अर्थतंत्र

मोदी सरकार का कमाल: एसी बार में बैठकर पियो शराब या कोचिंग में लो ज्ञान, टैक्स बराबर लगेगा

शराब परोसने वाले एसी बार और शिक्षा देने वाले कोचिंग में मोदी सरकार की नजर में कोई अंतर नहीं हैं।आप एसी रेस्त्रां में शराब पिएं या प्राइवेट कोचिंग में ट्यूशन पढ़ें, दोनों पर टैक्स बराबर लगता है।

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फोटो : सोशल मीडिया प्रतिनिधि तस्वीर

यह कमाल सिर्फ मोदी सरकार के शासन में ही संभव था। तथाकथित आर्थिक सुधारों के नाम पर नोटबंदी और जीएसटी जैसे कानून लागू करने वाली इस सरकार के शासन में शराब परोसने वाले एयर कंडीशंड बार पर लगने वाला सेंट्रल सर्विस टैक्स जीएसटी जैसा तो है, लेकिन जीएसटी से बाहर है। इसलिए राज्य सरकारें ऐसे रेस्त्रां पर करीब 18 फीसदी वैट वसूल रही हैं। वहीं प्राइवेट ट्यूशन जीएसटी के दायरे में हैं, और उस पर मोदी सरकार ने 18 फीसदी जीएसटी लगाया हुआ है।

बार और कोचिंग पर टैक्स की एकरूपता के बारे में मुंबई के चार्टर्ड एकाउंटेंट दर्शन मेहता का कहना है, "कोचिंग और निजी ट्यूशन पढ़ने जाने वाले छात्रों से 18 प्रतिशत सेवा कर की वसूली किसी भी सूरत में अच्छी नहीं है। एक तो सरकार बेहतर शिक्षा नहीं दे पा रही है, दूसरी ओर गरीब बच्चा कहीं कोचिंग या ट्यूशन पढ़ने जाता है तो उसकी शिक्षा जीएसटी के चलते और महंगी हो जाती है।"

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यह बताना लाजिमी है कि पूर्व में वातानुकूलित बार में शराब पीने या खाना खाने पर वैट या सर्विस चार्ज लिया जाता था, मगर मोदी सरकार ने इसे जीएसटी से बाहर रखा है। ऐसे में राज्य सरकारें वैट या अन्य टैक्स के जरिए इन पर 18 फीसदी टैक्स ले रही हैं। इसके अलावा इस टैक्स को कम करने की भी कवायद की जा रही है, लेकिन कोचिंग और प्राइवेट निजी ट्यूशन पर लगने वाले 18 प्रतिशत जीएसटी की कोई चर्चा ही करने को तैयार नहीं है।

मध्य प्रदेश के नीमच जिले के सामाजिक कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ ने सूचना के अधिकार के तहत केंद्रीय राजस्व विभाग के डायरेक्टेट जनरल ऑफ सिस्टम एंड डाटा मैनेजमेंट (डीजीएसडीएम) से जो जानकारी हासिल की है, वह चौंकाने वाली है।

चार साल में तीन गुना हो गया है कोचिंग से मिलने वाला राजस्व

इस जानकारी के मुताबिक केंद्र सरकार को कोचिंग और निजी ट्यूशन से मिलने वाला सेवा कर का राजस्व बीते चार वर्षों में लगभग तीन गुना हो गया है। वर्ष 2012-13 में जहां 757 करोड़ का राजस्व मिला था, जो बढ़कर 2016-17 में 2041 करोड़ हो गया है। डीजीएसडीएम से मिली जानकारी से पता चलता है कि वर्ष 2013-14 में कोचिंग और निजी ट्यूशन से 1172 करोड़, वर्ष 2014-15 में 1304 करोड़ और वर्ष 2015-16 में 1630 करोड़ का राजस्व हासिल हुआ।

वहीं, शिक्षाविद् और इंदौर के देवी अहिल्या बाई विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति भरत छापरवाल का कहना है कि स्वास्थ्य और शिक्षा उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी सरकारों की है, लेकिन उसने दोनों ही क्षेत्र से हाथ उठा लिए हैं। निजीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है, कोचिंग व प्राइवेट ट्यूशन पर सेवा कर, जो कि अब जीएसटी हो गया है, बढ़ाकर सरकार ने अपरोक्ष रूप से निजी संस्थानों को ही संरक्षण दिया है।

उन्होंने कहा, "मुसीबत में तो गरीब छात्र होंगे, पहले तो उनके लिए फीस का इंतजाम आसान नहीं, ऊपर से सेवा कर की दोहरी मार। हां, अमीर घरों के बच्चों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।"

चार्टर्ड एकाउंटेंट मेहता कहते हैं, "एक तरफ विद्यालयों और महाविद्यालयों की शिक्षा का हाल किसी से छिपा नहीं है, मजबूरी में छात्रों को ट्यूशन और कोचिंग का सहारा लेना होता है। एक तरफ सरकार अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं कर रही, दूसरी ओर उन पर बोझ डाल रही है।"

बार पर टैक्स घटाने की कवायद, लेकिन कोचिंग के लिए चर्चा तक नहीं

सामाजिक कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ सवाल करते हैं कि किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले देश में यह कैसे होना चाहिए कि बार में शराब पीने और गुरु के चरणों में बैठकर ज्ञान अर्जित करने पर लगने वाला 'कर' समान हो। सरकार को तो कोचिंग व निजी ट्यूशन पर लगने वाले कर को न्यूनतम रखना चाहिए या खत्म कर देना चाहिए।

मध्य प्रदेश पर्यटन विकास निगम के अधिकारी जय मैथ्यू का कहना है कि पहले निगम के होटल व बार में 10 फीसदी वैट और छह प्रतिशत सर्विस चार्ज लगता था, लेकिन केंद्र सरकार के अमल में लाए गए जीएसटी के बाद शराब पर 18 फीसदी और बीयर पर 14 फीसदी वैट हो गया है। पहले शराब पर 10 फीसदी वैट और छह फीसदी सर्विस चार्ज लगता था, यह 16 फीसदी हुआ, अब सिर्फ वैट ही 18 फीसदी लिया जा रहा है।

सवाल उठता है कि अगर आपको अपना ज्ञान बढ़ाना है, मगर सरकारी विद्यालयों और महाविद्यालयों में कारगर इंतजाम नहीं है, तो आप क्या करेंगे? ऐसे में सिर्फ एक ही रास्ता है और वह है कोचिंग व ट्यूशन का सहारा लेना। यह काम भी उतना आसान नहीं है, क्योंकि सरकार एक तरफ जरूरतों को पूरा नहीं कर रही है और दूसरी ओर छात्रों और उनके परिजनों पर टैक्स का बोझ बढ़ा रही है। सरकार का यह कदम कल्याणकारी और लोकहितकारी सरकारों की परिभाषा के विपरीत ही माना जाएगा।

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