विचार

भक्त मनोविज्ञानः स्वीकार ही नहीं पाते कि उनकी राजनीतिक विचारधारा के साथ कुछ गलत है

कई लोग नहीं समझते कि गर्व ज्ञान और विनम्रता के एक स्थान से आता है। यह राजनीतिक सत्ता या अन्य लोगों पर वर्चस्व से नहीं आ सकता। इतिहास से परिणाम हासिल करना कठिन है। जब तक अतीत के घावों को भुलाया या माफ नहीं किया जाता, सुलह की उम्मीद नहीं की जा सकती।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

इस सब की शुरुआत आरटीओ गाजियाबाद की यात्रा के साथ हुई। मेरे उर्दू शिक्षक, मित्र और मुंहबोले छोटे भाई को ड्राइविंग लाइसेंस की जरूरत थी। एक सप्ताह पहले, उन्होंने बहुत भोलेपन के साथ अपनी मां के साथ कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की दरगाह की अपनी मासिक यात्रा के बारे में बताया था। उन्होंने बताया था ‘वह बहुत सवेरे की काफी मजेदार यात्रा थी। लेकिन मैं बहुत तेज गाड़ी नहीं चला सकता था। अम्मी इसकी इजाजत नहीं दे सकती थीं।’

उनकी शरारती हंसी उनकी इच्छा को बता रही थी कि वह अपने बालों में हवा से बनने वाला घुमाव और अपने स्वभाव के अनुरूप मौज-मस्ती का रोमांच महसूस करना चाहते थे। लेकिन मां के बचपने वाले डर ने माफी चाहने वाली शर्मिंदगी के स्पर्श के साथ उनकी इच्छाओं पर तुषारापात कर दिया। उनका कहना था, ‘और यदि हमें कहीं कोई पुलिसवाला मिल गया तो, मेरे पास तो लाइसेंस भी नहीं है।’

मैं हंसी। ‘तो, क्या! मेरे मित्र करन के पास भी लाइसेंस नहीं है। वह कई बार संकट में फंस चुका है...और वह हमेशा बच निकलने में सफल हो जाता है। केवल पुलिस के साथ मीठी बातें करके।’ ‘आपका मित्र पुलिस के साथ मीठी बातें कर सकता है, मैं नहीं कर सकता।’ इस अकेले वाक्य के साथ मेरे कमरे का माहौल गंभीर हो गया। मैं गंभीरता को तोड़ने के लिए उत्तेजित आकुलता के साथ मुस्कराई और चाय की चुस्कियां लेने लगी। मेरी बेचैनी को महसूस कर, उन्होंने मीठे बिस्कुट का एक टुकड़ा लिया और अपनी बस्ती में एक दुकानदार के बनाए कलाकंद के बारे में एकालाप करने लगे। उनके शब्द मेरे कानों में बार-बार बज रहे थे।

Published: undefined

इसके दो दिन बाद हम आरटीओ कार्यालय गए। दानिश को तुरंत लाइसेंस की आवश्यकता थी। अगर वह बिना किसी पहचान के पकड़ा गया तो पुलिस वाले उसके प्रति उस तरह दया नहीं दिखाएंगे। भले ही वह अतिरिक्त सावधानी बरते। ज्यादा बेहतर होगा कि वह और कोई खतरा न उठाए। आरटीओ कार्यालय में मेरा एक जुगाड़ है (जैसे तमाम दिल्ली वालों का होता है), जिसने हमें आश्वस्त किया कि लाइसेंस बन जाएगा और करीब दस दिन में दानिश के घर भेज दिया जाएगा।

वापसी के दौरान, उन्होंने बीच रास्ते में उन्हें उतार देने के लिए कहा। उन्हें उपकृत करने के लिए मुझे खुशी हुई। जैसे ही वह वाहन से उतरे, मैंने उन्हें ‘अस्सलाम वालेकुम, सर’ कहा जैसा हर मुलाकात के बाद करती थी। वह मुस्कुराए और मीठेपन के साथ ‘वालेकुम अस्सलाम’ कहा।

इस छोटी सी कहानी का यहीं अंत हो जाना चाहिए था। लेकिन हमारे चालक ने, जिसे मैं करीब दस वर्षों से जानती हूं, कटु ताने वाले अंदाज में वातावरण को बेमजा बना देने की कोशिश की। उसने कहा, ‘वालेकुम प्रणाम’ उसके अंदाज में मनोविनोद साफ झलक रहा था। बातें बहुत अच्छी लगती हैं, पर ऐसी हैं नहीं! वे हमेशा धर्मनिरपेक्षता की बातें करते हैं... ठीक। देखिए, मैंने उनके अभिवादन को धर्मनिरपेक्ष बना दिया। मैंने उसकी टिप्पणी को नजरंदाज करने की कोशिश की, लेकिन इसने मुझे चिंता में जरूर डाल दिया। क्या उसके शब्दों के पीछे कोई छिपा हुआ अर्थ था? हो सकता है कि दीपक भैया का अपने असंवेदनशील मजाक के साथ कुछ मजा लेने का भाव रहा हो। या, क्या यह इसके अतिरिक्त भी कुछ था?

