राजनीति

हरियाणा में BJP ने चौधरी बीरेंद्र सिंह को किया था भरपूर कैश, अब उनके जाने की कीमत भी उसे बखूबी मालूम है

चर्चा है कि बीजेपी के कुछ विधायक भी चौधरी बीरेंद्र सिंह के संपर्क में हैं और अगले कुछ दिनों में वह भी पाला बदल सकते हैं। सूत्रों पर यकीन करें तो एक दिन पहले चंडीगढ़ में सीएम नायब सिंह सैनी के निवास पर विधायकों के साथ हुए मंथन में इसकी चिंता साफ देखी गई है।

हरियाणा में चौधरी बीरेंद्र सिंह के जाने की कीमत BJP को बखूबी मालूम है
हरियाणा में चौधरी बीरेंद्र सिंह के जाने की कीमत BJP को बखूबी मालूम है फोटोः विपिन

बेबाक....बेखौफ...बेलाग सियासत के लिए जाने जाने वाले किसानों के मसीहा सर छोटू राम के नाती पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह का लोकसभा चुनाव के बीच कांग्रेस में जाना हरियाणा की सियासत में एक बड़ी घटना है। यह बीरेंद्र सिंह ही हैं, जिनके दम पर 68 साल में पहली बार 2019 में हिसार में लोकसभा चुनाव में बीजेपी को जीत नसीब हुई थी। 2014 में भी पहली बार अपने दम पर हरियाणा में सत्‍ता की सीढि़यां चढ़ने वाली बीजेपी को बीरेंद्र सिंह की बैसाखी की कीमत बखूबी मालूम है। हरियाणी के सियासी और सामाजिक ताने बाने में बीरेंद्र सिंह की पहुंच का भी भगवा दल को बखूबी अंदाजा है। बीजेपी की परेशानी अब सिर्फ यह नहीं है कि हरियाणा का यह सियासी दिग्‍गज कांग्रेस के पाले में चला गया है बल्कि इस घटना के संभावित परिणाम उसे परेशान कर रहे हैं।

वर्ष 2014 के हरियाणा विधानसभा चुनाव के पहले दो बड़े सियासी दिग्‍गजों ने बीजेपी का दामन थाम लिया था। यह दो नाम थे चौधरी बीरेंद्र सिंह और अहीरवाल के बड़े नेता राव इंद्र जीत सिंह। हरियाणा के यह दोनों दिग्‍गज बीजेपी के लिए एक ऐसा चेक साबित हुए थे, जिसे उसने विधानसभा चुनाव में जमकर कैश किया। यदि कहा जाए कि इन दोनों के बिना 2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को अपने दम पर जीत मिलना मुमकिन नहीं था तो गलत नहीं होगा। अब बीजेपी का संकट है कि कहीं घड़ी की दिशा न बदल जाए।

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हरियाणा में लोकसभा चुनाव का बिगुल पूरी तरह अभी बजा भी नहीं है कि पहले आईएएस अधिकारी रहे हिसार से बीजेपी सांसद बृजेंद्र सिंह ने भगवा दल का साथ छोड़ा और अब उनके पिता चौधरी बीरेंद्र सिंह भी कांग्रेस में वापस आ गए हैं। चर्चा यह है कि बीजेपी के कुछ विधायक भी चौधरी बीरेंद्र सिंह के संपर्क में हैं और अगले कुछ दिनों में वह भी पाला बदल सकते हैं। सूत्रों पर यकीन करें तो एक दिन पहले चंडीगढ़ में सीएम नायब सिंह सैनी के निवास पर विधायकों के साथ हुए मंथन में इसकी चिंता साफ देखी गई है।

बीजेपी को यह बखूबी मालूम है कि चौधरी बीरेंद्र सिंह के कांग्रेस में जाने के मायने क्‍या हैं। हरियाणा की बांगर बेल्‍ट के साथ कमोबेश पूरे हरियाणा में मौजूद चौधरी बीरेंद्र सिंह के समर्थक उसे कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं, उसे मालूम है। यह बीरेंद्र सिंह ही थे, जिनके दम पर 2019 के लोकसभा चुनाव में 68 साल में पहली बार हिसार में कमल खिला था। अपने आईएएस बेटे बृजेंद्र सिंह को वीआरएस दिलाकर हिसार से लोकसभा चुनाव लड़वाया और पहली बार उन्‍होंने बीजेपी को जीत दिलवाई।

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इससे पहले 1984 में पूर्व मुख्‍यमंत्री चौ. ओम प्रकाश चौटाला को हिसार से भारी अंतर से हराकर बीरेंद्र सिंह खुद लोकसभा के लिए चुने गए थे। हिसार में पहला लोकसभा चुनाव 1951 में हुआ था, जब यह संयुक्त पंजाब का हिस्सा था। हरियाणा गठन के बाद 1967 में हुए लोकसभा चुनाव में भारतीय जन संघ की ओर से वाई सिंह ने चुनाव लड़ा था। वाई सिंह को सिर्फ 54635 वोट मिले थे। इसके बाद 1991 में बीजेपी ने श्री निवास गोयल को मैदान में उतारा, जिन्‍हें भी सिर्फ 35486 वोट ही मिल पाए। 2004 में स्वामी राघवानंद को यहां से बीजेपी ने अपना उम्मीदवार बनाया, लेकिन बीच में ही वह चुनाव छोड़ गए। हिसार लोकसभा में बीजेपी को मुस्‍कुराने का अवसर 2019 में चौधरी बीरेंद्र सिंह की बदौलत ही मिला था।

