हालात

हिमालय में अनियंत्रित निर्माण की चरम सीमा भी पार, चेतावनियों की अनदेखी का नाम धराली और हर्षिल का हश्र!

हिमालय अनियंत्रित निर्माण की चरम सीमा भी पार कर चुका है। केदारनाथ आपदा के बाद की कई वैज्ञानिक रिपोर्ट भी नजरअंदाज कर दी गईं।

फोटो: getty images
फोटो: getty images  

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिस हर्षिल की खूबसूरती का बखान करने, उसे शीतकालीन पर्यटन के एक प्रमुख गंतव्य के रूप में प्रचारित करने के इरादे से 6 मार्च 2025 को उत्तराखंड आए थे, वह हर्षिल तबाह हो चुका है। गंगोत्री पहुंचने के रास्ते में देवदार के जंगलों, सेब के बगीचों और बर्फीली चोटियों से घिरे भागीरथी के तट पर स्थित हर्षिल किसी को भी आकर्षित करता है। मोदी इसे शादियों, बॉलीवुड शूटिंग और अन्य शानदार आयोजनों के लिए प्रमुख स्थल के रूप में उभरते देखना चाहते थे। पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए उन्होंने ‘घाम तापो’ (सूर्य स्नान) जैसी लोकप्रिय स्थानीय कहावत का भी इस्तेमाल किया। लेकिन दुर्भाग्यवश इसके पांच महीने बाद ही 5 अगस्त को दो हिमस्खलनों ने हर्षिल और धराली को लगभग नष्ट ही कर दिया।

Published: undefined

स्थानीय लोग इस तबाही से जूझ रहे हैं। वह भयावह दोपहर याद करते धराली के सुमित कहते हैं, “5 अगस्त की सुबह पहाड़ों पर घना कोहरा था और बारिश हो रही थी। दोपहर लगभग 1.30 बजे तेज धमाका जैसा हुआ और फिर कीचड़ की धूसर नदी ने गांव को चपेट में ले लिया। उस दिन छह हिमस्खलन हुए, हालांकि यह पहले वाले से छोटे थे। रात भर पहाड़ की ढलानों से बड़ी-बड़ी चट्टानें गिरती रहीं।” यह तलछट और मलबा धराली के लगभग 20 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है।

भयावहता समझ पाए कुछ लोग पहाड़ी पर चढ़कर बचने में सफल रहे, लेकिन तेज बारिश के कारण अशांत खीर गंगा किनारे के होटलों और होमस्टे में सो रहे मजदूरों की बड़ी तादाद जानलेवा मलबे का शिकार हो गई।

Published: undefined

अपने होम-स्टे के तीन कमरे मजदूरों को किराये पर देने वाले लाल बहादुर शर्मा उन चंद लोगों में से हैं जो किसी तरह बच निकले। उन्होंने कहा, “वहां छह लड़के रहते थे। सभी को खो दिया।”

ठीक-ठीक आंकड़ा नहीं है कि कितने स्थानीय लोग या बाहर से आए श्रमिक लापता हैं। लेकिन पत्रकार राहुल कोटियाल के स्थानीय वीडियो चैनल ‘बारामासा’ से बातचीत में एक नेपाली महिला ने माना कि उसे और उसके पति को लगता है कि लगभग तीस नेपाली मजदूर लापता हैं।

सरकार कह रही कि 50 लोग लापता हैं, लेकिन स्थानीय लोग संख्या लगभग 200 बताते हैं। सुरक्षा बल बचाव अभियान में जुटे हैं, लेकिन उन्हें मलबे से सिर्फ एक शव ही मिला है। धराली के एक स्थानीय जीवित बचे व्यक्ति का कहना है, “मलबा इतना गाढ़ा और गहरा है कि कुदाल से भी शवों का पता लगा पाना आसान नहीं होगा।"

