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राम पुनियानी का लेख: बापू के राष्ट्रवाद को दरकिनार कर गोडसे की विचारधारा को प्रोत्साहित करने का अभियान

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आकार पटेल का लेख: न लोकतंत्र बचा है, न नागरिक अधिकार, आखिर ऐसा कैसे बन गया भारत!

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मृणाल पांडे का लेख: मोदी सरकार ने पहले संसद से लेकर सड़क तक चलाए ‘कानूनी’ मूसल, बिगड़े हालात तो झांक रही बगलें

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बिहार चुनाव: महामारी से राज्य त्रस्त, नौकरियां अस्त, मजदूर पस्त, पर नीतीश सरकार मस्त!

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किसी भी सरकारी फैसले पर सवाल उठाना आखिर राजनीति कैसे! लोकमुक्ति का मार्ग तो राजनीति ही है

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विष्णु नागर का व्यंग्यः जिसकी लाठी, उसकी भैंस और जहां योगी भी हो, छप्पन इंची भी हो, तो कौन किसे रोकेगा!

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जैव-विविधता पर अंतरराष्ट्रीय पहल से भारत ने काटी कन्नी, पर्यावरण संरक्षण सिर्फ लच्छेदार भाषण तक सीमित

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हाथरस कांड पर बहस: पुरुष वर्चस्व की सामाजिक व्यवस्था से नियंत्रित होती शक्ति और सत्ता का सरकारी सन्नाटा

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सुशांत की मौत की गुत्थी सुलझाने की कोशिश या बॉलीवुड की सरकार विरोधी आवाज़ों को सबक सिखाने का एजेंडा !

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महात्मा गांधी से गांधीवाद जिंदा रहेगा, यह सुनने के लिए नब्बे साल पहले हजारों लोगों ने टिकट खरीदा था

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खरी-खरीः बाबरी विध्वंस में थी मोदी के ‘न्यू इंडिया’ की नींव, आज फैसले के बाद भी देश की साझी विरासत जिंदा

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