अर्थतंत्र

नौकरी पर संकट: भारतीय सास फर्म फ्रेशवर्क्‍स ने 90 कर्मचारियों को निकाला, खराब वैश्विक परिस्थितियों का दिया हवाला

माथ्रूबूथम ने ईमेल में लिखा, "हमारे द्वारा किए गए सभी परिवर्तनों में हमने अपने अधिकांश साथियों को तैनात और बनाए रखा है, हालांकि 5,200 लोगों में से लगभग 2 प्रतिशत या लगभग 90 कर्मचारी जिनके लिए हमारे पास आसानी से उपलब्ध ओपन पॉजिशन नहीं है, उन्हीं को हटाया गया है।"

फोटो: Getty Images
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भारतीय सॉफ्टवेयर-एज-ए-सर्विस (सास) कंपनी फ्रेशवर्क्‍स ने खराब वैश्विक परिस्थितियों का हवाला देते हुए लगभग 90 कर्मचारियों, या अपने कुल कर्मचारियों के 2 प्रतिशत को निकाल दिया है। कंपनी के संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी गिरीश माथ्रूबूथम ने कर्मचारियों को एक ईमेल में बताया कि यह छंटनी नहीं बल्कि 'संरचनात्मक परिवर्तन' है।

माथ्रूबूथम ने ईमेल में लिखा, "हमारे द्वारा किए गए सभी परिवर्तनों में हमने अपने अधिकांश साथियों को तैनात और बनाए रखा है, हालांकि 5,200 लोगों में से लगभग 2 प्रतिशत या लगभग 90 कर्मचारी जिनके लिए हमारे पास आसानी से उपलब्ध ओपन पॉजिशन नहीं है, उन्हीं को हटाया गया है।"

सीईओ ने कहा कि फ्रेशवर्क्‍स प्रभावित कर्मचारियों को हेल्थकेयर कवरेज और आउटप्लेसमेंट सेवाएं प्रदान कर उनकी मदद करेगा।

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फ्रेशवर्क्‍स तकनीकी कंपनियों की बढ़ती सूची में शामिल हो गया है, जिन्होंने वैश्विक मैक्रो-इकोनॉमिक स्थितियों के बीच कर्मचारियों की छंटनी की है।

नैस्डैक-सूचीबद्ध फर्म का मूल्य 12.2 अरब डॉलर है, जो पिछले साल सितंबर में 36 डॉलर के शुरुआती पेशकश मूल्य से 21 प्रतिशत ऊपर खुला था।

माथ्रूबूथम ने मीडिया आउटलेट्स के साथ साक्षात्कार में इस बात पर प्रकाश डाला कि आईपीओ ने अपने कर्मचारियों के लिए बहुत अधिक संपत्ति बनाई क्योंकि इसके 500 से अधिक कर्मचारी करोड़पति बन गए।

उन्होंने आगे कहा कि इन 500 कर्मचारियों में से लगभग 70 की उम्र 30 वर्ष से कम है। नवंबर 2019 में जब कंपनी ने सिकोइया कैपिटल, कैपिटलजी और एस्सेल जैसे निवेशकों से 150 मिलियन डॉलर की फंडिंग जुटाई थी, तब उसका मूल्य 3.5 अरब डॉलर था।

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बीते दिनों कंज्यूमर-टू-कंज्यूमर (सी2सी) ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म कैरोसेल ने लागत कम करने के प्रयास में लगभग 110 कर्मचारियों, या अपने कुल कर्मचारियों के 10 प्रतिशत को निकाल दिया था।

इससे पहले मेटा और ट्विटर ने बड़े पैमाने पर लोगों को नौकरी से निकाला था। इन दोनों कंपनियों में छंटनी का असर भारत में इनके कर्मचारियों पर भी पड़ा था। ट्विटर का लगभग पूरा इंडिया ऑफिस ही खाली सा हो गया था।

वहीं मेटा (फेसबुक और व्हाट्सऐप वाली कंपनी) ने पूरी दुनिया में काम करने वाले अपने 13 फीसदी कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया था। यह संख्या करीब 11,000 कर्मचारियों के बराबर था।

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बीते दिनों से लगतार उपज रहे हालात से क्या ऐसा मान लिया जाए कि बीते दशक या दशकों के दौरान कारोबार को बेतहाशा विस्तार कर लाखों लोगों को रोजगार देकर अरबों-खरबों डॉलर की पूंजी वाली बनी इन बड़ी टेक कंपनियों में छंटनी का दौर इशारा कर रहा है कि अच्छे दिन अब जाने वाले हैं।

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