विचार

मतदान के दिन प्रचार की रणनीति बीजेपी का ब्रह्मास्त्र, चुनाव आयोग के नियम कागजी साबित, बदलाव की जरूरत

नरेन्द्र मोदी ने जब प्रधानमंत्री के लिए अपनी दावेदारी पेश की तब से उन्होंने खुद के लिए चुनाव प्रचार के नियम तय कर लिए और चुनाव आयोग के चुनाव प्रचार के नियम केवल कागजी बनकर रह गए हैं।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

चुनाव प्रचार का यह एक नियम है कि मतदान के 48 घंटे पहले उम्मीदवारों को अपना चुनाव प्रचार बंद करना होगा। यह नियम इसीलिए है ताकि मतदाता किसी भी तरह के प्रचार से मुक्त होकर अपना मतदान कर सकें। लेकिन 2014 में जब नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी पेश की तो उन्होंने चुनाव प्रचार के अपने नियम तय किए। बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी के चुनाव प्रचार नियम के दो हिस्से हैं। पहला हिस्सा है- मतदान के दिन कोई शो आयोजित करना। दूसरा हिस्सा है- जब मतदान चल रहा हो, उसी वक्त किसी दूसरे क्षेत्र से चुनाव प्रचार करना।

इस बार भी जब बिहार विधानसभा चुनाव में दूसरे चरण का मतदान हो रहा था, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उस दौरान बिहार में तीसरे चरण के लिए चुनाव प्रचार कर रहे थे। 3 नवंबर, मंगलवार को प्रधानमंत्री ने फारबिसगंज में कहा भी- “देश के कई स्थानों पर आज उप-मतदान चल रहे हैं। बिहार में भी कई जगह चुनाव चल रहा है।”

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दूसरे चरण के मतदान के दिन तीसरे चरण के लिए चुनाव प्रचार का जारी रहना चुनाव नियमों के विपरीत नहीं दिखता है। लेकिन चुनाव आयोग ने मतदान से 48 घंटे पहले चुनाव प्रचार बंद करने का नियम उस समय तैयार किया था, जब टेलीविजन में सीधे प्रसारण की तकनीक उपलब्ध नहीं थी। देश में टेलीविजन से सीधे प्रसारण की तकनीक के आने के बाद चुनाव प्रचार के इस तरह के नियम महज कागजी बनकर रह गए हैं।

ऐसे में देश में बीजेपी पहली ऐसी पार्टी है जिसने चुनाव प्रचार के नियमों और टेलीविजन से सीधे प्रसारण की तकनीक के बीच खाई का इस्तेमाल करने की रणनीति तैयार की। यह बीजेपी नेता नरेंद्र मोदी की प्रधानमंत्री की दावेदारी की योजना का हिस्सा बना और उसके बाद प्रधानमंत्री की चुनावी रणनीति का भी एक अहम हिस्सा बन गया है।

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याद करें कि 7 अप्रैल, 2014 को असम और त्रिपुरा की 6 लोकसभा सीटों पर मतदान शुरू हो चुके थे और टेलीविजन के समाचार चैनलों द्वारा बीजेपी के घोषणापत्र जारी करने के समारोह का सीधा प्रसारण किया जा रहा था। टीवी चैनलों पर लाइव प्रसारण के साथ घोषणापत्र के मुख्य बातों और वादों को ब्रेकिंग न्यूज के दौरान भी दिखाया जाता रहा। मुरली मनोहर जोशी ने घोषणापत्र के बारे में जानकारी देने के दौरान उत्तर-पूर्व राज्यों के बारे में अपने वादों को भी बताया।

दरअसल इस रणनीति के तहत मतदान के लिए कतार में लगे मतदाताओं को अंतिम समय तक चुनाव प्रचार से प्रभावित करने की योजना का विस्तार किया गया, क्योंकि बीजेपी के बारे में यह अनुभव है कि मतदान से एक दो दिन या कुछ घंटों पहले होने वाले साम्प्रदायिक तनाव का सीधा लाभ उन्हें मतदान के दौरान मिलता है। ऐसा लगता है कि 2014 में दंगे और साम्प्रदायिक तनाव से मिलने वाले राजनीतिक फायदे की तरह मीडिया को इस योजना में शामिल किया गया है।

