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सरकार ने कर दिया आपके साथ तेल का खेल, ढाई रुपए बताकर की सिर्फ 87 पैसे की कटौती, तीन दिन में फिर से बढ़ गए दाम

केंद्र सरकार तेल पर जिस ढाई रुपए एक्साइज़ ड्यूटी कम करने का ऐलान कर वाहवाही लूट रही है, दरअसल उसकी जेब से तो सिर्फ 87 पैसे ही जा रहे हैं। बाकी बोझ तो राज्य सरकारों और तेल कंपनियों पर पड़ रहा है।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 

केंद्र सरकार ने पेट्रोल-डीज़ल के दामों में ढाई रुपए की कटौती की थी, उसमें से पेट्रोल पर 53 पैसे और डीज़ल पर 87 पैसे कम हो चुके हैं। यानी पेट्रोल अब सिर्फ 5 अक्टूबर के मुकाबले 2 रुपए से भी कम और डीज़ल डेढ़े रुपए से भी कम सस्ता रह गया है। अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल के दाम बढ़ रहे हैं, ऐसे में यह कमी भी जल्द ही विलुप्त होने के आसार बन रहे हैं। लेकिन यह वह खेल नहीं है जो केंद्र तेल के नाम पर आपके साथ खेला है। खेल कुछ और है। आइए आपको बताते हैं:

तेल के दाम आसमान छू रहे थे, और केंद्र सरकार के मंत्री और बीजेपी नेता कहते नहीं थक रहे थे कि वे इसमें क्या कर सकते हैं, यह तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के बढ़ते दामों का असर है। लेकिन जब चुनाव सिर पर आ गए तो अंतरराष्ट्रीय कारण हवा हो गए और सरकार ने कथित सह्रदयता और आम लोगों की चिंता में दुबले हुए जा रहे प्रधानमंत्री की मेहरबानी का ढिंढोरा पीटते हुए तेल के दामों में ढाई रुपए कटौती का ऐलान किया। बताया गया कि इसमें से एक रुपया तेल कंपनियां वहन करेंगी और डेढ़ रुपए प्रति लीटर का बोझ केंद्र सरकार पर आएगा। वित्त मंत्री ने यह भी बताया था कि इससे सरकारी खजाने पर सालाना करीब 21000 करोड़ रुपए का घाटा होगा।

वित्त मंत्री ने राज्यों से अपील की कि वे अपने यहां के टैक्स कम करें और केंद्र की डुगडुगी पर ठुमके लगाते हुए बीजेपी शासित राज्यों ने दो घंटे के भीतर ढाई-ढाई रुपए कम करने का ऐलान कर दिया। इसके बाद क्या मंत्री और क्या संतरी, लगे उछलने कि देखो, ‘प्रधानमंत्री को आम लोगों की तकलीफों का कितना खयाल है, खजाने का घाटा सहते हुए भी कटौती कर दी।’

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लेकिन इस ऐलान के पीछे एक खेल हो गया। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बहुत होशियारी से जिस एक्साइज़ ड्यूटी को घटाने का ऐलान किया, वह बेसिक एक्साइज़ ड्यूटी है। तेल पर वैसे बेसिक एक्साइज़ ड्यूटी के अलावा अतिरिक्त एक्साइज ड्यूटी और विशेष अतिरिक्त एक्साइज ड्यूटी भी लगती है। जिस बेसिक एक्साइज ड्यूटी में कटौती की गई है, उसमें राज्यों का भी हिस्सा होता। इसमें केंद्र का हिस्सा 58 फीसदी और राज्यों का 42 फीसदी होता है। यानी तेल पर ली जाने वाली बेसिक एक्साइज़ ड्यूटी से केंद्र और राज्य दोनों कमाई करते हैं।

अब अगर हिसाब जोड़े तो जिस डेढ़ रुपए पर सरकार तालियां बटोर रही है, दरअसल उसने सिर्फ 87 पैसे ही का घाटा उठाया है। डेढ़ रुपए का 58 फीसदी 87 पैसे ही होता है। बाकी घाटा राज्यों को होगा। लेकिन केंद्र ने तेल पर लगने वाली अतिरिक्त एक्साइज़ ड्यूटी और विशेष अतिरिक्त एक्साइज़ ड्यूटी को नहीं छेड़ा है। अगर इन दोनों एक्साइज़ ड्यूटी पर केंद्र कटौती करता तो सारा बोझ अकेले केंद्र सरकार पर ही पड़ना था।

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अब एक और खेल समझिए। केंद्र की मोदी सरकार ने बीते 52 महीनों के दौरान पेट्रोल पर एक्साइज़ ड्यटी में 211 फीसदी और डीज़ल पर एक्साइज़ ड्यूटी में 443 फीसदी की बढ़ोत्तरी की। पहले पेट्रोल पर एक्साइज़ ड्यी 9 रुपए 23 पैसे थी जिसे बढ़ाकर 19 रुपए 48 पैसे किया गया और डीज़ल पर एक्साइज़ ड्यूटी 3 रुपए 46 पैसे थी जिसे बढ़ाकर 15 रुपए 33 पैसे किया गया। यानी सरकार ने पहले आपकी जेब से 15 रुपए निकाले और फिर ढाई रुपए या डेढ़ रुपया वापस कर दिया।

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एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि मनमोहन सरकार के दौर में अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल के दाम औसतन 100 से 107 डॉलर प्रति बैरल तक थे, जो कि इन दिनों बीते चार साल के उच्चतम स्तर पर पहुंचकर भी 80 से 84 डॉलर प्रति बैरल ही हैं। यानी तेल की खरीद का दाम करीब बीस फीसदी कम है। लेकिन सस्ते तेल का फायदा सरकार ने आपको न देकर अपनी जेब में रख लिया और आपसे ज्यादा पैसा वसूलती रही।

इस तरह सरकार ने तेल पर टैक्स के रूप में कथित तौर पर करीब 13 लाख करोड़ रुपए की वसूली की। सरकार दुहाई देती है कि ये जो अतिरिक्त कमाई हुई उसे जनकल्याणकारी योजनाओं पर खर्च किया जा रहा है। लेकिन आयुष्मान भारत की ही बात करें तो इस योजना में सिर्फ 2 हज़ार करोड़ ही खर्च हुए हैं।

बीजेपी प्रवक्ता, नेता और मंत्री तेल कीमतों को लेकर एक और तर्क देते हैं कि यूपीएक दौरान ऑयल बांड जारी किए गए थे, उनके भुगतान में काफी पैसा खर्च हुआ। लेकिन वास्तविकता यह है कि इन बॉंड का भुगतान ही 2023 में होना था, तो फिर अभी से इन्हें लेकर हो-हल्ला क्यों हो रहा है।

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