राजनीति

लोकसभा चुनाव: क्या विपक्ष का खेल खराब करना है मायावती का मकसद? BSP के मुस्लिम दांव से उठा सवाल

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि प्रत्याशियों के चयन में मुस्लिम चेहरों को तरजीह देकर बीएसपी ने इंडिया गठबंधन की राह मुश्किल करने का संकेत दिया है। अन्य सीटों पर भी विभिन्न जाति के प्रत्याशी खड़ा कर सोशल इंजीनियरिंग को आजमाया है।

क्या मुसलमानों पर दांव से विपक्ष का खेल खराब करना है मायावती का मकसद?
क्या मुसलमानों पर दांव से विपक्ष का खेल खराब करना है मायावती का मकसद? फोटोः IANS

आगामी लोकसभा चुनाव के लिए बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) ने अपने उम्मीदवारों की पहली सूची में बड़ी संख्या में मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट दे दिया है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि मायावती की इस रणनीति से इंडिया गठबंधन को नुकसान उठाना पड़ सकता है और बीजेपी को सीधे तौर पर फायदा होता दिख रहा है। विधानसभा चुनाव में भी बीएसपी की रणनीति कुछ ऐसी ही थी।

बहुजन समाज पार्टी ने अपनी पहली लिस्ट में सहारनपुर से माजिद अली, मुरादाबाद से मोहम्मद इरफान सैफी, रामपुर से जीशान खां, संभल से सौलत अली, अमरोहा से मुजाहिद हुसैन,आंवला से आबिद अली, पीलीभीत से अनीस अहमद खां उर्फ फूल बाबू को अपना उम्मीदवार बनाया है। हालांकि पार्टी की पहली सूची में कोई महिला उम्मीदवार नहीं है। इसके अलावा तीन सुरक्षित सीटों पर भी पार्टी ने अपने प्रत्याशी घोषित किए हैं।

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राजनीतिक जानकार बताते हैं कि बसपा ने जो 16 प्रत्याशियों की अपनी पहली सूची जारी की है, उसमें सात सीटों पर मुस्लिमों को तरजीह देकर इंडिया गठबंधन के लिए मुश्किल खड़ी कर दी है। बीएसपी के इस बार ज्यादा मुस्लिम उमीदवार उतारने से विपक्ष का सियासी खेल खराब हो सकता है। इस फैसले से सपा-काग्रेस गठबंधन को बीएसपी कड़ी चुनौती देने जा रही है। सात सीटों पर मुस्लिम वोटों का बंटवारा होने से त्रिकोणीय मुकाबला होने के आसार हैं।

ऐसे में साफ है कि बीएसपी की इस रणनीति से इंडिया गठबंधन को नुकसान उठाना पड़ सकता है। विधानसभा चुनाव में भी बीएसपी की रणनीति कुछ ऐसी ही थी। पार्टी भले ही एक सीट पर सिमट गई, लेकिन कई सीटों पर एसपी की हार के अंतर से अधिक वोट उसके उम्मीदवारों को मिले थे।

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वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि पहली सूची में 7 मुस्लिम प्रत्याशियों को उतार कर बीएसपी ने अतीत में पश्चिमी उप्र में सफलता पूर्वक आजमाए गए दलित-मुस्लिम गठजोड़ पर फिर दांव लगाने का इरादा जताया है। वहीं, प्रत्याशियों के चयन में मुस्लिम चेहरों को तरजीह देकर उसने इंडिया गठबंधन की राह मुश्किल करने का संकेत दिया है। अन्य सीटों पर भी विभिन्न जातियों के प्रत्याशी खड़ा कर सोशल इंजीनियरिंग के प्रयोग को विविधता दी है।

बीएसपी ने जिन 25 सीटों के लिए प्रत्याशी घोषित किए हैं, उनमें से उसने चार सीटें-सहारनपुर, बिजनौर, नगीना और अमरोहा, पिछले लोकसभा चुनाव में जीती थीं। इस बार भी बीएसपी ने अपना सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला खड़ा करने का प्रयास किया है। उनको सफलता कितनी मिलती है, यह तो आने वाला वक्त बताएगा।

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आरोपों पर बीएसपी के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल कहते हैं कि बीएसपी ने अपने नारे के अनुसार, जितनी जिसकी हिस्सेदारी, उतनी उसकी भागीदारी के मुताबिक यूपी के लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार उतारे हैं। इस पर उनको ही तकलीफ होगी जिसने इस फार्मूले पर उम्मीदवार नहीं उतारे होंगे। विपक्ष को गलत सवाल नहीं उठाने चाहिए। उत्तर प्रदेश में 20 फीसदी मुस्लिम है तो उसी आधार पर टिकट दे रहे हैं। बसपा किसी जाति मजहब में भेदभाव नहीं कर रही है।

पाल ने आगे कहा कि एसपी के लोग बीजेपी के साथ मिलकर सामान्य सीट पर अनुसूचित जाति के उम्मीदवार उतारकर बीएसपी के बेस वोट काटने का काम कर रहे हैं। इंडिया गठबंधन से आरएलडी, महान दल, संजय चौहान और अपना दल सब गठबंधन तोड़ चुके हैं। विपक्ष के पास कुछ बचा नहीं है। पश्चिम से पूरब तक इनके पास बचा क्या है। पश्चिम मे सबसे ज्यादा वोट बीएसपी का है। इसी कारण हमारा जनता से गठबंधन है।

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