सियासी से लेकर सामाजिक संगठनों तक स्‍वीकार्यता

हरियाणा के सियासी दिग्‍गजों में से चौधरी बीरेंद्र सिंह ऐसी शख्सियत हैं, जिनके संबंध सभी बड़े राजनेताओं- इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला,  स्वर्गीय ताऊ देवीलाल, स्वर्गीय बंसीलाल, स्वर्गीय भजनलाल के परिवार से रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री और अहीरवाल के कद्दावर नेता रहे राव बीरेंद्र सिंह के परिवार के साथ भी चौधरी बीरेंद्र सिंह के अच्छे संबंध रहे हैं। सामाजिक व किसान संगठनों से भी उनके ताल्‍लुकात अच्‍छे हैं। बीजेपी में रहते हुए भी वह किसान आंदोलन के वक्‍त किसानों के साथ खड़े थे, जिसक बावजूद पार्टी में उनके खिलाफ बोलने की किसी में हिम्‍मत नहीं हुई।

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किसानों के मसीहा सर छोटू राम के वारिस

हरियाणा के बड़े किसान नेता रहे छोटू राम के कद का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्‍हें किसानों का मसीहा कहा जाता है। चौधरी बीरेंद्र सिंह छोटू राम के नाती हैं। किसान और कमेरे वर्ग के जीवन में छोटू राम का योगदान बेमिसाल है। 1938 में सर छोटू राम ने साहूकार रजिस्ट्रेशन एक्ट पारित करवाया। इस अधिनियम के कारण साहूकारों की फौज पर अंकुश लगाया गया। गिरवी जमीनों की मुफ्त वापसी एक्ट-1938 को पास करवाया। इस अधिनियम के जरिए जो जमीनें 8 जून 1901 के बाद कुर्की से बेची हुई थीं और 37 साल से गिरवी चली आ रही थीं, वह सारी जमीनें किसानों को वापस दिलवाई गईं।

फिर कृषि उत्पाद मंडी अधिनियम-1938 उन्‍होंने पास करवाया, जिसे 5 मई 1939 से प्रभावी माना गया। इस अधिनियम के तहत किसानों को फसल का उचित मूल्य दिलवाने का नियम बना। व्यवसाय श्रमिक अधिनियम-1940 बनवाया, जो 11 जून 1940 को लागू हुआ। बंधुआ मजदूरी पर रोक लगाने वाले इस कानून ने मजदूरों को शोषण से निजात दिलाई। सप्ताह में एक दिन की छुट्टी वेतन सहित और दिन में 8 घंटे काम करने के नियम तय किए गए। कर्जा माफी अधिनियम–1934 के रूप में एक ऐतिहासिक अधिनियम चौधरी छोटूराम ने 8 अप्रैल 1935 को किसान और मजदूरों को सूदखोरों के चंगुल से मुक्त कराने के लिए बनवाया। इस कानून के तहत अगर कर्ज का दोगुना पैसा दिया जा चुका है तो कर्जदार ऋण-मुक्त समझा जाएगा। ये ऐसे ऐतिहासिक सुधार थे, जिसके चलते केंद्र सरकार की ओर से लाए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन के दौरान भी सर छोटू राम का नाम हरियाणा में खूब गूंजा।

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जाटों से बाहर भी रसूख

जाटों के दबदबे वाली बांगर बेल्‍ट, जिसमें जींद और इससे लगता क्षेत्र शामिल है, में चौधरी बीरेंद्र सिंह का अच्‍छा प्रभाव माना जाता है। हिसार लोकसभा क्षेत्र, जहां से उनके बेटे बृजेंद्र सिंह बीजेपी सांसद थे, में जाट मतदाताओं की तादाद तकरीबन 33 फीसदी है। 1984 में चौधरी बीरेंद्र सिंह ने खुद यहां से लोकसभा चुनाव जीतकर संसदीय राजनीति की शुरुआत की थी। हिसार लोकसभा क्षेत्र 3 जिलों हिसार, भिवानी और जींद तक फैला है। जींद जिले का उचाना विधानसभा क्षेत्र, जहां से चौधरी बीरेंद्र सिंह 5 बार विधायक रह चुके हैं, भी हिसार में ही आता है।

बीरेंद्र सिंह के समर्थक इन 3 जिलों तक ही सीमित नहीं है। राजनीतिक पंडितों की मानें तो बीरेंद्र सिंह के समर्थक पूरे हरियाणा में हैं। जाहिर है कि जींद की उचाना सीट से 5 बार विधायक, दो बार राज्यसभा और एक बार लोकसभा सांसद रह चुके बीरेंद्र सिंह के जाने का नुकसान बीजेपी को लोकसभा के साथ ही विधानसभा चुनाव में भी होने वाला है। तकरीबन 53 साल का राजनीतिक सफर पूरा कर चुके और 1977 में जनता पार्टी की आंधी में भी कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव जीतने वाले चौधरी बीरेंद्र सिंह के कांग्रेस में जाने का मतलब बीजेपी को भी बखूबी मालूम है।

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