Published: undefined

मेरे हिसाब से, मुझे जवाब पता है, हम चाहे जितना इससे इनकार करें, इसका कोई मतलब नहीं। वह पूरे तौर पर मजाक नहीं कर रहा था। दीपक भैया एक भक्त था। लेकिन मैं यह भी जानती हूं कि वह कोई बुरा व्यक्ति नहीं है। मेरे बहुत सारे वामपंथी और उदार मित्रों में, किसी का भक्त और अच्छा व्यक्ति होना असंभव था। मैं देखती हूं कि वे कहां से आए हैं। ऐसा संभव नहीं हो सकता कि आप एक सभ्य व्यक्ति हों और ठीक उसी समय अपने मुस्लिम पड़ोसी पर नरसंहार की इच्छा रखते हों।

लेकिन यहां एक विचित्र चीज है। भक्त नहीं मानते कि वे किसी के खिलाफ नरसंहार की वकालत कर रहे हैं। वे यह भी नहीं मानते कि उनकी राजनीतिक विचारधारा के साथ कुछ गलत है। सबसे महत्वपूर्ण, वे खुद को विडंबनापूर्ण तरीके से भारत में हिंदूविरोधी उत्पीड़न का शिकार के रूप में देखते हैं, जबकि यह बहुसंख्यक हिंदुओं के साथ एक धर्मनिरपेक्ष देश है। इस तरह की मान्यताएं ट्रंप के अमेरिका के नस्लवादी, धर्मांध, एमएजीए हैट पहनने वाले गोरों की मान्यताओं से किसी तरह भिन्न नहीं हैं। इस तरह की मान्यताएं नाजी जर्मनी से गैर यहूदी जर्मन नागरिकों के शब्दों की करीब-करीब पूर्ण प्रतिध्वनि जैसी हैं।

Published: undefined

लेकिन भारत में इस तरह की मान्यताओं की जड़ें थोड़ी भिन्न हैं, और थोड़े से प्रयास से, इसके परिणाम भी भिन्न हो सकते हैं। जब मैंने दानिश के भय के बारे में बताया, मेरी भौंहों को ठीक करने वाली पार्लर की दीदियों में से एक राजलक्ष्मी ने कहा, ‘वे कभी हमारी पीड़ा के बारे में बात नहीं करते।’ ‘लेकिन उनका समुदाय हर चीज का पहाड़ बना देता है। यदि भारत इतना खराब है तो वे सभी पाकिस्तान क्यों नहीं चले जाते? अपर लिप भी कर दूं क्या?’

उसके धागों के फुर्तीले प्रहारों ने उन दोनों सवालों को जवाब देने लायक नहीं छोड़ा; यद्यपि स्पष्ट तौर पर, बिना मेरी प्रतिक्रिया का इंतजार किए उसने मेरे ऊपरी होठ पर प्रहार करके खुद ही जवाब दे दिया। ‘वह किस पीड़ा की बात कर रही थी?’ दूसरे दिन मैंने अपनी गुरु भानु अम्मा से शिकायत की जिनके साथ मैं एक एनजीओ में काम करती थी। ‘मेरा मतलब है, हिंदुओं के पास हर चीज है, जो हम चाहते हैं’ मैंने बोलना जारी रखा।...हम जनसंख्या का करीब 79 प्रतिशत हैं। कोई हमें तिलक या सिंदूर लगाने के लिए नहीं कहता है। किसी घाट या मंदिर में प्रार्थना करने से हमें कोई नहीं रोकता। किसी को भी भगवा कपड़े या यहां तक कि नगा साधुओं के साथ किसी को कोई समस्या नहीं है। फिर उसकी क्या समस्या थी?

