय लगता था, जांनिसार उतने समय में 25 पंक्तियां जोड़ लेते थे।

बहरहाल साल 1953 मे प्रदर्शित फिल्म “नगमा” में शमशाद बेगम की आवाज में उनके गीत “बड़ी मुश्किल से दिल की बेकरारी में करार आया” की सफलता से वे बतौर गीतकार अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए। इसी दौरान उनकी मुलाकात संगीतकार ओ.पी नैयर से हुई जिनके संगीत निर्देशन में उन्होंने फिल्म “बाप रे बाप” के लिए गीत लिखे इसके बाद उनकी और ओ .पी .नैयर की जोड़ी बन गयी. साल 1956 में ओ.पी.नैयर के संगीत से सजी गुरूदत्त की फिल्म “सीआईडी” में उनके रचित गीत - “ऐ दिल है मुश्किल जीना यहां जरा हट के जरा बच के ये है मुंबई मेरी जान” और “आँखों ही आँखों में इशारा हो गया -बैठे-बैठे जीने का सहारा हो गया”, की सफलता के बाद जांनिसार अपने समकालीन और चर्चित गीतकारों, मजरूह, साहिर, कैफी आजमी, शकील और शैलेंद्र की तरह शोहरत हासिल करने लगे।

जांनिसार का एक और दुर्भाग्य यह भी रहा कि उन्हें सोलो फिल्में लिखन के मौके कम मिले। उन्होंने करीब 80 फिल्मों में गीत लिखे जिनमें महज दस फिल्मों में अकेले गीत लिखे. इसके अलावा उनकी लिखी कई फिल्में रिलीज ही नहीं हो सकीं।

जां निसार ने अपने सर्वश्रेष्ठ फिल्मी गीत खैयाम के संगीत निर्देशन में लिखे। फिल्म शंकर हुसैन का गीत, आप यूं फासलों से गुजरते रहे – दिल से कदमो की आवाज़ आती रही., प्रेम पर्वत का गीत ‘ये दिल और उनकी निगाहों के साये’, नूरी का गीत, आजा रे आजा रे मेरे दिलबर आ रे और रजिया सुल्तान का गीत ऐ दिले नादां. इन सभी गीतों में एक समानता ये है कि ये सभी गीत जांनिसार ने लिखे। खय्याम ने संगीतबद्ध किये और हिंदी फिल्मों के सर्वाधिक रोमांटिक गीतों में शुमार किये जाते हैं।

जां निसार ने जितने शानदार फिल्मी गीत लिखे उससे कई गुना असरदार रचनाएं साहित्य जगत को दीं। सरल जुबान में शे’र लिखने में उनका जवाब नहीं था। मिसाल के लिये उनके कुछ शेर हाजिर हैं :

ये हमसे न होगा कि किसी एक को चाहें
ऐ इश्क़ हमारी न तेरे साथ बनेगी

सोचो तो बडी चीज़ है तहज़ीब बदन की
वरना तो बदन आग बुझाने के लिए है

आंखें जो उठाएं तो मोबब्बत का गुमां हो

नज़रों को झुकाए तो शिकायत सी लगे है

ये जांनिसार अख़्तर की काबलियत की शोहरत ही थी जो जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें पिछले 300 सालों की हिन्दुस्तानी शायरी को एक जगह पर इकट्ठा करने का जिम्मा सौंपा था। जांनिसार की संपादित पुस्तक 'हिंदोस्तां हमारा' अपनी तरह की अकेली कविता पुस्तक है। 19 अगस्त 1976 को मुंबई में ही जांनिसार का निधन हो गया। आज के दौर में अब जांनिसार को जावेद अख्तर के पिता के रूप में याद कर लिया जाता है।

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