Published: undefined

समस्या तब बढ़ जाती है, जब भारत-तिब्बत सीमा पुलिस और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल के जवान ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार का इस्तेमाल करते हुए ज्यादा गहराई में खुदाई करते हैं और वहां पानी निकलने लगता है। ऐसे में संदेह बढ़ जाता है कि ये लोग लापता शवों को ढूंढ भी पाएंगे? स्थानीय वीडियो गवाह हैं कि केदारनाथ और अन्य पहाड़ी शहरों में बार-बार आई आपदाओं के कारण आज भी किस तरह शव नदियों में बहकर आ रहे हैं। लोग मान रहे हैं कि इस आपदा में लापता हुए अनेक लोगों का यही हश्र होगा। लापता मजदूरों और पर्यटकों के परिवारीजन कोई अंतिम बात सुनना चाहते हैं ताकि वे अपने प्रियजनों को लेकर ‘अंतिम सत्य’ से आश्वस्त हो सकें, लेकिन अभी तक उन्हें ऐसा कोई नहीं मिला। एक वीडियो में कैद, मलबे से जीवित बाहर निकलने में सफल सफल रहे बलविंदर सिंह पंवार ने कहा, “यह चमत्कार है। नहीं पता कि मैं कैसे बच गया।”

धराली के लोगों को हेलीकॉप्टर से गंगोत्री ले जाया गया। कुछ लोग अपना बचा-खुचा समेटकर जिंदगी पटरी पर लाने की कोशिश में लौट आए हैं। हालांकि सड़क मार्ग से धराली और हर्षिल पहुंचना लगभग नामुमकिन हो गया है। भागीरथी नदी के किनारे चलने वाली सड़क और प्रमुख पुल, बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुके हैं।

Published: undefined

इससे भी ज्यादा गंभीर बात यह कि हर्षिल के निकट बनी एक अस्थायी झील के कारण सेना का शिविर जलमग्न हो गया है। जलस्तर बढ़ने के साथ, नीचे की ओर बसे गांव जलमग्न हैं। एनडीआरएफ, सशस्त्र बल और राज्य की एजेंसियां भूवैज्ञानिकों की टीम के साथ मिलकर झील की स्थिरता का आकलन कर रही हैं कि इसे सुरक्षित तरीके से कैसे खाली कराया जा सकता है।

एनजीओ ‘गंगा आह्वान’ के सदस्य और कचरा प्रबंधन विशेषज्ञ आयुष जोशी 11 अगस्त को राहत सामग्री लेकर उत्तरकाशी पहुंचे थे। आयुष बताते हैं, “हर्षिल और बागोरी गांव खतरे में हैं क्योंकि बांध का जलस्तर बढ़ रहा है। नटाला में भारी भूस्खलन हुआ है। गंगानी में भागीरथी पार करने के लिए धराली तक जाने वाला पुल नष्ट हो गया है। एनडीआरएफ और सेना के जवान गंगानी में अस्थायी पुल बनाने में सफल रहे, लेकिन अस्थायी कच्ची सड़क बनाने की चुनौती उनके सामने है, क्योंकि ज्यादातर खाद्य आपूर्ति सड़क मार्ग से ही संभव होगी।”

Published: undefined

आपदा की कवरेज को लेकर धामी सरकार द्वारा स्थानीय मीडिया पर थोपे गए प्रतिबंध से लोगों में गुस्सा है। हालांकि निडर पत्रकार पैदल ही धराली पहुंचकर जमीनी रिपोर्ट देने में सफल रहे। होटलों आदि में काम करने वाले हिमस्खलन से बचे धराली के तीन युवाओं में से एक ने बताया, “हम सबसे बड़ी आपदा का सामना कर रहे हैं। दोस्त, रिश्तेदार और सहकर्मी हमारी आंखों के सामने खो गए। बचा नहीं पाए। हम सदमे में हैं। लेकिन बचाव अभियान बेहद लापरवाही से चल रहा है। मार्च में प्रधानमंत्री अपने साथ 400 से ज्यादा पुलिसवालों को लेकर आए थे। हम ग्रामीणों ने उनकी देखभाल के लिए अपने संसाधन झोंक दिए। जब हमें सहायता की जरूरत है, उनका कहीं अता-पता नहीं है।”

