उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ की निज़ामाबाद विधानसभा सीट अपनी तरह अनोखी सीट है। यहां कोई वीआईपी चुनाव नहीं लड़ रहा, मगर इसके बावूजद यह विधानसभा सीट पूरे प्रदेश में सबसे अधिक ध्यान खींच रही है। निज़ामाबाद के आसनी गांव के सादिक अहमद के शब्दों में कहें तो इस विधानसभा पर निजाम किसी के भी हाथ मे रहें मगर सभी प्रत्याशी एवन क्लास के हैं। निज़ामाबाद में आदर्श नेताओं के बीच मुक़ाबला है।
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ये ईमानदार हैं, संघर्षशील हैं और सही अर्थों में जनता के लिए संघर्ष करते हुए विगत सालों में दिखाई दिए हैं। यहां की जनता वोट देने में नहीं बल्कि वोट न देने में कंफ्यूज है, उसके लिए सबसे बड़ा सवाल यह है कि वो किसे वोट न दें ! सादिक अहमद बताते हैं कि पिछले चार चुनाव से यहां समाजवादी पार्टी जीत रही है। इस बार भी वो सबसे आगे बढ़कर चल रही है मगर दूसरे प्रत्याशी भी ऐसे आ गए हैं जो पूरे पांच साल बीजेपी की जन विरोधी नीतियों से लड़ते रहे हैं। उनके लिए भी स्थानीय लोगों में सहानुभूति है।
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आज़मगढ़ की निज़ामाबाद विधानसभा में यूपी के आखिरी चरण में चुनाव है और यहां 7 मार्च को मतदान होना है। निज़ामाबाद से कांग्रेस के जुझारू कार्यकर्ता अनिल यादव, सड़कों पर अल्पसंख्यक समुदाय के हितों के लिए संघर्ष करते हुए दिखने वाले सामाजिक संगठन रिहाई मंच के राजीव यादव और उत्तर प्रदेश की राजनीति में मिस्टर क्लीन कहे जाने चार बार के विधायक 87 साल के आलमबदी चुनाव लड़ रहे हैं। बीजेपी यहां मनोज यादव को और बीएसपी यहां पीयूष कुमार सिंह को चुनाव लड़ा रही है। ये सभी स्थानीय नेता हैं।
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राजनीतिक मामलों के जानकार और आज़मगढ़ के रहने वाले अब्दुल वहीद सिद्दीकी कहते हैं कि इस सीट पर नतीज़े को लेकर किसी तरह की कोई बहस नहीं हो सकती है, क्योंकि उत्तर प्रदेश चुनाव में दो तरफ़ा मुकबला देखने में आ रहा है मगर इस बात से कोई इंकार नही कर सकता है कि सबसे बेहतरीन प्रत्याशी इस सीट पर चुनाव लड़ रहे हैं। इन्होंने जनता के हितों के लिए संघर्ष किया है और इनके बीच से सबसे अच्छा चुनना मुश्किल काम है। अब्दुल वहीद बताते हैं कि लखनऊ की सड़कों पर भी राजीव यादव ने लाठियां खाई हैं, अल्पसंख्यक और दलित समुदाय के विरुद्ध हुए अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाते हुए वो जेल भी गए हैं, उन्होंने आज चुनाव लड़ने का कदम उठाया है तो इसके पीछे उनकी मंशा पूरी तरह ईमानदाराना है और उन जैसे संघर्षशील युवा को सदन में होना चाहिए।
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राजीव यादव निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं। कांग्रेस की तरफ से यहां उनके प्रदेश सचिव अनिल यादव चुनाव लड़ रहे हैं। अनिल यादव खुद एक संघर्षशील कार्यकर्ता के तौर पर जाने जाते हैं। वो खुद लगातार संघर्ष कर रहे हैं, जनता के हितों के लिए लड़ते हुए वो अनशन पर बैठे हैं और जेल भी गए हैं। वो भी हर संकट में प्रथम पंक्ति में खड़े दिखाई दिए हैं। अब्दुल वहीद कहते हैं निस्संदेह यह भी सच है। अनिल यादव स्थानीय दलितों में भी लोकप्रिय है और पलिया गांव में उनके संघर्ष से उन्हें ताकत मिली है।
