उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की व्यक्तिगत लोकप्रियता भले ही पिछले चार सालों में बढ़ी हो, लेकिन लोगों की अवधारणाओं में वह जंग हारते जा रहे हैं। उनकी सरकार की तरफ से यह दावा किया जाता रहा है कि उन्होंने राज्य में कानून व्यवस्था को भली-भांति बहाल किया है, लेकिन लोग मानते हैं कि उत्तर प्रदेश एक तरह से पुलिस राज्य बनता जा रहा है।
पद संभालने के तुरंत बाद वह राज्य से संगठित अपराध और माफिया राज को खत्म करने के लिए 'ठोको नीति' के नाम से मशहूर अपनी एनकाउंटर पॉलिसी के चलते सुर्खियों में आए।
मुख्यमंत्री की सहमति के चलते राज्य में पुलिस बल का खुद पर नियंत्रण न रहने से आम जनता को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा।
Published: 18 Mar 2021, 5:09 PM IST
महामारी के दौरान खाकी वर्दी को दी गई अतिरिक्त ताकत के चलते आम नागरिक, विक्रेताओं, पत्रकारों और वकीलों के खिलाफ बड़ी संख्या में मामले खुलकर सामने आए। बिना किसी जांच के पुलिस ने कई मामले दर्ज किए।
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा, "मुख्यमंत्री की 'ठोको नीति' ने पुलिस बल को खुली छूट दे दी है। प्रशासनिक स्तर पर कोई नियंत्रण नहीं है। जमीनी स्तर पर पुलिसकर्मी आम लोगों पर अत्याचार कर रहे हैं। इससे बुरा और क्या हो सकता है।"
सितंबर, 2018 को देर रात घर लौटते वक्त एक कॉन्स्टेबल द्वारा की गई एप्पल एक्जीक्यूटिव विवेक तिवारी की हत्या पुलिस के इसी रवैये का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
Published: 18 Mar 2021, 5:09 PM IST
इसके ठीक दो महीने बाद दिसंबर, 2018 में इसके विपरीत एक मामले में बुलंदशहर में गोकशी के बाद फैली हिंसा में पुलिस अधिकारी सुबोध कुमार सिंह की मौत हो गई थी।
ये दो घटनाएं सरकार की नीति के दो अलग-अलग आयाम बताए जाते हैं।
जहां लखनऊ में पुलिसकर्मियों द्वारा विवेक की हत्या ने मुठभेड़ नीति के खतरों को उजागर किया था, वहीं निरीक्षक सुबोध की हत्या ने सांप्रदायिक रूप से अतिरंजित राजनीति के खतरों को दर्शाया था।
इन दो मामलों ने न केवल बड़े स्तर पर हंगामा खड़ा किया, बल्कि भाजपा की छवि के साथ-साथ राज्य सरकार की छवि को भी प्रभावित किया।
उन्नाव दुष्कर्म मामला और अप्रैल, 2018 में पीड़िता के पिता की हत्या ने भी योगी सरकार की शासन व्यवस्था पर एक सवाल खड़ा किया क्योंकि मामले का मुख्य आरोपी कुलदीप सेंगर भाजपा विधायक था।
Published: 18 Mar 2021, 5:09 PM IST
पीड़िता द्वारा मुख्यमंत्री के आवास के बाहर खुद को खत्म करने की धमकी दिए जाने के बाद राज्य प्रमुख ने सीबीआई को यह मामला सौंप दिया, जिसके बाद आरोपी विधायक की गिरफ्तारी हुई।
सरकार को तब भी शर्मिदगी का सामना करना पड़ा जब पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता स्वामी चिन्मयानंद पर अपने ही कॉलेज की एक छात्रा के साथ दुष्कर्म करने का आरोप लगा।
इन दोनों ही मामलों में बीजेपी सरकार पर आरोपी को बचाने का आरोप लगा।
