राजनीति

यूपी में बीएसपी के लिए मुसीबत बन सकती है आजाद समाज पार्टी, पंचायत चुनाव परिणामों ने दिए संकेत

भीम आर्मी की राजनीतिक विंग आजाद समाज पार्टी ने दलितों में अपनी पकड़ बढ़ने का एहसास पंचायत चुनावों के जरिये करवा दिया है। पहली बार पंचायत चुनाव में उतरी आजाद पार्टी का दावा है कि इस चुनाव में 40 से ज्यादा सीटों पर उसके प्रत्याशी विजयी हुए हैं।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव के परिणामों में बीएसपी का गढ़ कहे जाने वाले पश्चिमी यूपी के इलाके में पहली बार अस्तित्व में आयी चन्द्रशेखर की आजाद समाज पार्टी ने जिस प्रकार अपनी आमद दर्ज कराई है, उससे साफ संकेत हैं कि ये पार्टी आने वाले दिनों में बीएसपी के लिए मुसीबत खड़ी कर सकती है। भीम आर्मी की राजनीतिक विंग आजाद समाज पार्टी ने दलितों में अपनी पकड़ बढ़ने का एहसास पंचायत चुनावों के जरिये करवा दिया है। पहली बार पंचायत चुनाव में उतरी आजाद पार्टी का दावा है कि इस चुनाव में 40 से ज्यादा सीटों पर उसके प्रत्याशी विजयी हुए हैं।

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पश्चिमी उत्तर प्रदेश मायावती की राजनीति का गढ़ माना जाता रहा है। इस गढ़ की बदौलत वह कई बार सत्ता पर काबिज हुई हैं। लेकिन इस बार के पंचायत चुनाव में आजाद पार्टी ने यहां के कई जिले में कुछ न कुछ सीटें पाई हैं। इससे बीएसपी के गढ़ में सेंधमारी के संकेत देखे जा रहे हैं। राजनीतिक पंडितों की मानें तो आजाद पार्टी ने पंचायत चुनाव में सीटें जीतकर अपना मजबूत स्थान बना लिया है। जिस तरह से युवा इस पार्टी के साथ जुड़ रहा है। ऐसे में आने वाले समय में इनका ठीक-ठाक कद बढ़ने के आसार बनते दिख रहे हैं।

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आजाद समाज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सुनील चित्तौड़ का कहना है कि हम सर्व समाज की राजनीति कर रहे हैं। हमें किसी एक विषेष दल के विरोध या पक्ष में जोड़कर न देखा जाए। उन्होंने कहा, 'हमें पंचायत चुनाव में 40 से अधिक सीटें मिली हैं। हमारा मकसद संविधान में जो हक जनता को नहीं मिला, उसको सत्ता माध्यम से दिलाने का प्रयास कर रहे हैं। हम किसी के विरोध के लिए नहीं खड़े हुए है। आजाद समाज पार्टी के ब्लाक और बूथ लेवल संगठन को मजबूत कर रहे हैं। इसी के आधार पर पार्टी 2022 का चुनाव लड़ने जा रही है।'

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वरिष्ठ राजनीतिक विष्लेशक रतनमणि लाल कहते हैं, “मायावती का बीजेपी के प्रति साफ्ट कार्नर के कारण दलितों में उनकी पकड़ ढीली हुई है। राजनीतिक कद भी घटा है। इस कारण चन्द्रशेखर दलितों की आवाज बनकर खाली स्थान को भरने के प्रयास में लगे है। इसी वजह से वह पंचायत चुनाव में बिना किसी तैयारी और संगठन के ही मैदान में कूद गए और दलितों को एकजुट करके उनकी आवाज बनने का दावा किया। इसमें सफल भी हुए हैं।”

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रतनमणि आगे कहते हैं, “बीजेपी के विरोध में जितने भी दल हैं, उनके पास समय नहीं है। केवल 6 माह बचे हैं। सबको अपनी-अपनी जगह बनानी है। आं आदमी पार्टी, आरएलडी, आजाद पार्टी सबने इस पंचायत चुनाव में अपनी सफलता का दावा किया है। बीएसपी में सकेंड लाइन की लीडरशिप खत्म हो गई है। उनका ढांचा कमजोर हो रहा है। बीएसपी अपनी कोई अलग पहचान वाली राजनीति नहीं कर पा रही है। ऐसे में आजाद पार्टी के पास बड़ा मौका है।”

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