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निज़ामाबाद से समाजवादी पार्टी ने जिसे प्रत्याशी बनाया है वो तो अदुभुत है, 85 साल के आलमबदी उत्तर प्रदेश के सबसे ईमानदार विद्यायक माने जाते हैं और यहां से चार बार चुनाव जीत चुके हैं। साइकिल से चलने वाले आलमबदी की खूबी यह है कि वो आज भी बेहद आम से मकान में रहते हैं और सादा जीवन जीते हैं। वो अपने क्षेत्र में साइकिल से चलते रहे हैं। मकान के आगे टीन शेड डालकर रहने वाले आलमबदी के पास एक जीप दिखाई देती है। उनके एक बेटे निज़ामाबाद में ही फर्नीचर की दुकान चलाते हैं।
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आलमबदी निज़ामाबाद की विधानसभा से पूरी तरह कनेक्ट है, समर्थक और विरोधी सब उनके सम्मान में खड़े हो जाते हैं। समाजवादी पार्टी ने एक बार उनका टिकट काट दिया था तो समाजवादी पार्टी वो चुनाव भी हार गई थी। तब बसपा जीती थी। कांग्रेस भी इस सीट को चार बार जीत चुकी है। 3 लाख 10 हजार की आबादी वाली इस सीट पर 2 लाख सिर्फ यादव और मुस्लिम मतदाता है। निज़ामाबाद की इस सीट पर 2017 में सिर्फ 40 फ़ीसद मतदान हुआ था और आलमबदी को 67 हजार मत मिले थे तो उन्होंने बसपा के चन्द्रसेन को हराया था।
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निज़ामाबाद के विद्यायक आलमबदी को कान से ऊंचा सुनाई देता है और कान की मशीन हमेशा अपने साथ रखते हैं। बसपा यहां पीयूष कुमार सिंह को चुनाव लड़ा रही है और भाजपा में मनोज यादव पर दांव खेला है। लखनऊ के गलियारे तक मे इस सीट की चर्चा है। लखनऊ के शान हैदर बताते हैं कि आलमबदी साहब उस शख्सियत का नाम है जो कई बार मंत्री पद ठुकरा चुके हैं। इसके पीछे उनका तर्क होता था कि वो अपना क्षेत्र छोड़कर नहीं जाएंगे। वो पूरी तरह निज़ामाबाद को समर्पित हैं, वो हजारों लोगों को नाम से बुलाते हैं। हालांकि कांग्रेस के अनिल यादव और रिहाई राजीव यादव भी संघर्षो से अपनी पहचान बना चुके हैं मगर उन्हें लगता है निज़ामाबाद एक बार फिर आलमबदी के साथ खड़ा होगा।
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निज़ामाबाद के युवा नरेंद्र यादव कहते हैं, यहां का मसला बड़ा पेचीदा हो गया है। दिल कहीं लगा है और दिमाग़ कहीं ! एक तरफ सरकार बदलनी है और दूसरी तरफ भविष्य का नेता खड़ा है ! अनिल यादव युवा है वो सभी योग्यताएं रखते हैं जो उन्हें एक भविष्य का नेता बनाती है। उन्होंने खुद को स्थापित किया है। यह चुनाव उन्हें शक्ति देगा। मगर मुझे लगता है कि युवाओं को अखिलेश यादव भी दिख रहे हैं। आज़मगढ़ में भाजपा विरोधी हवा बह रही है। जनता वोटों के बंटवारे से बचना चाहती है। मगर वो अनिल यादव और राजीव यादव जैसे नौजवानों को हतोत्साहित भी नहीं करना चाहती है। एक कन्फ्यूजन तो बन गया है।
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तो क्या ऐसी स्थिति में भाजपा के प्रत्याशी को लाभ हो सकता है ! पूछने पर स्थानीय निवासी नरेंद्र यादव बताते हैं कि इसकी संभावना नहीं है, क्योंकि यहां के यादव समाज ने दिनेश यादव निरहुआ को लोकसभा में एकतरफ़ा मात देकर अपना रुख साफ कर दिया था। अखिलेश यादव यहीं से सांसद है। भाजपा के प्रत्याशी मनोज यादव को अपनी पहचान बताने के लिए अपने पूर्व विधायक चाचा अंगद यादव का नाम लेना पड़ता है। भाजपा चुनावी लड़ाई में भी नहीं है ! चुनाव ही सपा और कांग्रेस के बीच दिख रहा है।
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