जुलाई, 2019 में भूमि विवाद को लेकर सोनभद्र में दस दलित आदिवासियों का नरसंहार किया गया, जिसके चलते विपक्षी नेताओं ने सरकार पर ऊंगली उठाई।
Published: 18 Mar 2021, 5:09 PM IST
इसके महीनों बाद दिसंबर, 2019 में उन्नाव में एक दुष्कर्म पीड़िता को आरोपियों ने जिंदा जला डाला, जिससे एक बार फिर से उत्तर प्रदेश में महिलाओं की सुरक्षा पर सवालिया निशान लगा।
सोनभद्र नरसंहार के मामले में यह दिखाया कि गरीबों के लिए राज्य में किस तरह की व्यवस्था है, उन्नाव में हुई घटना ने दर्शाया कि इस तरह के मामलों के प्रति पुलिस की प्रतिक्रिया कितनी धीमी है।
इसके बाद जुलाई, 2020 में बिकरू में घात लगाए बैठे विकास दुबे और उसके सहयोगियों द्वारा आठ पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी गई। घटना से पुलिस और उपद्रवियों के बीच सांठगांठ का खुलासा हुआ, जिसके चलते इस घटना को अंजाम तक पहुंचाया गया।
इस सिलसिले में हम हाथरस की घटना को भी नहीं भूल सकते हैं, जिसमें एक दलित लड़की के साथ कथित तौर पर सामूहिक दुष्कर्म किया गया था जिसके एक पखवाड़े बाद घायल उस लड़की की मौत हो गई। इस घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था।
Published: 18 Mar 2021, 5:09 PM IST
इस बीच पीड़िता के परिवार की इच्छाओं के खिलाफ पुलिस द्वारा रात के अंधेरे में उसके शव का चुपचाप से अंतिम संस्कार कर दिया गया जिससे बड़े पैमाने पर हंगामा खड़ा हुआ था।
उपर्युक्त सभी मामलों में अधिकारियों ने पहले किसी न किसी तरह से तथ्यों को छिपाने की कोशिश की और मीडिया पर सच का पता लगाने की जिम्मेदारी दे दी।
पीड़िता द्वारा अपने बयान में अपने साथ हुए यौन दुराचार की पुष्टि करने के बाद भी सरकार ने दुष्कर्म की घटना होने से इनकार किया है।
बीजेपी के प्रवक्ता डॉ. चंद्र मोहन ने कहा, "योगी सरकार ने हमारे चुनावी घोषणापत्र के अनुसार काम किया है, जिसमें अपराध और अपराधियों के प्रति मुरव्वत नहीं बरतने की बात कही गई है। अपराधी की कोई जाति नहीं होती है और विपक्ष झूठा प्रोपेगेंडा फैलाकर बेवजह लाभ लेने की कोशिश कर रहा है।"
योगी सरकार की एक बड़ी खामी जो सामने नजर आती है वह ये है कि उनके अधिकारी मीडिया को न तो तथ्यों तक पहुंचने देना चाहते हैं और न ही उन पर स्पष्टीकरण देते हैं। ऐसे में सरकार और जनता के बीच एक रिक्त स्थान बन जाता है, जिससे चीजों को लेकर संशय पैदा होती है।
मुख्यमंत्री का लोगों के साथ बातचीत न के बराबर है और उनके खुद के पार्टी के कार्यकर्ताओं को भी उनसे मिलने का मौका नहीं मिल पाता है।
नाम न जाहिर करने की शर्त पर बीजेपी के एक विधायक ने कहा, "हम जनता से बातचीत तो करते हैं, लेकिन उनकी बात मुख्यमंत्री तक पहुंचा नहीं पाते हैं और ऐसे में सरकार का बचाव करना भी मुमकिन नहीं हो पाता है। यह दिन-प्रतिदिन काफी मुश्किल होता जा रहा है क्योंकि नौकरशाही ने मुख्यमंत्री को बिल्कुल अलग-थलग कर रखा है।"
Published: 18 Mar 2021, 5:09 PM IST
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Published: 18 Mar 2021, 5:09 PM IST