प्रख्यात रंगकर्मी प्रसन्ना इप्टा (इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन) के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए हैं। झारखंड के डाल्टनगंज में अभी 17 से 19 मार्च को हुए इप्टा के 15वें राष्ट्रीय सम्मलेन में उन्हें अध्यक्ष चुना गया। इप्टा के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि संस्था के बाहर का कोई नामचीन संस्कृतिकर्मी इसमें शामिल होकर सीधे इसके शीर्ष पद पर पहुंचा हो।
प्रसन्ना इप्टा के शिखर पद पर पहुंचने वाले एनएसडी के पहले स्नातक हैं। यूँ तो इप्टा के इतिहास में नामचीन लोगों की कभी कमी नहीं रही। इनमें पृथ्वीराज कपूर से लेकर ख्वाजा अहमद अब्बास, मुल्कराज आनंद, सरदार जाफरी, राजेंद्र सिंह बेदी, बलराज साहनी, ऋत्विक घटक, उत्पल दत्त, पंडित रवि शंकर, सलिल चौधरी, प्रेम धवन, निरंजन सिंह मान, ज्योतिंद्र मोइत्रा, राजेंद्र रघुवंशी, रणवीर सिंह जैसे दर्जनों नाम हैं।
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इप्टा को इसका नाम सुप्रसिद्ध परमाणु वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा ने सुझाया था। आजादी की लड़ाई और 1947 के बाद लंबे समय तक इप्टा का खजाना नामचीन लोगों से भरा रहा बावजूद इसके कि बहुत से लोग इसमें आते-जाते रहे। लेकिन हाल के कुछ सालों में नामचीनों की कमी संगठन को सालने लग गई थी । ए के हंगल इप्टा की आखिरी नामचीन पहचान थे। ऐसे में प्रसन्ना का आना संगठन के लिए अत्यंत महत्व का साबित हो सकता है।
1980 के दशक में प्रसन्ना के निर्देशन में देश के युवाओं के लिए एनएसडी के छात्रों को लेकर तैयार किये गए नाटक गांधी को लेकर संसद के दोनों सदनों में कई दिनों तक बवाल मचता रहा था। इसी तरह पिछले दिनों सोवियत कम्युनिस्ट नेता लेनिन के व्यक्तित्व पर लखनऊ में आधारित दूरदर्शन पर प्रसारित उनके नाटक 'लाल घास पर नीले घोड़े' से अभिनेता इरफान को अपना एक्टिंग मैनरिज्म विकसित करने का मौका मिला था, जो आगे चलकर इरफान को नाटक व फिल्मों का एक शानदार अभिनेता बनाने में काम आया था।
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वही रंगशिल्पी प्रसन्ना मुख्यधारा भारतीय रंगकर्म की विनाशकारी प्रवृति से हताश होकर अचानक लंबे समय के लिए रंगमंच छोड़कर सुदूर कर्नाटक के गांव की अशिक्षित औरतों के समूहों के साथ हेंडलूम की कताई के अँधेरे में डूब गए थे। तीस साल बाद फिर जब उभरे तो उनके हाथ में बतौर उपलब्धि, देश का अव्वल हेंडलूम निर्माण केंद्र, महिलाओं द्वारा संचालित कर्नाटक को-ऑपरेटिव था।
इप्टा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से पहले ही प्रसन्ना फिर से रंगमंच की रौशनी में आए। इस बार की वजह भारतीय रंगकर्म और अभिनय की उनकी नयी तकनीक थी जिसे लेकर वह मैसूर से चलकर पूरे देश के युवाओं के बीच आ-जा रहे थे। इसी शृंखला में पिछले दिनों लखनऊ में आयोजित उनकी वर्कशॉप बड़ी चर्चित रही थी। मैसूर में हालिया गठित उनकी एक्टर्स ट्रेनिंग एकेडमी इंडियन थियेटर फाउंडेशन एक्टिंग के क्षेत्र में ऐसा कीर्तमान बन रही है जिसमें देश भर के युवा एकदम नए रूप में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं।
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नामचीन लोगों की मौजूदगी हर संगठन को मजबूती तो प्रदान करती ही है, साथ ही इसके रसरंग को भी सजाती-संवारती है। ऐसे दौर में जबकि देश में सांस्कृतिक कुहासे के बादल गहराते जा रहे हैं, इप्टा जैसे सांस्कृतिक संगठनों की जरुरत, महत्व और अपेक्षा बढ़ते जा रहे हैं। प्रसन्ना जैसे रंगकर्मी देश के तमाम सांस्कृतिक संगठनों का एक साझा मंच बनाने की तैयारी में भी थे ताकि इस सांस्कृतिक कुहासे को घटाया सके। उनका इप्टा में दाखिल होना स्वागत सांस्कृतिक जगत की बड़ी घटना है।
इप्टा के जिस 15वें राष्ट्रीय सम्मेलन में इप्टा की राष्ट्रीय समिति में प्रसन्ना को अध्यक्ष चुने जाने के अलावा रंगकर्मी राकेश वेदा को कार्यकारी अध्यक्ष और नाट्य निर्देशक तनवीर अख्तर को महासचिव चुना गया।
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