Published: undefined

भानु अम्मा ने मेरी बातों को बहुत धैर्य के साथ सुना। जब मेरी बात पूरी हो गई, उन्होंने मुझे पीने के लिए एक गिलास ठंडा पानी दिया और शांत हो जाने के लिए कहा। उन्होंने बहुत शांत तरीके से कहा, ‘यहां अभी भी बंटवारे का दर्द है’, और अपने हृदय की ओर इशारा किया। अगर हम इमानदार हैं तो ‘यह उसकी समस्या है, और मेरी भी।’ मैंने प्रतिक्रिया देने के लिए मुंह खोला लेकिन उन्होंने हथेली पकड़ ली और मुझे अभी सुनने का संकेत दिया।

उन्होंने कहा, ‘औरंगजेब के अत्याचारों का दर्द अभी भी यहां है। आतंकी हमलों में बच्चों, माता-पिता और भाई-बहनों को खोने की पीड़ा भी अभी यहां है। मैं अपने स्कूल के पीछे की महिलाओं को जानती हूं जिनके स्तन बंटवारे के दौरान मुसलमानों द्वारा काट दिए गए थे। उन्होंने हमारे लोगों के पूरे गांव को जला दिया, सड़ी लाशों की दुर्गंध से भरी एक पूरी ट्रेन यहां भेज दी। वे यहीं नहीं रुके। देखिए कैसे उन्होंने कारगिल युद्ध के दौरान हमारे सैनिकों को अंग-भंग किया। फिर उस साल जिसमें तुम पैदा हुए (1993) बम विस्फोट, 2008 का आतंकवादी हमला। हमारे धीरज की एक सीमा है। हमारे धैर्य के तार बहुत दूर तक तने हुए हैं।’

Published: undefined

भानु अम्मा के स्वर में कुछ भी नहीं बदला था जब वह बोल रही थीं। वह बंटवारे के दौरान सिखों और हिंदुओं द्वारा किए गए अत्याचारों के बारे में कुछ भी कहने की जहमत नहीं उठा रही थीं। बहुत मानवीय तरीके से, उनके लिए केवल अपने लोगों का दर्द ही एकमात्र दर्द था। उनकी पतली, तीखी आवाज, उम्र के हिसाब से बैठी हुई थी, दरअसल सत्य की पकड़ थी। सत्य नहीं थी। लेकिन निश्चित रूप से, एक सत्य...किसी एक का सत्य। दीपक भैया का सत्य। राजलक्ष्मी का सत्य।

और उन लाखों लोगों का सत्य जिन्होंने 2014 और फिर 2019 में बीजेपी को वोट दिया था, इस उम्मीद के साथ कि उनका चुना हुआ उद्धारकर्ता लंबे समय तक उनका उत्पीड़न करने वाले, मुस्लिम पहचान के उत्तराधिकारियों को दंडित कर उनकी हिंदू पहचान में उन्हें गर्व और सम्मान दिलाने के लिए काम करेगा। अभी के दौर में पहचान अपने आप में एक छली शब्द है। विचारों के उत्तर संरचनावादी स्कूल के अनुसार, पहचान गतिशील और धीरे-धीरे विकसित होने वाली चीज है। इसका वही मतलब हो सकता है जो इसका कोई मतलब निकालना चाहता हो।

Published: undefined

लेकिन कई अन्य लोगों के लिए, जिनकी दुनिया और वास्तविकता ठोस, जन्म के स्पर्श योग्य बंधनों, शादी-विवाह, और रिश्तेदारी में मापी जाती है, पहचान उनके अपरिवर्तनीय आत्म का एक मामला है- कुछ इस तरह का जो उनकी मौत के बाद भी बनी रहेगी। यह वह पहचान है जो किसी भी व्यक्ति को दीपक भैया की तरह देखने को मजबूर करता है कि वह दानिश को अपने प्रति विरोध के रूप में देखे। जो राजलक्ष्मी को हिंदू बनाती है और दानिश को मुसलमान बना देती है। जो वास्तविक जीवंत अनुभव पर ऐतिहासिक पीड़ाओं (वास्तविक और कथित) को प्राथमिकता प्रदान करती है।