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इसी तरह 10 अप्रैल 2014 को दिल्ली के सात संसदीय क्षेत्र समेत कुल 92 संसदीय क्षेत्रों में वोट डाले गए थे। 10 अप्रैल को अखबारों का पहला पन्ना नरेंद्र मोदी की तस्वीर और बीजेपी के चुनाव चिन्ह् कमल के नाम था। मतदान केन्द्रों पर अखबार पढ़ने की मनाही का चुनाव आयोग ने नियम नहीं बनाया है, लिहाजा इसका फायदा उठाने के लिए बीजेपी और नरेंद्र मोदी की प्रचार टीम ने अखबारों के पहले पन्ने को ही खरीद लिया और हर तरह के पाठक के हाथ में अखबार के पहले पन्ने के जरिये नरेंद्र मोदी और उनका चुनाव चिन्ह् दिखाई दे रहा था।

चुनाव प्रचार की इस तरह की चालाकियों के बारे में चुनाव आयोग को जब शिकायत मिली तब 4 मई 2018 को चुनाव आयोग ने राजनीतिक पार्टियों के अध्यक्षो को निर्देश दिया कि मतदान की पूर्व संध्या पर चुनाव प्रचार के इरादे से विज्ञापन नहीं जारी किए जा सकते हैं। लेकिन लगता है कि चुनाव आयोग नियमों की कमजोरियों की पड़ताल नहीं करता है। नियमों की कमजोरियों का लाभ जब उठा लिया जाता है, तब वह अपने वजूद का एहसास कराने की कोशिश करता है।

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लेकिन आखिर वह कहां तक इस तरह से नियमों की कमजोरियों का लाभ उठाने वाली संस्कृति का पीछा कर सकती है? क्योंकि 17 अप्रैल 2014 को लोकसभा के लिए मतदान के छठे दौर में 122 संसदीय क्षेत्रों में मतदान से दो दिन पहले दर्शकों की भीड़ में अपनी मौजूदगी का दावा करने वाले टेलीविजन चैनल ने एक ओपनियन पोल के नतीजों को जारी किया। दूसरे दिन प्रमुख होने का दावा करने वाले समाचार पत्रों ने हेडलाइन छाप दी कि पहली बार किसी ओपिनियन पोल ने बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन एनडीए को लोकसभा के चुनाव में बहुमत दिया है। सर्वे के अनुसार 543 सीटों में एनडीए को 275 सीटें मिलेगी। बीजेपी को 226 सीटें मिलेगी।

इसी तरह 24 अप्रैल 2014 के दिन जब 117 संसदीय क्षेत्रों में मत डाले जा रहे थे, तब नरेंद्र मोदी ने वाराणसी से अपना नामांकन दाखिल करने की योजना बनाई थी। बीजेपी के प्रधानमंत्री के दावेदार नरेंद्र मोदी के नामांकन के समारोह की भव्यता दिन भर टीवी चैनलों ने प्रसारित किया। यह दुनिया की एकलौती मिसाल बनी जब एक उम्मीदवार के नामांकन पत्र दाखिल करने के कार्यक्रम को इतने बड़े पैमाने पर प्रसारित किया गया।

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चुनाव प्रचार से मतदान की कतार में लगे मतदाताओं को प्रभावित करने की रणनीति लगातार मीडिया के जरिये हिन्दूत्व की भावना से जुड़ती गई है। याद करें, जब कर्नाटक में विधानसभा का चुनाव हो रहा था तो मतदान के आखिरी चरण के दिन 12 मई को प्रधानमंत्री मोदी की नेपाल के हिन्दू मंदिरों में दर्शन करने की खबरें मीडिया में आ रही थीं। प्रधानमंत्री मोदी की नेपाल यात्रा के दौरान हिन्दू मंदिरों के दर्शन करने को मीडिया अपने लिए खबर मानता है, लेकिन इसके पीछे मतदान के वक्त चुनाव प्रचार का इरादा है और इसे रोकने के लिए चुनाव आयोग के पास कोई प्रावधान नहीं है।

बार-बार विभिन्न चुनाव के मतदान के दिन मंदिरों का चयन और वहां प्रधानमंत्री के दर्शन के कार्यक्रम के पीछे चुनाव प्रचार का इरादा साफ दिखता है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए 8 मार्च 2017 को आखिरी दौर के मतदान के दिन भी प्रधानमंत्री मोदी गुजरात में सोमनाथ मंदिर के दर्शन के लिए पहुंचे हुए थे और टीवी पर दिन भर इसका सीधा प्रसारण हो रहा था।

भारतीय जनता पार्टी और भारत के चुनाव आयोग के बीच मतदान के वक्त मतदाताओं को किसी तरह के प्रभाव से लुभाने और बचाने का यह संघर्ष हिन्दी फिल्मों की एक रोचक कथा जैसी लगती हैं।

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