सबसे दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह रहा कि किसी आपदा की स्थिति में ग्रामीणों को आगाह करने वाला कोई पूर्व चेतावनी सिस्टम नदारद था, जबकि जलवायु परिवर्तन के कारण चरम घटनाओं में तेजी से वृद्धि के मद्देनजर वैज्ञानिक तात्कालिक और प्रभावी उपायों की सलाह देते रहे हैं। डॉप्लर रडार ऐसे ही प्रभावी उपकरणों में से हैं एक है, जो 100 किलोमीटर के दायरे में मौसम की स्थिति पर नजर रखता है।

Published: undefined

पौड़ी गढ़वाल के लैंसडाउन, नैनीताल के मुक्तेश्वर और टिहरी गढ़वाल के सुरकंडा में तीन डॉप्लर रडार स्थापित हैं, लेकिन एक भी धराली और हर्षिल में नहीं है। उत्तराखंड सरकार ने भारी बारिश की पूर्व चेतावनी देने वाली प्रणालियां लगाई जरूर हैं, लेकिन ये आपदाओं की पूर्व चेतावनी नहीं दे पातीं।

लगातार कई आपदाएं झेलने के बाद उत्तराखंड सरकार ने 11 अगस्त को फैसला लिया तो जरूर कि आपदा संभावित क्षेत्रों में किसी भी प्रकार के व्यवसायिक, सरकारी या निजी निर्माण की अनुमति नहीं दी जाएगी, लेकिन बहुत देर से। उत्तराखंड नदी के बाढ़ वाले मैदानों और भूकंपीय रूप से संवेदनशील फॉल्ट लाइनों पर बने हजारों होटलों और घरों से भरा पड़ा है। यह दिखाने के लिए पर्याप्त सबूत हैं कि पिछले दशक में इन पहाड़ियों का अधिकतम विनाश चार धाम सड़क चौड़ीकरण जैसी परियोजना के कारण हुआ है। इसे लेकर कई भूवैज्ञानिक और वैज्ञानिक चेतावनी भी देते रहे हैं।

Published: undefined

अहमदाबाद स्थित भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला के पूर्व वरिष्ठ वैज्ञानिक नवीन जुयाल ने तो सड़क एवं परिवहन मंत्रालय को विस्तृत रिपोर्ट भेजी थी जिसमें नुकसान का ब्यौरा दिया था। 2023 में ही धीराली में हिमस्खलन की चेतावनी भी दी गई थी। 5 अगस्त का हिमस्खलन ठीक वैसा ही हुआ, जैसी जुयाल की भविष्यवाणी थी।

भूविज्ञानी डॉ. वाईपी सुंदरियाल कहते हैं, “वैज्ञानिक सच बोलते हैं, तो सरकार को लगता है कि हम उनका विरोध कर रहे हैं। हम किसी का विरोध नहीं कर रहे हैं। हम बस इतना कह रहे हैं कि अगर पूर्व चेतावनी उपकरण लगा रखे हैं, तो कम से कम लोगों को चेतावनी तो दे ही सकते हैं। वरना इसका क्या मतलब है?” उन्होंने बताया कि 2013 में केदारनाथ की बाढ़ के बाद वैज्ञानिकों ने कई रिपोर्टें तैयार कीं, जिन्हें नजरअंदाज कर दिया गया।

Published: undefined

यह सिर्फ धराली और हर्षिल की ही कहानी नहीं, बल्कि हिमालय के हर शहर, हर गांव की कहानी है क्योंकि इनमें से ज्यादातर शहर और गांव हिमनदों पर बसे हैं या अन्य कमजोर नींव पर। हिमालय तो अनियोजित निर्माण के बोझ तले दबा हुआ है और अब इसकी चरम सीमा भी पार हो चुकी है। तत्काल प्रभावी इंतजाम नहीं किए गए, तो हम आपदाओं के ऐसे अंतहीन दौर में फंस जाएंगे, जिनसे निकलना आसान नहीं होगा।

Published: undefined

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: undefined