अन्य सभी धार्मिक निष्ठाओं की तरह, हिंदूवाद मान्यताओं, प्रथाओं, पुराणों और अनुष्ठानों, विश्वासों का एक मनोग्रंथि जाल है। इस जाल का प्रत्येक पहलू उस खास संप्रदाय में शामिल मान्यताओं के परिक्षेत्र में प्रतिनिधित्व करने वाले एक विस्तार के रूप में देखा जा सकता है। उसमें नास्तिकतावाद, पंथवाद, वेदांतवाद, एकेश्वरवाद, गैर-द्वैतवाद, भौतिकवाद और कोई अन्य वाद जो आप सोच सकते हैं सभी के लिए जगह है। सभी अन्य मान्यता प्रणालियों की तरह, हिंदूवाद में भी समस्या वाले क्षेत्र हैं, जिसमें जाति व्यवस्था सबसे प्रमुख है। इसके बावजूद, कोई व्यक्ति जाति (और अन्य प्रतिगामी विचारों) को सफलतापूर्वक अस्वीकार कर सकता है और गौरवान्वित हिंदू रह सकता है।

Published: undefined

कई लोग यह नहीं समझते कि गर्व, ज्ञान और विनम्रता के एक स्थान से आता है। यह राजनीतिक सत्ता या अन्य लोगों पर वर्चस्व से नहीं आ सकता। इतिहास से परिणाम हासिल करना कठिन है, जब तक अतीत के घावों को भुलाया या माफ नहीं किया जाता, तब तक नए सिरे से सुलह की उम्मीद कभी नहीं की जा सकती। दीपक भैया उस 21 वर्षीय लड़के के डर को नहीं समझ सकते जो ड्राइविंग लाइसेंस न होने पर पकड़े जाने से डरा हुआ है, क्योंकि उसकी दाढ़ी और गोली टोपी पुलिस वाले को उसके साथ दुर्व्यवहार करने का मौका दे सकती है।

उसी तरह के अपराध के लिए, मुझे अर्थ दंड लगाया जा सकता है और पांच मिनट से भी कम समय में जाने की इजाजत दी जा सकती है। उसके साथ अतिरिक्त पूछताछ के लिए ले जाया जा सकता है। यहां तक कि कहीं ज्यादा गंभीर अपराधों में बलि का बकरा बनाया जा सकता है- केवल इसलिए कि हमारा समाज उसे पहले से ही दोषी की तरह देखता है। उसका नाम, पोशाक, भाषा- सभी कुछ अपराधी जैसे होने के प्रमाण हैं; क्योंकि औरंगजेब ने जो किया, क्योंकि गजनी के महमूद ने जो किया, और क्योंकि बंटवारे के दौरान दंगाइयों ने जो किया, उन सभी लोगों के अपराधों के लिए, किसी को दंडित किया ही जाना है।

Published: undefined

और चूंकि दानिश एक आसान लक्ष्य हो सकता है, जिसे हिंदुओं का एक बड़ा हिस्सा इन ऐतिहासिक खलनायकों की सभी बुराइयों के लिए, जो अभी भी केवल धूल भरी पुरानी पाठ्य पुस्तकों और प्रचार फिल्मों में मौजूद है, जिम्मेदार मानता है। यह उस पुरानी कहानी ‘अंधेर नगरी, चौपट राजा’ की तरह लगता है। सिवाय, हमारे चौपट राजाओं (और उनकी चौपट प्रजाओं) के जागने के पहले कितने निर्दोष गलों को फांसी के फंदे में दबाया जाएगा।

दानिश यह नहीं मिटा सकता कि वह कौन है। लेकिन हम अंगीकार कर सकते हैं कि वह कौन है। मात्र यही उत्तर है। महाउपनिषद कहता है, ‘वसुधैव कुटुंबकम।’ दुनिया परिवार है। सनातन धर्म के सबसे पवित्र और सबसे प्राचीन धर्मग्रंथों में से एक के रूप में, इसकी पवित्रता पर बहस नहीं की जा सकती और मात्र बयानबाजी से इसे खारिज नहीं किया जा सकता। यही वह जगह है जहां हिंदू गौरव वास्तव में स्थित है।

यूनिवर्स की तरह समान तत्वों से बना हुआ, और एक दूसरे के साथ हमारे डीएनए के 99 फीसदी हिस्से की साझेदारी, झगड़े जो मनुष्य जाति और धार्मिक निष्ठा को लेकर कर रहे हैं, चीजों की बड़ी योजना में बहुत तुच्छ हैं। लेकिन दुर्भाग्यवश, मनुष्य का स्वभाव यही है। हालांकि हमारे व्यक्तिगत सामाजिक ताने-बाने में, हमारे पुराने घावों और उन्हें भरने का एक मौका प्रदान कर इस तुच्छता को जड़ से खत्म करने की जगह है। जिस तरह मदर टेरेसा हिटलर नहीं थीं, उसी तरह दानिश कोई औरंगजेब नहीं है।

Published: undefined

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: undefined