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फ़ैज़ ने एक बार फिर सत्ता को किया बेचैन, इस बार महाराष्ट्र में

आरएसएस फुले दंपति पर बनी फिल्म का विरोध तो कर ही रहा है, कविता के खिलाफ भी खड़ा हो गया है

मशहूर शायर फैज़ अहमद फैज़, जिनकी नज़्मों से चिढ़ उठती है सत्ता
मशहूर शायर फैज़ अहमद फैज़, जिनकी नज़्मों से चिढ़ उठती है सत्ता 

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का काव्य दक्षिणपंथियों को हमेशा भड़काता रहा है। जनवरी 2020 में देश भर में सीएए विरोधी आंदोलन के दौरान जब दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रों ने ‘बोल कि लब आजाद हैं तेरे, बोल जुबां अब तेरी है' का नारे के माफिक इस्तेमाल किया, तो सत्ता प्रतिष्ठान को इतना बुरा लगा कि कविता पढ़ना ही देशद्रोह माना जाने लगा।

2019 में फ़ैज़ की एक अन्य कविता 'हम देखेंगे' भी इस आंदोलन के दौरान खासी लोकप्रिय रही। फ़ैज़ ने 1979 में इसकी रचना की थी। वह उस वक्त बेरुत में निर्वासित जीवन बिता रहे थे। 1985 में जनरल जिया-उल-हक के दमनकारी शासन के खिलाफ काली साड़ी पहनकर इकबाल बानो ने जब इसे गाया था, तो यह कविता लोगों की जुबान पर चढ़ गई थी।

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ऐसे में किसी को इसमें कोई आश्चर्य नहीं हुआ जब पुलिस ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के गृह जिले और आरएसएस के मुख्यालय नागपुर में एक श्रद्धांजलि सभा के बाद दिवंगत मराठी अभिनेता और कार्यकर्ता वीरा साथीदार की पत्नी पुष्पा साथीदार के खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज किया। वीरा को अपनी फिल्म 'कोर्ट' के लिए राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि मिली थी। यह फिल्म 2016 में ऑस्कर के लिए भारत की आधिकारिक प्रविष्टि थी। वीरा का निधन 2021 में हुआ। तब से पुष्पा हर साल उनकी याद में कार्यक्रम करती रही हैं।

शिकायत कार्यक्रम के आयोजक और आम्बेडकरवादी संगठन समता कला मंच के सदस्य उत्तम जागीरदार द्वारा विवादास्पद और लंबित महाराष्ट्र विशेष सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक, 2024 की आलोचना करते हुए पढ़ी गई कविता को लेकर हुई। यह विधेयक अभी विधानसभा से पारित नहीं हुआ है। इस विधेयक को मुख्यमंत्री के दिमाग की उपज माना जाता है जो मानते हैं कि ‘शहरी नक्सलियों’ से निपटने के लिए सख्त कानून की जरूरत है। इसकी व्यापक रूप से आलोचना की गई है।

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शिकायत में कार्यक्रम में दिए भाषण के कुछ हिस्सों को भी आधार बनाया गया है जिसमें ‘हम देखेंगे’ का जिक्र किया गया और आज के भारत और 1979 में पाकिस्तान की स्थिति के बीच समानताएं बताई गई थीं। कार्यक्रम की एक क्लिप एक मराठी टीवी चैनल पर प्रसारित की गई जिसमें एक वक्ता को यह कहते हुए सुना जा सकता है कि देश फासीवाद के दौर से गुजर रहा है।

शिकायतकर्ता की नाराजगी है कि ऐसे समय जब हमारे सैनिक पाकिस्तानी सेना के साथ बहादुरी से लड़ रहे थे, नागपुर में कट्टरपंथी वामपंथी फ़ैज़ के गीत गा रहे थे। उनकी आपत्ति कविता की उस लाइन पर भी थी जिसमें कहा गया है कि “सब तख्त गिराए जाएंगे”। उन्होंने इसे विद्रोह के आह्वान के बराबर बताया।

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जो पाठक फैज़ की इस मशहूर नज़्म को पढ़ना चाहते हैं उनके लिए पूरी नज़्म नीचे दी गई है:

हम देखेंगे 
लाज़िम है कि हम भी देखेंगे 


वो दिन कि जिस का वादा है 
जो लौह-ए-अज़ल में लिख्खा है 
जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गिराँ 
रूई की तरह उड़ जाएँगे 
हम महकूमों के पाँव-तले 
जब धरती धड़-धड़ धड़केगी 
और अहल-ए-हकम के सर-ऊपर 
जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी 


जब अर्ज़-ए-ख़ुदा के काबे से 
सब बुत उठवाए जाएँगे 
हम अहल-ए-सफ़ा मरदूद-ए-हरम 
मसनद पे बिठाए जाएँगे 

सब ताज उछाले जाएँगे 
सब तख़्त गिराए जाएँगे 


बस नाम रहेगा अल्लाह का 
जो ग़ाएब भी है हाज़िर भी 
जो मंज़र भी है नाज़िर भी 
उट्ठेगा अनल-हक़ का नारा 
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो 
और राज करेगी ख़ल्क़-ए-ख़ुदा 
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो
 

हालांकि, यह रिपोर्ट लिखे जाने तक इस मामले में कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है लेकिन पुलिस का कहना है कि कार्यक्रम में मौजूद लोगों के बयान दर्ज किए जा रहे हैं। राज्य में यह दिलचस्प समय है जब आरएसएस फुले और फ़ैज़ की विरासत से जूझता नजर आ रहा है। दक्षिणपंथी तत्व फुले दंपति पर बनी फिल्म का विरोध तो कर ही रहे हैं, फ़ैज़ की कविता के खिलाफ भी खड़े हो गए हैं।

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